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Meerut News: वनस्पति विज्ञान पर अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, घुसपैठी प्रजाति के पादपों के कारण होने वाली समस्याओं की दी गई जानकारी

Meerut News: प्रोफेसर डीए पाटिल ने प्रोफेसर जी पाणिग्रही की स्मृति व्याख्यान देते हुए कहा कि लगभग सभीपुरानी संहिताओं, वृक्ष आयुर्वेद निघंटुओं में इन आक्रामक पौधों की आक्रामकता के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

Sushil Kumar
Published on: 17 Oct 2024 10:17 PM IST
Meerut News: वनस्पति विज्ञान पर अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, घुसपैठी प्रजाति के पादपों के  कारण होने वाली समस्याओं की दी गई जानकारी
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Meerut News (Pic- Newstrack)

Meerut News: आज वनस्पति विज्ञान के 47वें अखिल भारतीय सम्मेलन एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अनेक प्रख्यात वैज्ञानिकों ने स्मृति व्याख्यान एवं आमंत्रित व्याख्यानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के आलोक में नवीन शोध एवं अनुप्रयोगों के बारे में सभी प्रतिभागियों का ज्ञानवर्द्धन किया। आज सम्मेलन के दूसरे दिन प्रोफेसर डेजी आर बातिश, चंडीगढ़ ने प्रोफेसर उमाकांत सिन्हा स्मृति व्याख्यान देते हुए आक्रामक प्रजातियों से होने वाली समस्याओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन पौधों पर सबसे कम देखा गया है। क्योंकि नई परिस्थितियों एवं आवास के अनुकूल होने के बाद ये पौधे स्थानीय प्रजातियों के जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं। ये बदलती परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालते रहते हैं। कुछ पौधे जैसे पार्थ नियम, लैंटाना आदि आयातित या लाकर लगाए गए हैं, जैसे काला बांस, जो अपनी अनुकूलन क्षमता के कारण तेजी से फैलता है तथा स्थानीय पीले बांस एवं अन्य सजावटी फूलदार पौधों पर दबाव बढ़ाता है, तथा धीरे-धीरे उन्हें स्थान से समाप्त कर देता है।

प्रोफेसर डीए पाटिल ने प्रोफेसर जी पाणिग्रही की स्मृति व्याख्यान देते हुए कहा कि लगभग सभी पुरानी संहिताओं, वृक्ष आयुर्वेद निघंटुओं में इन आक्रामक पौधों की आक्रामकता के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इन ग्रंथों में 16-17 से लेकर 200 पौधों का वर्णन है। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते इन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्थानीय फसलों पर बहुत हानिकारक होगा, जिससे भारी आर्थिक क्षति भी होगी। प्रोफेसर एसके सपोरी ने ग्लायऑक्सालेस एंजाइम पर अपने शोध के बारे में बताया कि किस प्रकार तीन प्रकार के ग्लायऑक्सालेस पौधों के विभिन्न विकास चक्रों को प्रभावित करते हैं। आश्चर्यजनक रूप से यह एंजाइम न केवल पौधों में बल्कि सूक्ष्म जीवों में भी पाया जाता था और उनकी वृद्धि और विकास में भी भाग ले रहा था। यह जैव उत्प्रेरक एथिलीन संश्लेषण के कारण होने वाले फलों के पकने को एक स्तर पर नियंत्रित करने और पानी की कमी से निपटने का भी काम करता है।

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के निदेशक डॉ. एए माओ ने पूरे भारत में किए गए वनस्पति सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला देते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझाया। डॉ. नवीन अरोड़ा ने ऐसा माइक्रोबियल बायोफर्टिलाइजर फार्मूला बनाया जिसे हैदराबाद की एक कंपनी पूरे देश में बेच रही है। इस खाद की कुछ बूंदें एक लीटर पानी में मिलाने से बंजर जमीन भी उपजाऊ हो जाती है। इसमें लवणीय मिट्टी में रासायनिक खादों का उपयोग किए बिना पौधों की उर्वरता क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने वाले सू डोमनोद, राइजोबिया, बैसिलस, ट्राइकोडर्मा आदि का मिश्रण इस्तेमाल किया गया है। इससे पौधों में तनाव सहन करने और उत्पादन बनाए रखने की क्षमता का आकलन किया गया है। प्रोफेसर राम लखन सिंह सिकरवार ने वृक्ष आयुर्वेद का विस्तृत विवरण देते हुए बताया कि वनस्पति विज्ञान के जनक थियोफ्रेस्टस नहीं बल्कि ऋषि पराशर थे।

डॉ. राकेश पांडेय ने कैनोरहेबडाइटिस एलिगेंस नेमाटोड के माध्यम से औषधीय सुगंधित पौधों के एंटी एजिंग का उपयोग कर न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों को नियंत्रित करने की विधि बताई। मानव मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामाइन का संतुलन बनाए रखने वाले एंजाइम को नियंत्रित करने का काम इस निमेटोड के जरिए किया जा सकता है। इन अंगों को गुणा करने के लिए यह एक अद्भुत जैविक माध्यम है। प्रोफेसर सी मनोहराचारी ने सूक्ष्मजीवों के बारे में हमारे ज्ञान की अपूर्णता पर शोध की आवश्यकता पर बात की। प्रोफेसर के गोस्वामी जी ने जैव चुंबकीय प्रभाव के माध्यम से गुणसूत्रों के मॉडलिंग को विस्तार से समझाया। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विधु साने ने जड़ों की वास्तुकला में ट्रांस क्रिएशन फैक्टर की भूमिका में संपादन के माध्यम से किए जा सकने वाले परिवर्तनों के बारे में बताया, जो जलवायु परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद करेंगे। कार्यक्रम समन्वयक डॉ जितेंद्र सिंह, कार्यक्रम सचिव शेषु लवानिया, प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह, गौरव प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा, प्रोफेसर बिंदु शर्मा, डॉ लक्ष्मण नागर, डॉ नितिन गर्ग, डॉ दिनेश पवार, डॉ अश्वनी शर्मा, डॉ अजय शुक्ला, डॉ अमरदीप सिंह, डॉ प्रदीप पवार, डॉ अजय कुमार आदि मौजूद रहे।

Ragini Sinha

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