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कोरोना योद्धाः 6 महीने से बेटे के पास होते हुए भी दूर हैं डॉ. दंपति, जानें इनकी कहानी
कोविड-19 महामारी से उपजी परिस्थितियों से अग्रिम मोर्चे पर मुकाबला कर रहे एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज में तैनात चिकित्सक दंपती डॉक्टर संकेत त्यागी व स्त्री रोग विशेषज्ञ श्वेता माहेश्वरी दुनिया का दर्द मिटाने की कोशिश में अपना दर्द भूल बैठे हैं।
मेरठ: कोविड-19 महामारी से उपजी परिस्थितियों से अग्रिम मोर्चे पर मुकाबला कर रहे एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज में तैनात चिकित्सक दंपती डॉक्टर संकेत त्यागी व स्त्री रोग विशेषज्ञ श्वेता माहेश्वरी दुनिया का दर्द मिटाने की कोशिश में अपना दर्द भूल बैठे हैं। हालांकि इस संवाददाता के साथ बातचीत में उनका यह दर्द उनके बच्चे का जिक्र छिड़ने पर उनकी आंखों से आंसू के रुप में बाहर आ जाता है। उनका सबसे बड़ा दर्द यही है कि पिछले करीब छह माह से अपने इकलौते ढाई साल के मासूम बच्चे के करीब होते हुए भी बहुत दूर हैं।
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मार्च से अपने घर नहीं गए
श्वेता माहेश्वरी और उनके पति संकेत त्यागी देश में कोरोना महामारी के फैलने के बाद मार्च से वो अपने घर नहीं गए हैं। डॉक्टर संकेत त्यागी कहते हैं, आखरी बार हम अपने इकलौते पुत्र कुशाग्र से छह मार्च को मिले थे। इसके बाद हमने अपने बच्चे को दादा-दादी के पास छोड़ दिया। हांलाकि इससे पहले हम नियमित रुप से बच्चे के साथ रहते थे।
उसके बाद मेरठ में कोरोना के मरीजों के बढ़ने का सिलसिला शुरु हुआ तो हम दोंनो ने मिलकर यह तय किया कि हम अपने घर नही जाएंगे। क्योंकि श्वेता स्त्री रोग विशेषज्ञ है। ऐसे में उसे कोरोना पीड़ित गर्भ्रवती महिलाओं के ऑपरेशन करने पड़ते हैं। मैं भी बच्चों का डॉक्टर हूं। कोरोना वार्ड की ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों के पास संक्रमण का खतरा अधिक होता है। सो, हमने कुशाग्र के उसके दादा-दादी के पास छोड़ दिया।
संकेत त्यागी कहते हैं, पहले कुशाग्र को उसके दादा-दादी हमसे मिलवाने के लिए 10-15 दिन के अंतराल में ले आया करते थे। मुलाकात के दौरान मैं और मेरी पत्नी एक कार में बैठे रहते थे और वह अपने दादा-दादी के साथ दूसरी कार में बैठा रहता था। बात-करते करते अचानक डॉक्टर संकेत त्यागी रुआंसे हो जाते हैं। कहते हैं, शुरु में तो कुशाग्र हमको देखकर कार के अंदर से हाथ हिलाने लगता था। लेकिन अब हालत यह है कि वह हमारी तरफ देखता भी नही।
15 किमी दूर जाकर अपने बच्चे की तरफ देखता हूं...
उस समय बड़ा दुःख होता है जब में 15 किमी दूर जाकर अपने बच्चे की तरफ देखता हूं और बच्चा दूसरी तरफ मुंह फेर कर बैठ जाता है। फिर अपने को संभालते हुए संकेत त्यागी कहते हैं, दरअसल, ढाई साल के बच्चे को समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। पहले हम उसे यह कह कर समझाने की कोशिश करते थे कि बेटा छी-छी हो गया है हम नही आ सकते। पापा-मम्मी डॉक्टर है ना बेटा। लेकिन अब बेटा हमारी बात सुनकर अपना मुहं फेर लेता है। उसे अब यह लगने लगा है कि हम अब कभी नही आएंगे। मैने एक दिन फोन पर उससे कहा कि, बेटा पापा ,है पापा के साथ चलोगे। तोतली आवाज में बोलता है कि नही,दादा-दादी के के पास रहूंगा।
बहुत गिल्टी महसूस होती है...
अगर दादा-दादी उसकी हमले बात कराने की कोशिश करते हैं तो गुस्सा दिखाते हुए मोबाइल फोन फेंक देता है। बकौल,संकेत त्यागी कभी –कभी तो हमें लगता हैकि हम अपने मासूम बच्चे के साथ गलत कर रहे हैं। हम अपने मा-बाप का पर्झ नही निभा रहे हैं। उस समय हम दोंनो को बहुत गिल्टी महसूस होती है।
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इस संवाददाता के इस सवाल पर कि आपके माता-पिता क्या कभी आप पर यह दबाव नही डालते कि आप दोंनो में एक नौकरी छोड़कर घर आकर अपना परिवार देखो। संकेत त्यागी कहते हैं, बिल्कुल नही, बल्कि मेरे पापा जो आर्मी में कर्नल रहे हैं यह कहते हैं कि, बेटा यही मौका है जब आप देश और देश के लोंगो के हित में कुछ कर सकते हो।
बकौल संकेत त्यागी,मेरे पापा ने करीब ३५ साल सेना में रहकर देश की सेवा की है। उन्हीं से हमें हिम्मत महसूस होती है। क्या वर्तमान हालात में आप दोनों में से किसी का नौकरी छोड़ने का मन हुआ या नही। संकेत त्यागी कहते हैं, श्वेता के लिए अपने बच्चे को इतने महीनों तक नहीं देखना मानसिक रूप से एक कठिन काम है। उसने अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में कई बार सोचा, लेकिन इस महामारी के बीच में ऐसा करना वो भी तब जब डॉक्टरों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है तो सही नहीं लगा।
नौकरी कमाई के लिए नही कर रहे
यहां संकेत त्यागी यह भी कहते हैं कि हम दोंनो नौकरी कमाई के लिए नही कर रहे हैं। बकौल संचित त्यागी , हम दोंनो अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हैं। परिवार का पूरा सर्पोट भी हमको मिलता है। ऐसे में हम नौकरी छोड़ने का रिस्क भी ले सकते हैं। क्योंकि वर्तमान हालात में भला कौन जिन्दगी के साथ रिस्क लेता है खासकर अपने परिवार से दूर रहकर। लेकिन हम जानते हैं कि डॉक्टर होने के नाते हमारा फर्ज मरीजों की सेवा करने का भी है।
इसलिए जो योगदान हम देश और देश के लोंगो को दे सकते हैं दे रहे हैं। आखिर कब तक आप अपने बच्चे से दूर रहेंगे। क्योंकि कब महामारी खत्म होगी अभी कुछ नही कहा जा सकता है। इस सवाल पर संकेत त्यागी कहते हैं,फिलहाल तो हम दोंनो ने यही निर्णय लिया है कि सितम्बर माह तक अपने घर नही जाएंगे। सितंबर में क्या हालात बनते हैं उसको देखकर आगे का निर्णय लेंगे।
श्वेता माहेश्वरी ने बातचीत में इतना ही कहती हैं,हम जानते हैं कि अपने बच्चे या माता-पिता को वायरस के संपर्क में नहीं ला सकते हैं, लेकिन साथ ही हमें अपना कर्तव्य भी निभाना होगा। उन्होंने कहा कि अब हर बार जब मैं एक नवजात शिशु को गोद में लेती हूं, तो अपने बच्चे के दूर होने का गम होता है।
रिपोर्ट: सुशील कुमार, मेरठ
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