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Meerut News: गंगा-जमुनी तहजीब! मुस्लिम परिवार चार पीढ़ियों से बना रहा रावण के पुतले
Meerut News: 64 वर्ष के हो चुके मेरठ शहर के शिल्पकार मोहम्मद असलम हर साल लगभग 120 फुट के लगभग 12 पुतले बनाते हैं, जिनमें रावण के भाई कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले भी शामिल हैं।
Meerut News: धार्मिक सौहार्द्र की उम्दा मिसाल पेश करते हुए राजधानी दिल्ली के करीब मेरठ निवासी 64 वर्षीय शिल्पकार मोहम्मद असलम का परिवार पिछले करीब 44 सालों से रावण का पुतला बनाता हुआ आ रहा है। उनके परिवार की चौथी पीढ़ी व्यवसाय में है। उनके 'शागिर्द' हैं, और काम में उनकी सहायता करते हैं। इस बार भी मेरठ शहर के रामलीला मैदान में आयोजित होने वाले रामलीला उत्सव के समापन दिवस के लिए 'रावण' का 60 फुट का पुतला इस परिवार ने तैयार किया है। ये उनके लिए सिर्फ बिजनेस नहीं है। बल्कि पुतले बनाते समय इस बात का ख्याल रखा जाता है की दशहरा के इस खास दिन हिंदू लोग रावण के पुतलों को देखकर वैसा ही महसूस करें जैसा की उन्होंने उसके बारे में सुना और पढ़ा है। दशहरे के दिन जब सैकडों हिंदू परिवार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में इस पुतलों को जलते हुए देखते हैं तो उन्हे खुशी होती है।
प्रत्येक साल 120 फुट के बनाते हैं 12 पुतले
64 वर्ष के हो चुके मेरठ शहर के शिल्पकार मोहम्मद असलम हर साल लगभग 120 फुट के लगभग 12 पुतले बनाते हैं, जिनमें रावण के भाई कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले भी शामिल हैं। वे कहते हैं- रावण का पुतला बनाने की नींव उनके दादा ने अविभाजित भारत के दौरान रखी थी। तब से उनकी चार पीढ़िया रावण के पुतले डिजाइन कर रही है। बकौल असलम,-उनका लक्ष्य पारिवारिक व्यवसाय को अपने चार बेटों को सौंपना है, जो अब जवानी की दहलीज पर आ खड़े हुए हैं। मुस्लिम होने के बावजूद, असलम के धर्म ने कभी भी उनके काम में हस्तक्षेप नहीं किया है, और उन्हें सांप्रदायिक दंगों और कोविड -19 महामारी के दौरान भी राम लीला समिति द्वारा काम पर रखा गया है। असलम का मानना है कि सूक्ष्म हस्तकला पर आधारित उनकी कला को आधुनिक प्रौद्योगिकियों या कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।
एक पुतले की कीमत 1.2 लाख रूपए
सजे-धजे और ग्राहकों को सौंपे जाने के लिए तैयार कई पुतलों की ओर इशारा करते हुए असलम कहते हैं-महंगाई बढ़ने के कारण रावण का पुतला तैयार करने का खर्च बहुत बढ़ गया है। फिलहाल की बात करें तो करीब 30 फीसदी खर्चा बढ़ा है। 1980 में, मेरा पहला ऑर्डर 1,400 रुपये का था। आज, मैं 'रावण' के 120 फुट के पुतले के लिए 1.2 लाख रुपये लेता हूं। असलम कहते हैं- इस काम में मेरा धर्म कभी आड़े नहीं आया। 1982 और 1987 भीषण सांप्रदायिक दंगों के दौरान, या कोविड-19 के दौरान भी राम लीला समिति ने मुझे ना सिर्फ पुतला बनाने का आर्डर दिया बल्कि उन्होंने मुझे कच्चा माल उपलब्ध कराया।
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असलम कहते हैं कि मेरठ के लिए हो या फिर और मेरठ से बाहर, रावण दहन के लिए भैंसाली मैदान में ही पुतले बनाए जाते हैं। जिमखाना मैदान हो या फिर कंकरखेड़ा में आयोजित होनेवाला दशहरा मेला – सभी के लिए असलम का परिवार ही पुतला तैयार करता है। उनका कहना है कि वैसे तो वह अन्य कार्य भी करते हैं, लेकिन पुतला बनाना हमारी आय का मुख्य स्रोत है।