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Mirzapur News: कैसे उगाएं एक वातावरण में अनेकों सब्जियां, जानिए पॉलीहाउस खेती के बारे में

Mirzapur News: मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर पहाड़ के किनारे का गांव है कुबरी पटेहरा,यहां एक 28 वर्षीय युवा किसान बालेंद्र प्रताप सिंह है।

Brijendra Dubey
Report Brijendra DubeyPublished By Shweta
Published on: 2 July 2021 10:42 AM IST
पाली हाउस
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पाली हाउस

Mirzapur News: मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर पहाड़ के किनारे का गांव है कुबरी पटेहरा,यहां एक 28 वर्षीय युवा किसान बालेंद्र प्रताप सिंह है। बालेंद्र प्रताप सिंह बीकॉम स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण किए है। उन्होंने शिक्षा दीक्षा के बाद वह लखनऊ में नौकरी करते थे। उसके बाद वह वहां से नौकरी छोड़ कर गांव चले आए। बालेंद्र सिंह गांव कनेक्शन से बातचीत में बताते हैं कि उन्होंने कुल 20 लाख 60 हजार की लागत से पाली हाउस तैयार किए हैं।

वह बताते हैं कि पाली हाउस में 12 महीने सब्जियों की खेती की जा सकती है क्योंकि प्राकृतिक वातावरण से पाली हाउस के अंदर उगाए जा रहे हैं सब्जियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वह बताते हैं कि पाली हाउस के अंदर सुरक्षित और जैविक विधि से खेती की जा सकती है, पारंपरिक खेती में बहुत नुकसान होता है।

ग्रीन हाउस में संरक्षित खेती होती है, वह बताते है कि यह पहाड़ी इलाका है, इसलिए यहां पर पानी की समस्या है, जिसकी वजह से सिंचाई के लिए ड्रिप प्रणाली का उपयोग करते है। उनका कहना है कि सभी किसान भाई कम पानी में ज्यादा सिंचाई कर सकते है, खुले में जो किसान खेती कर रहे है वह भी ड्रिप प्रणाली की सिंचाई का उपयोग करे, बेहतर उत्पादन होगा।

घास नहीं उगने के लिए लगाई मलचिंग

पाली हाउस में खेती करते हुए लोग

बालेंद्र सिंह बताते हैं कि वह मेड बनाकर उस पर बीज लगाकर मेड के ऊपर मल्चिंग लगाकर ढक दिए हैं जिससे किसी प्रकार की घास नहीं उगता है। मल्चिंग लगाने से बीज की ग्रोथ अच्छी होती है जिससे तापमान सामान्य रहता है फसल जल्दी उगता है, वह बताते हैं कि सरकार की तरफ से पाली हाउस के लिए 50 प्रतिशत अनुदान मिल रहा है कुल लागत 20 लाख 60 हजार में कुल उद्यान विभाग की तरफ से 50 प्रतिशत अनुदान जो 10 लाख 30 हजार मिला है। इस पाली हाउस में हम अलग अलग तरीके की खेती कर सकते है, सब्जियों में खीरे की फसल खत्म होने के बाद हम शिमला मिर्च लगाएंगे, रंगीन शिमला मिर्च, कम लागत में अच्छी फसल लगा सकते है, संरक्षित खेती में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। वह बताते हैं कि पाली हाउस में जो खाली जगह होती है उसे हम हाकिज कहते है, वह बताते हैं कि हाफिज जगह में नर्सरी लगाकर पौधे भी तैयार कर सकते हैं और बताते हैं कि अभी हमारे पास बैगन, मिर्च, धनिया तैयार करा रहा हूं।

यूरोपियन प्रजाति का खीरा

पाली हाउस से निकली सब्जी

बालेंद्र सिंह बताते हैं कि जेबी हट्सन प्रजाति का यूरोपियन खीरा है, इसके कई फायदे है, यह खीरा एंटीऑक्सीडेंट होता है, यह खीरा देशी खीरे से बिलकुल अलग है, देशी खीरे का छिलका छिल कर खाया जाता है, लेकिन इसको बिना छिले केवल धूल कर खा सकते है, इसका छिलका बहुत पतला होता है, उनका जो पाली हाउस है वह 2000 वर्ग मीटर का है, जिसके अंदर 2.50 कुंतल तक पैदावार होती थी, लेकिन अब समाप्ति के कगार पर है तब पर भी हम 2 कुंतल तक फसल प्रतिदिन निकल रहा है। अब तक हम 61 कुंतल खीरा हम बेच चुके है, कोरोना काल में कठिनाई का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से खीरा का अच्छा रेट नहीं मिल पाया। लेकिन अगली फसल में लागत निकलने की उम्मीद है। 30 हजार का खीरा बेच चुके है।

एग्रीप्लास कंपनी ने स्थापित किया

पाली हाउस में लगे हुए पौधे

बालेंद्र सिंह बताते हैं यूरोपियन खीरे का बीज एग्रीप्लास् कंपनी में पहला बीज कंपनी ही देती है उद्यान विभाग में सबसे पहले हमने उद्यान अधिकारी मेवा लाल जी से संपर्क किया था वहां से हमारी फाइल बनी जिसके बाद कंपनी ने पूरा सेटअप किया और फसल भी लगाई है। वह बताते हैं कि पानी के लिए एक वाटर टैंक बनवा रखा हूं, जिसकी क्षमता 18 हजार लीटर की है, इस वाटर टैंक में हम पानी संरक्षित कर लेते हैं उसके बाद हम ड्रिप प्रणाली से पानी लेते है, कम पानी में ज्यादा सिंचाई होता है। पहाड़ी एरिया होने की वजह से पानी की बहुत समस्या है, 50 हजार की लागत से एक डिप होल बोरिंग कराया था। वह बोरिंग सफल नहीं हुई, जिसके बाद दूसरी बोरिंग कराया गया तो वह सफल हो गया।

पाली हाउस के चारों तरफ नालीनुमा गटर लगाया गया है, जिससे बारिश का पानी पाली हाउस के छत् के ऊपर का पानी गटर से होकर नीचे गिरता है, वह पानी बर्बाद हो रहा था, जिसकी वजह से किसान बालेंद्र सिंह ने पाली हाउस के चारों तरफ से नाली बनाकर एक तालाब जैसा गड्ढा खोद कर आने वाले समय में वह इस पानी का भी उपयोग करके मछली पालन का व्यवसाय करेंगे।



Shweta

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