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UP-Bihar Politics: लखनऊ में लगे पोस्टर ने बढ़ाई सियासी सरगर्मी, यूपी-बिहार में बड़े खेल के संकेत
Lucknow Poster Politics: लखनऊ में सपा कार्यालय के बाहर टंगा एक पोस्टर शनिवार सुबह से खबरियों चैनलों में छाया हुआ है।
Mission 2024 UP-Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर निकलने के साथ ही देश में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी गतिविधियां बढ़ गई है। आठवीं बार सीएम पद की शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार ने जिस तरह की सक्रियता दिल्ली में दिखाई है, उसे आम चुनाव से पहले बीजेपी विरोधी व्यापक गठजोड़ के गठन के कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। इसमें 80 सांसदों वाले सबसे बड़े प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश की भूमिका सबसे अहम होने वाली है।
बीते 6 सितंबर को बिहार सीएम ने ग्रुरूग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती सपा के संयोजक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी। इस दौरान उनके साथ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी साथ थे। यहीं पर दोनों नेताओं के बीच भविष्य की योजना पर मंत्रणा भी हुई। विपक्षी दलों को साथ लाने के लिए जारी कवायदों के बीच यूपी की राजधानी लखनऊ से एक तस्वीर सामने आई है, जिसने सीएम नीतीश कुमार और अखिलेश यादव नजर आ रहे हैं।
पोस्टर ने बढ़ाई सियासी सरगर्मी
लखनऊ में सपा कार्यालय के बाहर टंगा एक पोस्टर शनिवार सुबह से खबरियों चैनलों में छाया हुआ है। पोस्टर में सीएम नीतीश कुमार और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव नजर आ रहे हैं। पोस्टर के साथ लिखा है - 'यूपी+बिहार= गई मोदी सरकार।' इस पोस्टर को सपा नेता आईपी सिंह ने लगवाया है। माना जा रहा है कि पोस्टर के जरिए सपा ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पीएम मोदी को 2024 के लोकसभा चुनाव में घेरने की नीतीश कुमार की रणनीति के साथ वो साथ है। दरअसल पिछले दिनों दिल्ली में हुई दोनों नेताओं के बीच मुलाकात के दौरान सीएम नीतीश ने अखिलेश को यूपी का अगला नेता बताया था, वहीं अखिलेश ने भी कहा कि वो नीतीश कुमार के साथ हैं।
नीतीश – अखिलेश के साथ आने पर क्या पड़ेगा फर्क
हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार हमेशा से देश की राजनीति के केंद्र में रहे हैं। देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस तभी तक केंद्र में स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में रह सकी, जब तक उसका प्रभाव इन दोनों राज्यों में रहा। यूपी – बिहार में पार्टी के जनाधार में कमी आने के साथ उसके लिए दिल्ली दूर होते गई। वर्तमान में उसकी स्थित जगजाहिर है। यूपी, बिहार के कुल 120 सीटों में पार्टी के पास आज महज दो सीटें हैं।
वहीं इसके उलट इन दोनों राज्यों में बीजेपी की मजबूती ने उसे केंद्र में स्पष्ट बहुमत दिला दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो यूपी की 80 सीटों में बीजेपी के पास 62 और सहयोगी दल अपना दल के पास दो सांसद है। जबकि बिहार में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती थी। 39 में से 17 सीटें बीजेपी, 16 सीटें जदयू और 6 सीटें लोजपा ने जीती थीं। ऐसे में दोनों राज्यों की 120 सीटों में बीजेपी गठबंधन को 103 सीटें मिली थीं। हालांकि, अब इसमें से जदयू बाहर निकल चुकी है। जिसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में पड़ना तय है।
यूपी का सियासी रण
उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी विधानसभा चुनाव जीतकर बीजेपी ने किसान आंदोलन के कारण बिगड़े माहौल को काफी हद तक अपने पक्ष में कर लिया है। विधानसभा चुनाव परिणाम की बात करें तो बीजेपी ने सबसे अधिक यानी 41.3 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं, वहीं सपा ने भी पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करते हुए सीटों की संख्या काफी बढ़ाई है। बसपा बिल्कुल हाशिए पर जा चुकी है।
लेकिन सपा के लिए लोकसभा चुनाव इतना आसान नहीं होने वाला, क्योंकि हाल ही में उसके दो गढ़ों आजमपुर और रामपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने ये सीटें उससे छिन लीं। साल 2019 में अखिलेश बिहार की तर्ज पर महागठबंधन का फॉर्मूला भी अपना चुके हैं, जहां उन्हें सिर्फ 5 सीटों से संतोष करना पड़ा था। ऐसे में बिहार की तर्ज पर क्या अखिलेश यूपी में बीजेपी के सामने कोई बड़ी चुनौती खड़ी कर पाएंगे, इसमें संशय है। क्योंकि फिलहाल राजभर जैसी अन्य छोटी पार्टियों के नेता भी उनसे नाराज चल रहे हैं और सपा सुप्रीमो उनपर बीजेपी की भाषा बोलने का आरोप भी लगा रहे हैं।