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Meerut News: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में 'भारतीय ज्ञान परंपरा शिक्षक प्रशिक्षण' के दो दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन

Meerut News: प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा कहा कि "नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई सूत्र भारतीय ज्ञान परम्परा के शामिल किए गए हैं। वर्तमान समय तक प्रशासनिक एवं शासकीय इच्छा शक्ति की कमी के कारण अभी तक नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू नहीं हो पाई थी।

Sushil Kumar
Published on: 29 March 2024 4:28 PM GMT
A two-day workshop on Indian Knowledge Tradition Teacher Training was organized at Chaudhary Charan Singh University
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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में 'भारतीय ज्ञान परंपरा शिक्षक प्रशिक्षण' के दो दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन: Photo- Newstrack

Meerut News: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के चाणक्य सभागार में राजनीति विज्ञान विभाग एवं भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद के संयुक्त तत्वाधान में "भारतीय ज्ञान परंपरा शिक्षक प्रशिक्षण" के दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस मौके पर आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा कहा कि "नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई सूत्र भारतीय ज्ञान परम्परा के शामिल किए गए हैं। वर्तमान समय तक प्रशासनिक एवं शासकीय इच्छा शक्ति की कमी के कारण अभी तक नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू नहीं हो पाई थी।

उन्होंने कहा कि राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ कई वर्षों से भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित आयामों पर कार्य कर रहा है। वह पिछले वर्ष भारतीय ज्ञान परंपरा से सम्बन्धित शोध केंद्र का आरंभ भी विभाग में किया गया है और अभी तक लगभग 500 पुस्तके राजनीति विज्ञान विभाग में भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित साहित्य पर उपलब्ध हैं और आगे भी इस कार्य पर बहुत ही तेजी से कार्य चल रहा है।


भारतीय ज्ञान परंपरा पर अभी और अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता

प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा ने कहा कि राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ कई वर्षों से भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित आयामों पर कार्य कर रहा है। प्रोफेसर काशीनाथ जेना (कुलपति, हिमालयी विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड) ने विशिष्ट वक्तव्य में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा एवं संस्कृति पर पूरा विश्व अविलम्बित है। लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परंपरा पर अभी और अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा का वैशिष्टेय उसका आध्यात्म है भारतीय ज्ञान परंपरा को हम जीते हैं और जब तक हम उसे अपने जीवन में या आचार व्यवहार में उतारेंगे नहीं तब तक भारतीय ज्ञान परंपरा हमारे व्यवहार में परिलक्षित नहीं होगी। मुख्य वक्ता जे0 नंदकुमार (राष्ट्रीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह, नई दिल्ली) ने अपने वक्तव्य में कहा कि हम बिना गहराई में जाए हुए भारतीय ज्ञान परम्परा के बारे में हम नहीं जान सकते। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलना होगा और भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवन दृष्टि को अपनाना होगा और उसको अपने आचार व्यवहार में शामिल भी करना होगा जिससे वह हमारे जीवन दृष्टि में परिलक्षित हो सके।

परंपराएं कभी समाप्त नहीं होती

प्रोफेसर संजय द्विवेदी (पूर्व महानिदेशक, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली) ने विशिष्ट वक्तव्य में कहा कि वर्तमान आधुनिक सभ्यता का रास्ता हमारी संस्कृति एवं ज्ञान विज्ञान से होकर जाता है पश्चिम की जो ज्ञान परंपरा है उसका उद्देश्य केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना है जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा की विशेषता लोक कल्याण एवं विश्व कल्याण है। उन्होंने अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती आदि विद्वानों के उदाहरण से भारतीय ज्ञान परंपरा की विशेषता के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि भारत को भारत की आंख से देखना चाहिए ना की पाश्चात्य एवं औपनिवेशिक मानसिकता से। मुख्य अतिथि प्रोफेसर मनोज दीक्षित (कुलपति, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान) ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय जीवन दृष्टि एवं ज्ञान परंपरा पर ही पूरा विश्व अवलंबित है। भारत है, तो विश्व है। उन्होंने कहा कि परंपराएं कभी समाप्त नहीं होती बल्कि वह देशकाल परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर बदलती रहती है। उन्होंने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हमें भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा और उसके लिए हमें अधिक अनुसंधान एवं अध्ययन कार्य करना होगा और सही संदर्भ भी देने होंगे जिससे हम पाश्चात्य विद्वतजनों के मुंह बंद कर सके।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र (पूर्ण संख्याध्यक्ष, समाज विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश) ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में या भारतीय ज्ञान परंपरा में आधुनिक समय की जो ज्ञान विज्ञान है वह वेदों, रामायण महाभारत उपनिषदों आदि ग्रन्थों में पहले से ही विद्यमान है। उन्होंने लगभग 151 विधाओं के बारे में बताया जो भारतीय ग्रन्थों में उल्लेखित की गई है। डॉ0 सुषमा रामपाल (सहायक आचायर्, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ) ने कार्यशाला में उपस्थित अतिथियों, पत्रकार बंधुओ, कर्मचारी विभिन्न विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय से आए अध्यापक, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।

सारस्वत अतिथि प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह (निदेशक दीनदयाल उपाध्याय, केंद्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश) ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा के वैशिष्टेय पर प्रकाश डाला। उन्होंने विनय सरकार की पुस्तक (हिंदू थिअरी आफ इंटरनेशनल रिलेशंस 1919) के बारे में बताया कि उसे पुस्तक के पश्चात भारतीय ज्ञान परंपरा के बारे में विशेष रूप से आगे कोई कार्य नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि शोधार्थियों को वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भारतीय संस्कृति से संबंधित कार्य करना चाहिए। सुश्री आयुषी केतकर (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) ने विशिष्ट वक्तव्य में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर अधिक कार्य नहीं हो पाया है उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा में जननी एवं मातृ शक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में प्राचीन समय से ही नारीवादी चिंतन था जो आधुनिक समय के नारीवादी आंदोलन से भिन्न है।


आधुनिक वैज्ञानिकता के प्रमाण ग्रन्थों में भी

प्रोफेसर राजवीर सिंह दलाल (अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा, हरियाणा) ने विशिष्ट वक्तव्य में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में चक्र संहिता, विज्ञान पद्धति एवं आधुनिक वैज्ञानिकता के प्रमाण विभिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं। जिनका उपयोग आधुनिक विज्ञान में भी किया जा रहा है, भारतीय विज्ञान परंपरा प्राचीन समय से ही समृद्ध एवं उन्नत रही है। इसके पश्चात कार्यशाला में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए कार्यशाला में प्रतिभाग करने वाले प्रतिभागियों को कार्यशाला से संबंधित अभ्यास करने के लिए पाठ्यक्रम से संबंधित समूह वर चर्चा की गई जिसमें तीन वर्ग बांटे गए वाल्मीकि, वेदव्यास एवं चाणक्य। और इन तीनों वर्गों में अलग-अलग ग्रुप बनाकर अलग-अलग प्रतिभागियों ने अभ्यास से संबंधित पाठ्यक्रम से संबंधित अभ्यास किया और इसके पश्चात प्रस्तुति समूहवार की गई जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा संबंधित प्रथम प्रश्न पत्र भारतीय विचार दृष्टि एवं द्वितीय प्रश्न पत्र समाज विद्याः भारतीय दृष्टि मुक्त पाठ्यक्रम से संबंधित पाठ्यक्रम का चुनाव किया गया।

इस सत्र में मुस्कान बंसल ने अतिथियों का धन्यवाद किया। कार्यशाला की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने की, प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा, प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा, डॉक्टर सुषमा रामपाल, डॉक्टर चंचल चौहान, डॉक्टर जयवीर राणा, डॉक्टर भूपेंद्र प्रताप सिंह, डॉक्टर देवेंद्र उज्जवल, डॉक्टर नितिन त्यागी, डॉक्टर रवि पोसवाल, यतेन्द्र कुमार, आंचल चौहान, सुमित देशवाल, नन्दनी, प्रियंका तँवर, डॉ0 सुमित लोहिया, सचिन गिरि, गगन सिखारवर, विशाल कुमार आदि का कार्यशाला में संयोग रहा।

Shashi kant gautam

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