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Asian Games 2023: जैवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाली मेरठ की अनु रानी की कहानी, पिता कभी जैवलिन से नाता जुड़ने से नहीं थे खुश
Asian Games 2023: जैवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाली मेरठ की अनु रानी की कहानी, पिता न्यूजट्रैक से बातचीत में कहते हैं...
Asian Games 2023: मेरठ (उत्तर प्रदेश) तीन अक्तूबर। उत्तर प्रदेश के मेरठ से सटे सरधना के बहादुरपुर गांव निवासी एथलीट अनु रानी ने आज जैवलिन थ्रो में भारत के लिए जैसे ही स्वर्ण पदक जीता उनके परिजनों और गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। हैं। किसान परिवार की अनु बचपन से ही वह इसमें अपना करियर बनाना चाहती थी। लेकिन उनके पिता इसके लिए राजी नहीं थे। हालांकि, उन्होंने पिता को मनाना जारी रखा था। पिता अमरपाल सिंह जिनके चेहरे से बेटी की बड़ी कामयाबी की खुशी साफ झलक रही थी। न्यूजट्रैक से बातचीत में कहते हैं, दरअसल,हम बहुत छोटे से किसान है। मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। इनमें अनु(28) सबसे छोटी है। सबसे बड़ा बेटा उपेन्द्र है। छोटा बेटा जितेन्द्र है। बेटी रीतू,नीतू और अनु रानी हैं।
बिटिया का जैवलिन से नाता कब जुड़ा । पूछने पर अमरपाल सिंह बताते हैं- दरअसल बड़े भाई उपेंद्र और अपने चचेरे भाइयों को देखकर अनु का इस तरफ झुकाव हुआ उस समय वह नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। बड़ा भाई उपेन्द्र उस समय यूनिवर्सिटी स्तर पर दौड़ और जैवलिन में हिस्सा लेते थे। उन्हें अपनी बहन के थ्रो में कुछ ख़ास लगा। उन्हें लगा कि अनु भी जैवलिन थ्रो कर सकती है। बेटे ने घर आकर मुझे इसके बारे में बताया, तो मैने इनकार कर दिया। कहा- बेटी है, अकेली कहां जाएगी? इसके खेल और डाइट का खर्चा कैसे उठाएंगे? क्योंकि हम बहुत छोटे किसान हैं। गांव में हमारे पास थोड़ी बहुत ही जमीन है। उस समय उपेंद्र 1500, 800, 400, पांच हज़ार मीटर की दौड़ और जैवलिन थ्रो का खिलाड़ी था।
अमरपाल कहते हैं,मेरे मना करने के बाद भी मेरा बेटा बेटा उपेन्द्र अपनी बहन को चोरी-छिपे सुबह-सुबह अपने साथ खेतों में ले जाता और गन्ने का भाला बनाकर उससे अभ्यास कराते। अनु के पास अच्छे जूते नहीं थे, तो वह भाई के जूते पहनकर दौड़तीं। दोनों के पैरों का साइज एक था। यह अनु की खेल प्रतिभा है कि उसने आज न सिर्फ परिवार और अपने गांव का बल्कि देश का नाम पूरी दुनिया में कर दिया। अमरपाल कहते हैं,बाद में बिटिया के स्कूल के शिक्षको ने भी बिटिया की प्रतिभा का जिक्र करते हुए उसकी सिफारिश की। जिसके बाद मुझे बेटी का बात माननी पड़ी। बकौल अमरपाल सिंह- मुझे गांव के लोगो से जब बेटी की आज की कामयाबी का पता चला तो मैं बता नहीं सकता कि कि मुझे कितनी खुशी हुई। इसी के साथ अपनी बेटी की प्रतिभा पर गर्व हुआ।
अमरपाल कहते हैं-मुझे तो पहले यह डर था कि बेटी को खेलने के लिए दूर-दूर जाना पड़ेगा। लेकिन,देखिए अब वही बेटी अपने खेल की बदौलत इतना दूर निकल आई कि चीन के हांगझोउ शहर में खेले जा रहे एशियन गेम्स में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत लिया। पिता अमरपाल सिंह के अनुसार अनु फिलहाल पंजाब के पटियाला में रेलवे में अफसर है। अनु की शिक्षा मेरठ में ही हुई। अनु स्नातक है।
अमरपाल सिंह के पास बैठे गांव के प्रधान धर्मपाल कहते हैं,हमारी तो यही अच्छा है कि अनु जैसी बिटिया हर घर में पैदा हो। अनु ने आज अपने परिवार और गांव का ही नहीं पूरे देश का नाम रोशन किया है।