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Meerut News: लेकिन,दिक्कत यही है कि हादसों से सबक लेना नहीं जानते सरकारी अफसर
Meerut News: ऐसा जैसा दर्दनाक हादसा मेरठ भी झेल चुका है। बता दें कि मेरठ शहर के हापुड़ रोड के युग अस्पताल में एक नवजात की इंक्यूबेटर में कथित रुप से जलकर मौत हो गई थी।
Meerut News: झांसी के मेडिकल कॉलेज में भीषण आग लगने से 10 शिशुओं की मौत हुई है। ऐसा जैसा दर्दनाक हादसा मेरठ भी झेल चुका है। बता दें कि मेरठ शहर के हापुड़ रोड के युग अस्पताल में एक नवजात की इंक्यूबेटर में कथित रुप से जलकर मौत हो गई थी। पूरे मामले में डीएम द्वारा गठित की गई जांच समिति ने क्या रिपोर्ट दी इसका अभी तक खुलासा नही हो सका है। जानी स्थित एक नर्सिग होम में वर्ष 2015 में शॉर्ट सर्किट से लगी आग के बाद इंक्यूबेटर में रखे हुए दो बच्चे बुरी तरह झुलस गये थे,जिनमें एक बच्चे की मेरठ स्थित एक अस्पताल में उपचार के दौरान मौत भी हो गई थी। इससे पहले अप्रैल 2006 में मेरठ में ही विक्टोरियां पार्क अग्निकांड को भला कैसे भुलाया जा सकता है जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस हादसे में 65 लोगो की जाने चली गई थी।
लेकिन,दिक्कत यही है कि सरकारी अफसरों की नींद घटना होने के बाद ही खुलती है। घटना के कुछ दिनों बाद फिर वही पहले जैसा हो जाता है। शायद यही वजह है कि न तो जिला अस्पताल और न ही मेडिकल अस्पताल में व्यवस्थाएं दुरुस्त पहले कभी दुरुस्त दिखी और न ही आज हैं। कुकरमुत्तों की तरह खुले निजी नर्सिंग होम व अस्पतालों का तो हाल और भी बुरा है। आलम यह है कि लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज,पीएल शर्मा जिला अस्पताल और महिला जिला अस्पताल में फायर अलार्मिंग सिस्टम ही बंद पड़े हैं। फायर सिलेंडरों पर धूल है। आग बुझाने के लिए पानी डालने की व्यवस्था नहीं है। यह हाल तो तब है जबकि इसी साल मई में गायनी वार्ड में भीषण आग लगी थी। नवजात शिशुओं की इकाई एसएनसीयू ,एनआइसीयू और पीआइसीयू में चार से पांच फायर सिलेंडर ही निरीक्षक के दौरान सीडीए नुपूर की अगुवाई वाली सरकारी टीम को मिले। जिनकी एक्सपायरी डेट अगस्त और मई 2025 पाई गई। तीनों ही यूनिटों में निकास द्वार हैं,लेकिन रास्ते में अलमारी,टीटी कुर्सियां व बेड पड़े देखे गये।
एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज में भी आग बुझाने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। दीवारों पर लगे सिर्फ फायर एंस्टिग्यूशर के सहारा है। बता दें कि यहां मेरठ ही नहीं अपितु आपसास के जिलो के लाखों की संख्या में मरीज हर साल आते हैं। इनमें कम से कम 30 हजार मरीज भर्ती होते हैं। इनके अलावा तीमारदार, मेडिकल स्टूडेंट्स, फैकल्टी और अन्य स्टाफ भी यहां रहता है। इसके बावजूद आग बुझाने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। चार साल तो अग्निशमन के इंतजामों का ऑडिट तक नहीं हुआ है। दरअसल, आग बुझाने के लिए शुरू किया प्रोजेक्ट ठप पड़ा है। 10 जून 2016 को शुरू हुआ प्रोजेक्ट 30 सितंबर 2018 तक पूरा होना था, लेकिन अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। यह उस शहर का हाल है जहां 2006 में विक्टोरियां पार्क जैसा भीषण अग्निकांड हो चुका है।