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Meerut News: न्यायविद साजू जैकब ने कहा, आपराधिक कानूनों में बदलाव, किसी भी प्रकार से पीड़ादायक नहीं हैं

Meerut News: यदि हम अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं तो हमें इस परिर्वतन को आज के समय के अनुरूप स्वीकार करना होगा, क्योंकि सफलता का कोई निर्धारित नुस्खा नहीं हैं।

Sushil Kumar
Published on: 9 Nov 2024 7:33 PM IST
Meerut News ( Pic- News Track)
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 Meerut News ( Pic- News Track)

Meerut News: आज यहां नवीन आपराधिक कानूनों के प्रवर्तन में आने वाली समस्याएँ तथा चुनौतियाँ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट साजू जैकब द्वारा विद्यार्थियों तथा श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा परिवर्तन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको कई तरीकों से बढ़ने और बेहतर बनने में मदद कर सकता है। यदि हम अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं तो हमें इस परिर्वतन को आज के समय के अनुरूप स्वीकार करना होगा, क्योंकि सफलता का कोई निर्धारित नुस्खा नहीं हैं। कानून में कैरियर विविध और हमेशा बदलते रहते है। यही चीज साल दर साल कुछ प्रतिभाशाली दिमागों को इस पेशे की तरफ खिंचती हैं। जो छात्र लॉ स्कूल में सफल होते हैं, वे एक अधिवक्ता के रूप में अभ्यास करते है या मध्यस्थों शिक्षकों, विश्लेषकों, सलाहकारो उद्यमियों और नीति निर्माताओं के रूप में लगातार काम करते हैं। सरकार द्वारा आपराधिक कानूनों में किया गया बदलाव किसी भी प्रकार से पीड़ादायक नहीं हैं।

स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सुभारती लॉ कॉलेज तथा डॉ॰ अम्बेडकर शोधपीठ द्वारा संयुक्त रूप से ‘‘नवीन आपराधिक कानूनों के प्रवर्तन में आने वाले मुद्दे और चुनौतियाँ’’ विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन सुभारती लॉ कॉलेज के निदेशक राजेश चंद्रा (पूर्व न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय, प्रयागराज) के दिशा निर्देशन तथा प्रो॰ डॉ॰ वैभव गोयल भारतीय, संकायाध्यक्ष, सुभारती लॉ कॉलेज के संरक्षण में महाविद्यालय की सेमिनार समिति द्वारा विधिक सेवा दिवस के उपलक्ष्य में किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति मेजर जनरल डॉ.जी॰ के॰ थपलियाल, लिली थॉमस चेम्बर्स साजू जैकब एडवोकेट, सर्वाेच्च न्यायालय और सॉलिसिटर (यूके), प्रो. (डॉ.) वागेश्वरी देसवाल, प्रोफेसर, विधि संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, प्रो. (डॉ.) असद मलिक, प्रोफेसर, विधि संकाय, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, प्रो. (डॉ.) अमर प्रकाश गर्ग, प्रो. (डॉ.) वैभव गोयल भारतीय द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर पुष्पार्पण किया गया।

प्रो॰ (डॉ॰) रीना विश्नोई ने कार्यक्रम की आवश्यकता तथा इसके महत्व के विषय में बताते हुए कहा कि औपनिवेशिक युग के भारतीय दण्ड संहिता, दण्ड प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम नए आपराधिक कानूनों का कार्यान्वन कई चुनौतियों प्रस्तुत करता है। इन कानूनों का लक्ष्य आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाना है और न्याय सबके लिए की अवधारणा को मूर्तरूप में स्थापित करना है।

वागेश्वरी देशवाल, ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय दण्ड संहिता में परिभाषाएं अलग-अलग जगह पर धारा 6 से लेकर धारा 52। तक दी गयी थी जबकि अब भारतीय न्याय संहिता में धारा 2 एवं 3 में समाहित हैं। उन्होंने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं में भारत शब्द तो मिलता है लेकिन इंडिया कहीं नहीं मिलता हैं। इस परिवर्तन का मूल उद्देश्य किसी भी अपराध के प्रत्येक हित धारक को उचित एवम् समय से न्याय प्रदान करना हैं, चाहे वह पीड़ित हो या फिर अपराधी या फिर साक्षी । उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 को भी पूर्णतः परि भाषित करता हैं। यह परिवर्तन लिंग आधारित ना होकर व्यक्ति आधारित हैं।

असद मलिक ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.) 2023 आपराधिक प्रक्रिया ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन संहिता की जगह संसद को ‘अधिनियम’ शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए था। बी.एन.एस.एस का लक्ष्य आपराधिक न्याय प्रणाली का आधुनिकीकरण और सुधार करना हैं। जहाँ एक ओर सी॰आर॰पी॰सी॰ भारत में आपराधिक न्याय प्रषासन के लिए प्रक्रियात्मक ढांचा प्रदान करता है। यह आपराधिक अपराधों की जांच, अभियोजन और मुकद्दमें की रूप रेखा तैयार कर निष्पक्ष न्याय की पैरवी करता है, वही दूसरी ओर बी॰एन॰एस॰एस॰ आपराधिक प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाना, प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना और आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक कुषल बनाने के लिए समकालीन कानूनी और प्रक्रियात्मक चुनौतियो का समाधान करता हैं।

औपनिवेशिक जड़ों से लेकर आधुनिक दक्षता तक न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी कि ‘‘प्रक्रिया न्याय की दासी है’’इस बात पर जोर देते हुए कि प्रक्रियात्मक नियमों को न्याय में बाधा डालने के बजाय सुविधा प्रदान करनी चाहिए। बीएनएसएस प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की जुर्माना लगाने की शक्ति को 10,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये और द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट की जुर्माना लगाने की शक्ति को 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये करता है। यह इन श्रेणी के मजिस्ट्रेटों को सज़ा के तौर पर सामुदायिक सेवा लगाने का भी अधिकार देता है। बीएनएसएस ने मुकदमे की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों के लिए सख्त समयसीमा तय की है, जिसमें यह अनिवार्यता भी शामिल है कि बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर निर्णय सुनाया जाना चाहिए, जिसे विशेष परिस्थितियों में केवल 45 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है।

इसके अलावा, इसमें यह भी कहा गया है कि मुकदमे या पूछताछ प्रतिदिन की जानी चाहिएअमर प्रकाश गर्ग ने अपने वक्तव्य में कहा कि न्याय प्रक्रिया की सरलता तब ही सिद्ध होगी जब न्याय व्यक्ति को उसके दरवाजे पर प्राप्त होगा, ना कि छोटी छोटी बात के लिए न्यायालय का चक्कर लगाते रहने में।कुलपति (डॉ.) जी के थपलियाल ने अपने उद्बोधन में धर्म एवं पंथ में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म सबसे लिए एक जैसा होता जबकि पंथ व्यक्ति के मनोभाव के अनुरूप होता हैं। प्राचीन काल से ही भारत, जोकि विष्व की प्राचीनतम सभ्यताओं सर्वोच्च है, ने विधि एवं नैतिकता दोनों का ही प्रभाव न्याय प्रदान करने में रहा है।

संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह बड़े हर्ष का विषय हैं कि इस एक दिवसीय सेमिनार में उत्तर प्रदेश राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, कश्मीर, मद्रास, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा उत्तरी बंगाल दस राज्यों के प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम के अन्त में सभी अतिथियों, वक्ताओं तथा श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए उन्होंने कहा कि निष्चित तौर पर यह सेमिनार विद्यार्थियों के मन में तीनों कानूनों के प्रति जो भी सन्देह रहा होगा वह काफी हद तक दूर हो गया होगा।

एकदिवसीय सेमिनार में तीन तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। पहले सत्र में डॉ॰ अजय राज सिंह तथा आफरीन अल्मास द्वारा लगभग बीस प्रतिभागियों के षोध पत्र एवं आलेखों को सुना गया वहीं दूसरी ओर द्वितीय एवं तृतीय सत्र में डॉ॰ सारिका त्यागी, डॉ॰ प्रेम चद्रा, सोनल जैन द्वारा लगभग 38 विद्यार्थियों के षोध पत्रों को सुना गया। कार्यक्रम के अन्त में आयुष आनन्द, आकांक्षा श्रीवास्तव तथा आरती गोयल द्वारा पूरे कार्यक्रम की सारवान रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी। तीनों तकनीकी सत्रों का संचालन कुमारी प्रीत, युवराज तथा जाहिरा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ॰ सरताज अहमद, डॉ॰ रफत खानम, डॉ॰ अनुराधा अस्थाना सिंह, एना सिसोदिया, अरशद आलम, शालिनी गोयल, आशुतोष देशवाल, हर्षित आदि शिक्षक शिक्षिकाएं तथा छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।



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Shalini Rai

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