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मेरठ मानसून स्पेशल : जलभराव की समस्या बहुत पुरानी, निपटने के इंतजामों की खुली पोल
सुशील कुमार
मेरठ : मानसून धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इसी के साथ लोंगो की मुसीबतें भी बढ़ रही हैं। मौसम वैज्ञानिक जुलाई के शुरुआती दो हफ्तों तक अच्छी मानसूनी बारिश होने की आशंका जता रहे हैं। भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान के मौसम वैज्ञानिक डाॅ एन सुभाष का कहना है कि बारिश का सिस्टम बनता जा रहा है। आने वाले तीन दिन तक बारिश के आसार बने हुए हैं। तापमान 36 डिग्री के आसपास रहेगा। मौसम विभाग की आगामी दो हफ्ते के पूर्वानुमान रिपोर्ट के अनुसार 11 जुलाई तक वेस्ट यूपी में मानसून की अच्छी बारिश दर्ज होगी। यानी 11 जुलाई तक मेरठ में मानसून की अच्छी बारिश होने के आसार हैं। मौसम वैज्ञानिक डाॅ यूपी शाही कहते हैं, जिस तरह से मेरठ और आसपास में बारिश का सिस्टम बन रहा है, अभी ऐसी बारिश नहीं हुई है।
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हालाकि अभी जोरदार बारिश नही हुई है। लेकिन,थोड़ी बहुत जो भी हुई है उसने प्रशासन के बारिश से निपटने के इंतजामों की पोल खोल कर रख दी है। कुछ ही देर की बारिश में ही जगह-जगह जलभराव होना यहां आम बात है। जली जली कोठी से लेकर फिल्मिस्तान मोड़,सीएबी इंटर कॉलेज,सदर बाजार,बुढ़ाना गेट। अचरज और मजे की बात यह है कि शहर में अगर कहीं बारिश होने से जलभराव की सबसे बड़ी समस्या है, तो वो नगर निगम रोड ही है।
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नगर निगम रोड बाजार, बुढ़ाना गेट, घंटाघर, सदर जैसे मार्केट में जलभराव होने से यहां का मार्केट पूरी तरह से ठप हो जाता है। सबसे ज्यादा असर नगर निगम रोड बाजार पर पड़ता दिखा. जहां नाले का गंदा पानी दुकानों में भर जाता है। इसके अलावा शहर के श्याम नगर, पिलोखड़ी, लिसाड़ी गेट, शास्त्रीनगर, रोहटा रोड इलाकों में जसभराव की समस्या से लोग त्रस्त हैं।
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व्यापारियों के लिए भी ये मौसम आफत वाला ही रहता है। घंटाघर व्यापार संघ से जुड़े धमेन्द्र की मानें तो मानसून में 50 फीसदी के व्यापार में गिरावट आ जाती है। पूरे दिन में बारिश होने की वजह से कभी एक भी ग्राहक नहीं आता है। बकौल धमेन्द्र कई घंटाघर इलाके में जलभराव की समस्या बहुत पुरानी है। लेकिन कई बार शिकायतें करने के बाद भी आज तक समस्या का समाधान नही हुआ है। धमेन्द्र के अनुसार यह हालत तो तब है जबकि नगर निगम का दफ्तर बगल में ही है। जहाँ नगर आयुक्त और महापौर से लेकर सारे अफसरों और जनप्रतिनिधियों के दफ्तर हैं।
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पिछले 40 सालों से नगर की समस्याओं को अपने तरीके से उठाने वाले जिला नागरिक परिषद के पूर्व सदस्य कुंवर शुजाआत अली कहते हैं,बारिश से पहले तमाम सावधानियां नगर निगम को बरतनी चाहिए, लेकिन बावजूद इसके मानसून के लिए कोई तैयारियां नहीं की जाती। शुजाअत कहते हैं,नगर निगम हर साल करोंड़ो रुपये नाला सफाई के नाम पर खर्च करता है। नाला सफाई के दौरान नालों की सिल्ट नालों के किनारे डाल दी जाती है। बारिश होने पर यही सिल्ट फिर से नाले में बह जाती है। शुजाअत के अनुसार शहर की तमाम मुसीबतों से निजात चाहिए तो नाले ढकने होंगे। शुजाआत अली कू बात में दम भी है। दरअसल,नाले जलभराव का मुख्य कारण है यह बात नगर के अधिकारी भी जानते हैं। इससिए नाले ढकने के लिए प्लान खूब बने, लेकिन कोई भी योजना धरातल पर नहीं आ सकी। योजनाएं गायब हो गईं। यहां तक सपा के कार्यकाल में आजम खां की घोषणा भी महज भाषण तक ही सिमट कर रह गई।
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शहर के कुल 285 नालों में से 23 बड़े नाले अधिक लंबाई और चैड़ाई वाले हैं। यदि इन्हें ढक दिया जाए तो बदबू और बीमारी से बचा जा सकता है। यही नहीं काफी स्थान भी उपलब्ध हो सकता है। जिसका उपयोग पार्किंग के रूप में किया जा सकता है। नालों को ढकने के लिए खूब घोषणाएं हुईं। ऐसी ही घोषणा तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम खां ने चार जून 2012 को मेरठ आकर की थी। उन्होंने कहा था 407 करोड़ रुपये से शहर के 30 पुराने नालों की सूरत बदली जाएगी। योजना के मुताबिक नालों को ढककर उनके ऊपर मल्टी लेवल पार्किंग बनाई जानी थी। लोगों के घूमने के लिए बगीचा, संगीतमयी फव्वारा आदि लगाकर रमणीय स्थल तैयार किया जाना था। नाले की पटरी पर पेड़ लगाये जाने थे। लेकिन,घोषणा धरातल पर नही उतर सकी। उधर, एमडीए ने भी 503 करोड़ की आबू कैनाल योजना बनाई। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड से ऋण लेकर 38 किमी आबू नाले में से 20 किमी का जीर्णोद्वार करने की योजना थी। लेकिन यह योजना भी लखनऊ पहुंचकर फाइलों में दब गई। नगर निगम का 431 करोड़ का प्लान भी गायब हो गया।
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वर्ष 2014 में नेहरू नगर के नाले में गिरकर 12 वर्षीय मंदबुद्धि किशोर गौरव की मौत हो गई थी। मामला हाईकोर्ट पहुंचा। नालों को सुरक्षित करने के लिए निगम प्रशासन की घेराबंदी हुई तो उसने नालों की दीवारें ऊंची करने, नालों को पैक करने के लिए उनके ऊपर लोहे का जाल लगाने तथा अन्य व्यवस्थाएं करने की योजना बनाई। 431 करोड़ की इस योजना को स्वीकृति और धन आवंटन के लिए शासन के पास भेजा गया है।