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Meerut News: हाथी से उतरकर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में सांसद, बसपा की राह हुई कठिन
Meerut News: 2019 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली मायावती की पार्टी के कई सांसद सपा, बीजेपी और कांग्रेस में संभावनाएं तलाश रहे हैं। रविवार को अंबेडकरनगर से बसपा सांसद रितेश पांडे ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए हैं।
Meerut News: 2019 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली मायावती की पार्टी के कई सांसद सपा, बीजेपी और कांग्रेस में संभावनाएं तलाश रहे हैं। रविवार को अंबेडकरनगर से बसपा सांसद रितेश पांडे ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए हैं। चर्चा यह भी है कि बीजेपी उन्हें इस सीट से दोबारा उम्मीदवार बना सकती है। गौरतलब है कि साल 2022 के यूपी चुनाव से पहले रितेश पांडेय के पिता और पूर्व सांसद राकेश पांडेय ने भी बीएसपी का साथ छोड़ दिया था।
हालांकि, उन्होंने सपा जॉइन की थी। वहीं सपा ने 2019 में बीएसपी के टिकट पर गाजीपुर से लोकसभा चुनाव जीतने वाले अफज़ाल अंसारी को गाज़ीपुर से ही टिकट दिया है। अमरोहा से सांसद दानिश अली को पार्टी ने पहले ही सस्पेंड कर दिया था। माना जा रहा है कि वो कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। दानिश अली राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान मणिपुर में भी मौजूद थे। जौनपुर सांसद श्याम सिंह यादव के भी कांग्रेस में शामिल होने की संभावना बताई जा रही है। रविवार को आगरा में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में उन्होंने शिरकत की। बसपा के बिजनौर के सांसद मलूक नागर राष्ट्रीय लोकदल के संपर्क में हैं।
ठिकाना तलाश रहे कई सांसद
चर्चा है कि रालोद उन्हें बिजनौर सीट से उम्मीदवार बना सकती है। क्योंकि अभी तक बीजेपी द्वारा रालोद को सीटें देने की घोषणा नहीं की गई है। इसलिए मलूक बसपा में रुके हुए हैं। हालांकि मलूक इन चर्चाओं को गलत बताते हैं। इसके अलावा अंबेडकर नगर सांसद समेत कई अन्य सांसद अन्य पार्टियों में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं। सांसदो के अलावा सांसद सीट के दावेदार भी बसपा के टिकट को जीत की गारंटी नहीं मान रहे हैं। इसलिए उनकी नजरें भी सपा,कांग्रेस के अलावा बीजेपी पर लगी हैं। यही वजह है कि एक साल पहले लोकसभा चुनाव उम्मीदवारों की घोषणा करने वाली बसपा अभी तक एक भी उम्मीदवार घोषित नहीं कर सकी है।
दरअसल, बसपा सांसदों को इस बार बसपा के टिकट पर दिल्ली पहुंचना मुश्किल लग रहा है। वजह मायावती का अकेले चुनाव लड़ना है। पिछली बार गठबंधन होने से सिर्फ जिसके खाते में जो सीटें आईं, उस पर केवल गठबंधन लड़ा था, इसलिए जीत मिल गई थी। सांसदों को पता है कि अगर इस बार टिकट भी मिल जाता है तो सामने बीजेपी के अलावा सपा-कांग्रेस गठबंधन का उम्मीदवार होगा, जोकि बहुत चुनौतीपूर्ण है।
बसपा का जनाधार
2012 के बाद से बसपा ढलान पर है। हालांकि 2019 में 10 सीटें जीतकर मायावती ने अपनी ताक़त दिखाई थी। इस चुनाव में बसपा सपा के साथ चुनावी मैदान में थी। 2014 में बसपा जब अकेले लड़ी थी, जब वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से अपना नाता तोड़ लिया था। इसके बाद हुए यूपी के 2022 विधानसभा चुनावों में बसपा अकेले मैदान में थी। इस चुनाव में बसपा सिर्फ़ एक सीट जीत सकी थी।
बहरहाल,जिस तरह बसपा सांसद हाथी से उतरकर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में हैं उससे अब बसपा के लिए लोकसभा चुनाव की राह कठिन होती नजर आ रही है।