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Meerut News: सियासी जमीन वापस पाने के लिए जाट आरक्षण के बहाने रालोद कर रही इमोशनल कार्ड का इस्तेमाल
Meerut News: पश्चिमी यूपी में जाट मतदाताओं के बीच अपने आधार को दोबारा हासिल करने में जुटी राष्ट्रीय लोकदल एक बार फिर जाट आरक्षण का मुद्दा उठाकर वेस्ट यूपी की राजनीति को गरमाने की तैयारी है।
Meerut News: पश्चिमी यूपी में जाट मतदाताओं के बीच अपने आधार को दोबारा हासिल करने में जुटी राष्ट्रीय लोकदल एक बार फिर जाट आरक्षण का मुद्दा उठाकर वेस्ट यूपी की राजनीति को गरमाने की तैयारी है। तय रणनीति के तहत रालोद मुखिया जयंत चौधरी के निर्देश पर रालोद के तमाम छोटे-बड़े नेता की अखिल भारतीय जाट महासभा द्वारा मेरठ में 24 सितंबर को खिर्वा रोड स्थित शगुन फार्म में आयोजित होने वाले जाट सम्मेलन को सफल बनाने में जुटे हैं। इसके लिए रालोद नेता इमोशनल कार्ड का भी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं।
अपना अस्तित्व बचा लो
रालोद नेताओं ने "अपना अस्तित्व बचा लो'' का नारा दिया पार्टी के नेता गांव-गांव पहुंचकर "एक नहीं हुए तो खत्म हो जाएंगे'' जैसे भावनात्मक नारे लगाकर जाटों से अपने संबंधों की दुहाई दे जाटो को रालोद के पक्ष में लामबंद करने की कोशिशों में जुटे हैं। अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष प्रताप चौधरी के साथ जनसंपर्क कर रहे राष्ट्रीय लोकदल के पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी डॉ. राजकुमार सांगवान कहते हैं- चौधरी अजित सिंह के प्रयासों से जाट समाज को केंद्र में आरक्षण मिला था। जिसे साजिश के तहत, भेदभाव पूर्ण सोच के चलते, व कमजोर पैरवी करके भाजपा सरकार ने ख़त्म कराया है।
दरअसल, वेस्ट यूपी की राजनीति में जाट समाज का दखल हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। किसान आंदोलन हों या दूसरे सामाजिक फैसले, उनमें जाट समाज की मजबूत छाप देखने को मिलती रही है। देश में 65 लोकसभा सीटों पर जाट असरदार हैं। वेस्ट यूपी में पांच दर्जन से ज्यादा सीटों पर जाट वोटर निर्णायक की स्थिति में हैं। कई सीटों पर इनकी संख्या 20 से 25 फीसदी तक है।
मुजफ्फरनगर दंगों के जाट वोटर हुए भाजपा की ओर
लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर दंगों के असर के कारण जाट वोटर काफी संख्या में भाजपा की ओर चला गया था। इसमें युवाओं की संख्या ज्यादा थी। पश्चिम के जिलों में मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बागपत, सहारनपुर, शामली, बिजनौर, जेपी नगर, गौतमबुद्धनगर, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, मुरादाबाद और हापुड़ सहित आगरा, मथुरा और अलीगढ़ की बेल्ट तक जाटों का अच्छा खासा दखल है। रालोद के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन वोटरों का विश्वास हासिल करने की है जो पिछले कई चुनावों से भाजपा के पाले में खड़े हैं।
जाटों को आरक्षण
डा.राज कुमार सांगवान न्यूजट्रैक से बातचीत में कहते हैं- केंद्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण मिलने में 65 साल लगे। लंबा संघर्ष हुआ। रास्ते रोके गए। रेल रोकी गई। दिल्ली का पानी तक रोका गया। सड़क से संसद तक हंगामा चला। दो युवकों की जान चली गई। तब जाकर दो मार्च 2014 को जाटों को यह लाभ मिला था, लेकिन एक साल में ही बीजेपी सरकार की साजिश के तहत सुप्रीम कोर्ट में जाट आरक्षण रद्द हो गया।