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मजदूरों का दर्द: 'सरकार से नहीं मिला एक रोटी का सहयोग, कर्ज लेकर घर वापसी'
एक ट्रक में कम से कम 40 लोग होते हैं। किसी-किसी में तो 60 या उससे भी ज्यादा लोग ठूंसे होते हैं। हर किसी से चार हजार से पांच हजार रुपए किराए के पड़ रहे हैं।
कन्नौज। ये देशव्यापी लॉकडाउन जो न कराए। बड़े शहरों में करीब दो महीनों से फंसे लोग घर जाने के लिए हर सितम सह रहे हैं। जिनके पॉकेट में पैसे नहीं थे, वह पैदल और साइकिल से ही निकल पड़े। जो पैदल जाने की हिम्मत नहीं जुटा सके वह किराए की गाड़ियों पर हजारों रुपए खर्च कर रहे हैं। मुश्किल की इस घड़ी में गाड़ी वाले बुकिंग पर जाने के लिए बमुश्किल तैयार हो रहे हैं। उन्हें भी रास्ते में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
श्रमिक ट्रेन-बस नहीं मिलने से मुंहमांगा किराया अदा करके सफर करने की मजबूरी
लखनऊ-आगरा प्रवेश नियंत्रित एक्सप्रेस-वे से होकर गुजरने वालों से बस थोड़ा सा पूछने भर की देर होती है, उनकी परेशानी जुबान से कम आंखों के आंसू संग ज्यादा बाहर आती है। सफर के लिए मुश्किलों का सामना करने का जिंदगी का कड़वा तजुर्बा उनकी भरभराई आवाज से मालूम पड़ता है। ट्रेन और रोडवेज बसों की उम्मीद में भूखे-प्यासे रहे लोग अब किसी भी तरह अपने-अपने संसाधनों से घर वापस जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें मोटी रकम चुकानी पड़ रही है।
टेम्पो में 11-12, कार में आठ से 10 लोग कर रहे हैं सफर
हरियाणा के सोनीपत से पूर्वांचल या बिहार जाने के लिए ट्रकों की बुकिंग डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा में हुई। एक ट्रक में कम से कम 40 लोग होते हैं। किसी-किसी में तो 60 या उससे भी ज्यादा लोग ठूंसे होते हैं। हर किसी से चार हजार से पांच हजार रुपए किराए के पड़ रहे हैं।
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इसी तरह मुम्बई से 11 लोगों को लेकर बहराईच जा रहा टेम्पो सभी से पांच-पांच हजार रुपए लेकर चला है। गाजियाबाद-नोएडा से गोरखपुर, आजमगढ़ तक कार में भी सफर करने वालों को 30 से 50 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। कार से बिहार जाने वालों की परेशानी तो पूछिए ही मत। एक कार में सात से आठ लोग सफर कर कर रहे हैं।
ट्रेन मिलने में दुश्वारियां, कर्ज जुटाकर टेंपो से निकले
मुंबई के नागपाड़ा से टेंपो पर सवार होकर बहराइच जा रहे लोगों ने बताया कि जब 50 दिनों तक सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो यह कदम उठाया है। किसी ने कर्ज लेकर तो किसी ने घर से पैसे मंगाया और मिलकर टेंपो बुक किया। 11 लोग हैं, सभी से पांच-पांच हजार रुपए पड़े। ट्रेन की मदद मिलती तो यह परेशानी नहीं देखनी पड़ती। ट्रेन के लिए काफी कोशिश, लेकिन उसके लिए बहुत दौड़े, कई फार्म भी भरा, लेकिन बात नहीं बनी। आखिर में टेंपो से ही चल पड़े।
बांधी गृहस्थी, टेंपो से चल दिए पश्चिम बंगाल
गुड़गांव में काम करने वाले सज्जाफ ने बताया कि वह अपने परिवार को लेकर पश्चिम बंगाल जा रहे हैं। बस से आठ हजार रुपए एक आदमी का मांग रहा है, इतना पैसा है नहीं जो जाएं। खुद का टेंपो लिया और परिवार को लेकर घर जा रहे हैं। सज्जाफ की पत्नी ने बताया कि खाने का पैसा नहीं है तो इतना किराया कहां से दें। रास्ते में टेंपो खराब हो गया था, पुलिस ने हेल्प की और मिस्त्री बुलवाया। तीन सौ रुपए दि और टेंपो सही हो गया। वही गुड़गांव से कार से चार साथियों के साथ जा रहे एक युवक ने बताया कि सरकार की एक रोटी का सहयोग नही मिला। घर से रुपए मंगाए, तब जा रहे हैं।
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पहले पैदल निकले, थक गए तो कार बुक कर ली
अनिल मिश्र ने बताया कि वह गुडगांव से यूपी के प्रतापगढ़ जा रहे हैं। लॉकडाउन में खाने को कुछ मिल नहीं रहा है। चौपहिया वाहन से मजबूरी में जा रहे हैं। इनके साथ कार में आगे बैठे एक व्यक्ति ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चों के पैरों में में छाले पड़ गए हैं। पहुंचना तो है ही, कब तक सफर में दिक्कत झेलें, इसलिए दोस्त ने सिर्फ पेट्रोल भरवाने को कहकर कार हवाले कर दी।
घर से रुपए मंगाए तब जुटाया प्राइवेट बस का किराया
प्राइवेट स्लीपर बस से जा रहे सरफराज ने बताया कि वह गुडगांव से चले हैं, पश्चिम बंगाल पहुंचना है। किराए के साढे पांच-पांच हजार रुपए दिए तब बैठने को मिला। सरकार से कोई राहत नहीं मिल रही है। इनके साथ जा रहे युवक बोले, सिर्फ वादे किए जा रहे हैं। सरकार की सिर्फ कहने की बातें हैं। घर से पैसा मंगाया है तब निकल सके हैं।
रिपोर्टर- अजय मिश्रा
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