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Meerut News : एक कुर्सी ऐसी भी जिससे नहीं है नेताजी को मोहब्बत

UP News: अधिकारियों के मुताबिक बीते चार दशक में किसी मंत्री या विधायक ने सरकारी बस से यात्रा नहीं की। हालांकि परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का कहना है कि व्यवस्था में सुधार ले आएंगे।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Bishwajeet Kumar
Published on: 3 April 2022 9:53 AM GMT
Virasat Bus
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विरासत बस (तस्वीर साभार : सोशल मीडिया)

Meerut News : नेताजी और कुर्सी में कुछ ऐसा ही इश्क है जैसा लैला मजनूं या हीर रांझा में था। लेकिन एक कुर्सी ऐसी भी है जो है तो नेताजी के लिए ही रिजर्व लेकिन बेचारी कुर्सी सालों से उस पर बैठने वाले अपने आशिक का इंतजार कर रही है। लेकिन आशिक(नेताजी) उस कुर्सी पर कभी विराजते नहीं। जिस पब्लिक ने उन्हें आम से खास बनाया। खास से वो 'माननीय' हो गये उसी पब्लिक के बीच इस कुर्सी पर बैठने में उन्हें इनसल्ट फील होता है। शायद इसलिए नेताजी उस कुर्सी पर नहीं बैठते हैं। जी, हां हम बात कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों की जिनमें हमारे जनप्रतिनिधियों को यात्रा करना पसंद नहीं है।

परिवहन निगम बस में सांसद, विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायकों के लिए सीटें रिजर्व हैं, लेकिन इनमें मेरठ के किसी भी जनप्रतिनिधि को शायद ही कभी किसी ने सफर करते देखा होगा। मेरठ क्षेत्र के परिवहन निगम अधिकारियों के मुताबिक मेरठ में पिछले चार दशकों से अधिक समय से में बस अड्डा स्थापित हुआ है। तब से आज तक किसी सांसद, विधायक को बस में सफर करते नहीं देखा गया। वर्षों से विशेष श्रेणी के व्यक्तियों की निशुल्क यात्रा के रिपोर्ट में सांसद-विधायकों के कॉलम में शून्य बना हुआ है। हालांकि प्रदेश के नये बने परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का कहना है कि उनकी कोशिश होगी कि परिवहन व्यवस्था को ऐसा करें कि आने वाले समय में मंत्री सांसद विधायक भी सरकारी बसों में यात्रा करें।

रेल यात्रा से याराना, बस यात्रा से किनारा

दरअसल, जनप्रतिनिधियों को लाखों रुपये तक के रेल कूपन, हवाई यात्रा की सुविधा है। इनमें वह डीजल भत्ते के रूप में हजारों रुपये ले सकते हैं। इतना ही नहीं बिना ब्याज के वाहन खरीदने के लिए लोन दिया जाता है। बस में आगे की तीन सीटें इनके लिए आरक्षित रखी जाती है। वह सूबे किसी भी स्टेशन से बैठ सकते हैं, इसके लिए कोई फार्म नहीं भरा जाता बल्कि केवल पहचान पत्र देखकर ही सीट दे दी जाती है। हालांकि की सांसद और विधायकों को सफर कराने का सौभाग्य भारतीय रेल को खूब मिलता है। लेकिन शायद सरकारी बसें उनके कद के हिसाब से बहुत छोटी हैं या फिर आम जनता के साथ भीड़ का हिस्सा बनना जनता के प्रतिनिधियों को गंवारा नहीं है।

इस बारे में परिवहन निगम के कर्मचारियों का कहना है जनप्रतिनिधियों को बस में सफर करने की जरूरत क्या है। उनके पास ऐसी गाडियां हैं। हेलीकॉप्टर होते हैं, उनके लिए ऐसी ट्रेनें हैं। उबड़-खाबड़ सडक़ों पर रोडवेज की बसों में सफर करके हमारे माननीय क्यों अपना समय और कपड़े खराब करेंगे।

सरकारी बसों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है। अगर समय-समय पर सांसद-विधायक इन बसों में सफर करते रहें तो वह बसों की खराब हालत से रूबरू हो सकते हैं। हो सकता है रोडवेज बसों की हालात में कुछ सुधार हो सके। विधान सभा से लेकर संसद तक हनक रखने वाले माननीय की कुर्सी थ्री सीटर में होती है। ये तीनों सीटें उनके लिए हमेशा आरक्षित रहती हैं। इसके अलावा रोडवेज बस में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकतंत्र रक्षक, मान्यता प्राप्त पत्रकार, विकलांग और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित रहती हैं।

67 साल पहले नेता जी करते थे बस की सवारी

वैसे, ऐसे हालात पहले नहीं थे। जानकारों के अनुसार करीब 67 साल पहले अधिकांश जन प्रतिनिधि रोडवेज बसों में ही सफर करते थे। यह समय वो था जब जनप्रतिनिधियों के पास लग्जरी गाडिय़ों की कतारें नहीं होती थी। ऐसे में जहां तक रोडवेज बस गई, वहां तक इसकी सेवा ली। उसके बाद कोई अन्य साधन देख जनसेवक राह पकड़ लेते थे। रोडवेज अधिकारियों के मुताबिक सूबे के प्रथम मुख्यमंत्री पं. गोविंद वल्लभ पंत तक ने बस संख्या यूपीएफ-3134 में सफर किया था। रोडवेज ने पुरानी बस की तरह इसे काटकर हटाया नहीं, बल्कि 'विरासत' के रूप में संजो लिया। कानपुर स्थित डॉ. राममनोहर लोहिया कार्यशाला में यह बस आज भी खड़ी है।


हालांकि प्रदेश के नये बने परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का कहना है कि उनकी कोशिश होगी कि परिवहन व्यवस्था को ऐसा करें कि आने वाले समय में मंत्री सांसद विधायक भी सरकारी बसों में यात्रा करें। अब देखना यही है कि परिवहन मंत्री की कोशिशें कब सफल होती हैं। फिलहाल तो बेचारी कुर्सी सालों से उस पर बैठने वाले अपने आशिक(नेताजी) का इंतजार कर ही रही है।

Bishwajeet Kumar

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