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Meerut News: पश्चिमी यूपी में जाटों को लेकर बीजेपी और आरएलडी में लड़ाई हुई तेज

Meerut News: मेरठ। लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उत्तर प्रदेश में जाट वोटों को लेकर बीजेपी और रालोद के बीच लड़ाई तेज हो गई है। एक अक्टूबर को मेरठ में हुई जाट संसद में जाट समुदाय के कई बड़े नेता नहीं दिखे।

Sushil Kumar
Published on: 2 Oct 2023 7:42 PM IST
Fight intensifies between BJP and RLD over Jats in Western UP
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संजीव बालियान- जयंत चौधरी: Photo- Social Media

Meerut News: लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उत्तर प्रदेश में जाट वोटों को लेकर बीजेपी और रालोद के बीच लड़ाई तेज हो गई है। एक अक्टूबर को मेरठ में हुई जाट संसद में जाट समुदाय के कई बड़े नेता नहीं दिखे। इससे पहले मेरठ में ही 24 सितंबर को हुई अखिल भारतीय जाट महासभा की प्रांतीय कार्यकारिणी में भी जाट समुदाय के कई बड़े नेता नहीं दिखे थे।

कुछ साफ तौर पर नहीं कहा गया है-

इक्का-दुक्का नेताओं को छोड़ दें तो हालत यह रही कि जो बड़े नेता अखिल भारतीय जाट महासभा की प्रांतीय कार्यकारिणी में दिखे वो एक अक्तूबर की जांट संसद में शामिल नहीं हुए। यह स्थिति तो तब रही जबकि दोनों ही बैठकों का मुख्य मुद्दा केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने की मांग का था। बड़े नामों के गायब रहने को समुदाय में फूट की तरह भी देखा जा रहा है। हालांकि, जाट संसद से कई बड़े नामों के दूर रहने की वजह को लेकर जाट समुदाय की तरफ से कुछ साफ तौर पर नहीं कहा गया है।

Photo- Social Media

बहरहाल, मेरठ में जाटों की दो बड़ी बैठकों से एक बात साफ है कि जाट ना तो बीजेपी के पक्ष में पूरी तरह लामबंद हैं और ना ही आरएलडी के पक्ष में दिख रहे हैं। यानी साफ है कि जाट बीजेपी और आरएलडी में बंटा दिख रहा है। मेरठ में 24 सितम्बर को अखिल भारतीय जाट महासभा की बैठक के करीब एक सप्ताह बाद यानी एक अक्टूबर को जाट संसद बैठी, जिसे भाजपा का समर्थक संगठन कहा जा रहा है। वहीं अखिल भारतीय जाट महासभा को आरएलडी समर्थक कहा जा रहा है। यही वजह रही कि 24 सितंबर की बैठक में जहां आरएलडी के राष्ट्रीय सचिव डा. राजकुमार सांगवान, सुनील रोहटा जैसे कई छोटे-बड़े नेता शामिल रहे। वहीं एक अक्तूबर की जाट पंचायत में आरएलडी का कोई नेता नहीं दिखा। अलबत्ता बीजेपी के कई बड़े जाट नेता जिनमें केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान भी शामिल थे कार्यक्रम में मौजूद देखे गये।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय का ख़ास योगदान

यहां बता दें कि उत्तर प्रदेश खास कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय का बड़ा योगदान रहा है। ऐसा देखा गया है कि इस समुदाय के मतों की बदौलत ही चुनाव के परिणाम को भी बदला जा सकता है। 1937 से 1977 तक चौधरी चरण सिंह कांग्रेस में थे। तब जाट समुदाय कांग्रेस के साथ था। चौधरी साहब ने कांग्रेस छोड़ी तो यह कांग्रेस से अलग हो गया। नतीजा यह निकला कि जहां पहले कांग्रेस का एकछत्र राज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होता था, वहां बाद में कांग्रेस एक सीट को भी तरसने लगी। यह स्थिति आजतक बनी हुई है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद हुए कुछ चुनावों में जाटो का झुकाव बीजेपी की तरफ देखा गया। लेकिन, किसान आंदोलन और फिर महिला पहलवान उत्पीड़न के बाद से जाटों में बीजेपी के प्रति नाराजगी देखी जा रही है। बीजेपी नेतृत्व इससे वाकिफ भी है। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व जाट मतों के बिखराव को रोकने के लिए आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को अपने पाले में लाने की कोशिशों में लगातार जुटा हुआ है।

Photo- Social Media

आंकड़ों के मुताबिक

दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में जाट वोट खासी अहमियत रखते हैं। इन राज्यों में करीब 130 विधानसभा सीटों और 40 लोकसभा सीटों पर जाट वोट का असर है। आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में करीब एक चौथाई आबादी जाटों की है, वहीं राजस्थान में करीब 15 प्रतिशत जाट आबादी है। उत्तर प्रदेश में जाटों की संख्‍या करीब ढाई फीसदी है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का खासा दबदबा है। इन तीन राज्यों में बीजेपी को जाट समुदाय का समर्थन मिलता रहा है।

वजूद ही जाट वोट बैंक है-

आरएलडी की बात करें तो उसका तो एक तरह से वजूद ही जाट वोट बैंक है। ऐसे में दोनों दलों के लिए जाट वोटों का बहुत महत्व है।



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Shashi kant gautam

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