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तो क्या सत्यपाल मलिक नई राह चुनेंगे, जाने किसानों पर ऐसा क्यों बोले मलिक

विधायक के तौर पर राजनीतिक जीवन शुरू करे वाले मलिक लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं। वह जनता दल और बीजेपी के साथ राजनीति में सक्रिय रहे। 21 अगस्त 2018 को जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल नियुक्त किये जाने से पहले तक वह सक्रिय राजनीति में रहे।

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Published on: 15 March 2021 11:43 AM GMT
तो क्या सत्यपाल मलिक नई राह चुनेंगे, जाने किसानों पर ऐसा क्यों बोले मलिक
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तो क्या सत्यपाल मलिक नई राह चुनेंगे, जाने किसानों पर ऐसा क्यों बोले मलिक photos (social media)

मेरठ। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में रविवार को किसानों के पक्ष में दिए गए बयान के बाद बीजेपी और केंद्र सरकार असहज हो सकती है। इससे पहले भी सत्यपाल मलिक ने इस साल जनवरी के अंत में किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसानों से मिलकर समाधान निकालने की अपील करते हुए कहा था कि दुनिया के किसी भी आंदोलन को दबाकर या कुचलकर शांत नहीं किया जा सकता है।

सत्यपाल मलिक के नई राह चुनने की अटकलें हुई तेज

ऐसे में राजनीतिक हलकों में सत्यपाल मलिक के नई राह चुनने की अटकलें तेजी से गश्त करने लगी हैं। इन अटकलों को हवा खुद सत्यपाल मलिक के भाषण से मिलती है जिसमें उन्होंने कहा कि राज्यपाल का काम चुप रहना, हस्ताक्षर करना और आराम करना होता है लेकिन मेरे से चुप नहीं रहा जाता। इसलिए किस दिन मेरी छुट्टी हो जाए पता नहीं।

सत्यपाल मलिक अभी हैं मेघालय के राज्यपाल

सवाल उठ रहे हैं कि आखिर,राज्यपल जैसे संवैधानिक पद पर रहते सत्यपाल मलिक ऐसे बयान क्यों दे रहे हैं जिसके कारण बीजेपी और केंद्र सरकार को असहज होना पड़ रहा है। दरअसल,उम्र के जिस पड़ाव पर सत्यपाल मलिक पहुंच गए हैं उसमें उन्हें बीजेपी में अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिखता है। मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बागपत के निवासी करीब 75 वर्षीय सत्यपाल मलिक अभी मेघालय के राज्यपाल हैं।

मालिक इससे पहले लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं

इससे पहले वह जम्मू-कश्मीर, गोवा, बिहार, ओडिशा के भी राज्यपाल का पदभार संभाल चुके हैं। विधायक के तौर पर राजनीतिक जीवन शुरू करे वाले मलिक लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी रहे हैं। वह जनता दल और बीजेपी के साथ राजनीति में सक्रिय रहे। 21 अगस्त 2018 को जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल नियुक्त किये जाने से पहले तक वह सक्रिय राजनीति में रहे। राज्यपाल नियुक्त होने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता पर विराम लग गया। सो,अब सत्यपाल मलिक संवैधानिक प्रमुख का पद छोड़ सक्रिय राजनीति में लौटने के लिए आतुर हैं। इसके लिए वर्तमान समय उन्हें बेहद उपयुक्त लग रहा है। यही वजह है उनके ताजा किसान प्रेम की बताई जा रही है।

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क्या खत्म होने वाला है सत्यपाल मलिक का कार्यकाल

दरअसल,राजनीति के घाघ खिलाड़ी सत्यपाल मलिक यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके राज्यपाल का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। इसलिए वह सरकार का विरोध करते हुए किसानों के समर्थन में बयान दे रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो सत्यपाल मलिक खुद सरकार को उन्हें पद से हटाए जाने का निमंत्रण दे रहे हैं। क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि वर्तमान हालात में राज्यपाल पद से उन्हें हटाया जाना राजनीति के लिहाज से उनके पक्ष में होगा। जबकि बीजेपी सरकार उन्हें इस तरह पद से हटा कर उन्हेंकिसानों के बीच शहीद होने का मौका नही देना चाहती है। यही वह वजह है जिसके कारण वह अभी तक भी राज्यपाल के पद पर बने हैं।

बीजेपी के स्थानीय एक बड़े नेता के अनुसार बीजेपी नेतृत्व यह अच्छी तरह जानता है कि रायपाल पद से हटने के तुरन्त बाद सत्यपाल मलिक दिल्ली बार्डर पर किसानों के साथ बैठे दिखेंगे। जाहिर हैकि इससे किसान आंदोलन की और ताकत बढ़ेगी जोकि बीजेपी सरकार नही चाहती है।

जानें सत्यपाल मलिक की बीजेपी में एंट्री

यहां बता दें कि बीजेपी में सत्यपाल मलिक की एंट्री 2004 में हुई थी। जब बीजेपी में आए, तब पॉलिटिक्स में एक तरह से बेरोजगार ही थे। बीजेपी की तरफ से इन्होंने चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा। मगर जीत नहीं पाए. हारने के बाद भी बीजेपी में इन्हें अहमियत मिली। वजह शायद ये थी कि सत्यपाल मलिक जाट नेता हैं। पार्टी ने इन्हें संगठन के काम में लगाया।

कृषि आंदोलन

जाट आंदोलन के बाद के दिनों में जाटों के बीच बीजेपी को लेकर नाराजगी बढ़ी। इसे दूर करने की कोशिश में ही शायद सत्यपाल मलिक की अहमियत और बढ़ गई। सितंबर 2017 में पार्टी ने उन्हें बीजेपी किसान मोर्चा की जिम्मेदारी से आज़ाद करके फिर बिहार का राज्यपाल बनाया गया। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति भवन भेजने के बाद ये जगह खाली हो गई थी। कहा गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जाटों को अपनी तरफ लुभाने के लिए ऐसा किया गया।

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सत्यपाल मलिक को कई पार्टियों का है अनुभव

अगस्त 2018 में सत्यपाल मलिक बिहार से जम्मू-कश्मीर पहुंचे। उनसे पहले जम्मू-कश्मीर के गवर्नर थे एन एन वोहरा। दशकों बाद एक पॉलिटिशन को जम्मू-कश्मीर का गवर्नर बनाया गया था। इससे पहले इस पोस्ट पर किसी प्रशासकीय अधिकारी, या डिप्लोमैट या फिर किसी पुलिस अफसर या सेना से जुड़े शख्स को नियुक्त करने की रवायत चली आ रही थी। सत्यपाल मलिक को कई पार्टियों का अनुभव है। बहरहाल,सत्यपाल मलिक के ताजा बयानों के बाद उनके बीजेपी छोड़ने की चर्चाओं में कितना दम है इसका पता तो आने वाले समय में ही चल सकेगा।

रिपोर्ट : सुशील कुमार

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