Mirzapur News: कोरोना से तबला कारोबार चौपट, मालिक बन गए कारीगर, कारीगर अब काम की तलाश में

Mirzapur News: कोरोना महामारी लोगों की जान लेने के साथ ही कारोबार को भी चौपट कर रहा है। मिर्जापुर के बने तबले की थाप अब थम सी गई है।

Brijendra Dubey
Report Brijendra DubeyPublished By Vidushi Mishra
Published on: 3 July 2021 10:51 AM GMT (Updated on: 3 July 2021 10:54 AM GMT)
tabla, dholak, used foreign soil, but after the lockdown, the echo of the beats of these tablas has stopped.
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तबला कारोबार चौपट, मालिक बन गए कारीगर (फोटो-सोशल मीडिया)

Mirzapur News: तबला, ढोलक, का थाप विलायती धरती पर गुजता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद इन तबलों के थाप की गूंज बंद सी हो गई है। जिस कारखाने में जहां मजदूरो से तबला बनवाने का काम होता था, आज उसी कारखानों में आर्डर नहीं मिलने की वजह से मालिक खुद कारीगर बन कर काम कर रहे हैं।

कोरोना वायरस महामारी लोगों की जान लेने के साथ ही कारोबार को भी चौपट कर रहा है, छोटा कारोबार हो या बड़ा कारोबार कोरोना ने सबको प्रभावित किया हैं, विदेशों तक में सुनाई देने वाली मिर्जापुर के बने तबले की थाप अब थम सी गई है।

जिन कारखानो में कभी मजदूर तबला बनाने का काम करते थे, आज आर्डर नहीं मिलने की वजह से मालिक खुद कारीगर बन कर तबला बनाने का काम कर रहे हैं, कोरोना से आर्डर नहीं मिलने के वजह से मजदूरों के साथ कारोबारी भी बेकार हो गए है।

तबला कारोबार चौपट


कोतवाली शहर के रमईपट्टी के गौरियान गली में कई सालों से कई परिवार तबला बनाने का काम करते हैं, लेकिन जब से कोरोना वायरस और लॉकडाउन का ग्रहण व्यापारियों पर पड़ा, तब से कारोबार चौपट हो गया। पहले यहां पर तबला बनाने वालों का काम ठीक चल रहा था, देश के साथ ही विदेशों से भी ऑर्डर मिल रहे थे, यहां के बने तबले, ढोलक, ताश के मांग खूब थे।

मगर अब इसकी मांग बिल्कुल कम हो गई है। जिसके चलते तबले बनाने के कारखानों में अब ताले लगते जा रहे हैं और कारीगर इस काम को छोड़कर दूसरे कामों की तलाश में हैं। कुछ कारीगर तो रिक्शा चलाने का काम शुरू कर दिया है तो कुछ लेबर का काम कर रहे हैं कुछ को तो अभी भी काम की तलाश में लगे हैं।


कोरोना की वजह से तबला कारोबार चौपट हो गया है, आर्डर कम मिलने के चलते मालिक खुद कारीगर बन गए है। गौरियान मोहल्ले के घरों में तबला, ढोलक, ताश बनाने का काम सैकड़ों मजदूर करते देखे जाते थे। मगर लॉकडाउन के बाद अब कारखानों में खुद मालिक कारीगर बनकर तबला बनाते देखे जा रहे है।

वर्षों से तबला, ढोलक, ताश का कारोबार कर रहे निसार आलम और आरिफ अली बताते हैं कि लॉकडाउन के पहले यहां का कारोबार बहुत अच्छा था, खूब आर्डर मिलते थे। जिससे मालिक के साथ ही कारीगरों की भी अच्छी कमाई हो जाती थी। एक कारखाने में कम से कम 5 मजदूर काम करते थे। कुल 20 कारखाने चल रहे थे।


अब धीरे-धीरे करके कारखान बंद हो रहे हैं क्योंकि आर्डर नहीं मिल रहा है.कई कारखाने बन्द, कारीगर बेरोजगार मालिक के साथ ही कारीगरों को भी लॉकडाउन ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। जिस कारखाने में 5 से 6 मजदूर तबला बनाने का काम करते थे। आज उस कारखाने में एक या दो कारीगर काम करते मिलेंगे।

कारीगर आसिफ अली बताते हैं कि यहां पर 10 से 12 कारखाने इस समय बंद हो चुके हैं। यहां के कारीगर अब घर बैठ गए हैं या काम की तलाश में लगे हैं। मालिक को आर्डर न मिलने की वजह से अब कारीगर भी भुखमरी के कगार पर आ गए हैं।

देश के साथ विदेशों तक है तबले की मांग

तबला, ढोलक, ताश खास लकड़ियों से बनाया जाता है। नीम, आम, शीशम की लकड़ियां और बकरे, ऊँट की खाल से कारीगर अपने हाथों से तैयार करते हैं। यहां के बने तबला, ढोलक, ताश की मांग महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब के साथ ही अमेरिका, इंडोनेशिया, नेपाल, कनाडा, इंग्लैंड तक होती है। तैयार तबला, ढोलक, ताश को विमान या पानी के जहाज के माध्यम से विदेश भेजते थे।

लॉकडाउन के बाद से इनके पास ऑर्डर नहीं आ रहा है, साथ ही कोरियर भी महंगा हो गया है। पहले 30 रुपए प्रति किलो ग्राम कोरियर का दाम लगा करता था अब 150 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है। कच्चे माल की कीमत भी बढ़ गई है।

यहां के कारोबार की थोड़ा बहुत महाराष्ट्र, दिल्ली में मांग है, उसी के सहारे काम चल रहा है. कारोबारियों की सरकार से मांग है कि कारीगरों को रोजगार भत्ता दिया जाए और उनको कहीं अच्छी जगह काम दिलाया जाए।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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