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मोदी को नहींं दिखा तस्वीर का बदरंग पहलू

raghvendra
Published on: 20 July 2018 8:12 AM GMT
मोदी को नहींं दिखा तस्वीर का बदरंग पहलू
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों अपने संसदीय क्षेत्र काशी के दौरे पर पहुंचे। दो दिवसीय दौरे के दौरान मोदी ने काशीवासियों पर सौगातों की बौछार की। मोदी ने 937 करोड़ रुपए की अलग-अलग परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। शाम को जनसभा को संबोधित किया तो आधी रात में अपने संसदीय क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों की जमीनी हकीकत देखने के लिए शहर की सडक़ों पर निकले। शहर में चहुंओर हो रहे विकास कार्यों को देखकर मोदी गदगद दिखे। उन्होंने अपने भाषण में भी बदलते बनारस की तस्वीर पेश करने की कोशिश की। सोशल मीडिया पर भी बनारस का नया लुक छाया रहा। चमचमाती सडक़ें, सडक़ किनारे दमकती दीवारें, खूबसूरत रोशनी से नहाती प्रमुख इमारतों को जिसने भी देखा, मुग्ध रह गया। मोदी ने साफ संदेश दिया कि काशी की इन्हीं तस्वीरों के सहारे वे आगामी लोकसभा चुनाव में विकास की लकीर खींचेंगे। इस शोबाजी के लिए 12 करोड़ से अधिक रुपए खर्च कर दिए गए। लेकिन ठहरिए। सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरती ये तस्वीरें पूरी हकीकत नहीं हैं।

वाराणसी जिला प्रशासन ने जिन तस्वीरों को पीएम मोदी और देश के सामने पेश किया वो सिक्के का एक पहलू है, जबकि दूसरा पहलू इतना बदरंग है कि शायद ही उसे कोई देखना चाहे। मोदी के दौरे के बाद अपना भारत की टीम ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे विकास कार्यों के दावों का जायजा लिया तो हैरान करने वाली हकीकत से सामना हुआ।

मसलन शहर के कई हिस्सों में सडक़ की स्थिति अभी भी दयनीय है। सफाई के नाम पर जगह-जगह कूड़े का ढेर नजर आता है। सडक़ पर छुट्टा पशुओं का साम्राज्य है तो कैंट स्टेशन पर जाने से पहले मुसाफिरों के पांव ठिठक जाते हैं। अधिकांश गंगा घाटों पर विकास की छाया अब तक नहीं पड़ी है। बुनकरों का हाल भी बदहाल है। बनानर में इन पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

गड्ढों से भरी सडक़ों पर दौड़ते वाहन

वाराणसी जिला प्रशासन के अफसरों ने उन सडक़ों को तो चमका दिया जहां से मोदी गुजरने वाले थे, लेकिन जिन मार्गों से पीएम को नहीं गुजरना था वहां पैचअप तक नहीं किया। पीएम मोदी 14 जुलाई की रात शहर भ्रमण पर निकले। डीरेका से बीएचयू और फिर चौक होते सर्किट हाउस तक गए। मोदी जिन रास्तों से गुजरे वहां दो-तीन बार सडक़ बनाई गई। दीवारों पर कलाकृतियां, लाइटिंग और साफ सफाई से इन मार्गों को नया रूप दिया गया, लेकिन नई सडक़, कमच्छा, फातमान रोड, सिगरा, रथयात्रा, अर्दली बाजार, महावीर मंदिर, पांडेयपुर, सारंग तालाब, कज्जाकपुरा, विशेश्वरगंज सहित दर्जनों इलाकों में सडक़ें बदहाल हैं। हर रोज लाखों की संख्या में लोग हिचकोले खाती सडक़ों से गुजरते हैं। यही नहीं इन सडक़ों पर धूल का गुबार अब भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

सिर्फ सडक़ों की हालत ही नहीं बल्कि यहां घूमने वाले छुट्टा जानवरों से भी लोग परेशान हैं। शहर के कई हिस्सों में आपको बीच सडक़ पर इन जानवरों का साम्राज्य साफ दिख जाएगा। ये जानवर हमेशा हादसे को दावत देते रहते हैं। कई बार तो लोगों को जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी छुट्टा पशुओं के आंतक से दो चार हो चुके हैं। 14 जुलाई की रात जब मोदी नगर भ्रमण पर निकले तो कैंट स्टेशन के पास लड़ रहे दो सांड़ों ने मोदी का काफिला रोक दिया। लोगों का कहना है कि बनारस की अफसरशाही कुछ इलाकों को दिखाकर वाहवाही लूटना चाहती है।

सफाई के मोर्चे पर फेल है शहर

पीएम मोदी ने बार-बार सफाई का जिक्र करते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि उनका ही संसदीय क्षेत्र सफाई के मोर्चे पर फेल है। पीएम मोदी और जिला प्रशासन शहर की चुनिंदा तस्वीरों की बदौलत भले ही अपनी पीठ थपथपा रहे हों, लेकिन हालात ये है कि स्वच्छता काशी के लिए अभी भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। शहर की गलियों को तो छोडि़ए, प्रमुख सडक़ों पर कूड़े का ढेर दिखाई पड़ जाता है। अपना भारत की पड़ताल में शहर के कई हिस्सों में सफाई की समस्या दिखी। पांडेयपुर, पहडिय़ा, पीलीकोठी, रेवड़ीतालाब, कज्जाकपुरा, चौकाघाट, शिवपुर के अलावा हेरिटेज जोन के रूप में विकसित किए जा रहे हिस्सों में भी बजबजाते कूड़े का ढेर दिखा।

नरेंद्र मोदी के सांसद चुने जाने के बाद नगर निगम के एजेंडे में शहर की स्वच्छता सबसे प्रमुख है। डोर टू डोर कूड़ा उठान के लिए नगर निगम ने सफाई कर्मचारियों की फौज उतारी है। शहर की सफाई व्यवस्था के लिए नगर निगम के साथ ही तीन निजी एजेंसियां लगाई गई हैं, लेकिन सुव्यवस्थित मॉनीटरिंग न होने से कागज पर तो सफाई हो जा रही है, लेकिन सडक़ों पर कूड़ा पड़ा रह जा रहा है। शहर का कोई भी ऐसा इलाका नहीं, जहां समुचित रूप से कूड़ा उठाने के साथ नियमित सफाई कराई जा रही हो। शहर के भीतरी हिस्से में तो हालात और बदतर हैं।

घाटों पर संकट के बादल

बनारस की पहचान गंगा घाटों से होती है। पीएम मोदी ने अस्सी घाट से सफाई अभियान का आगाज किया था। उनके इस अभियान का असर भी दिखा। अस्सी घाट के अलावा कुछ और घाटों पर भी साफ सफाई पहले से बेहतर हुई, लेकिन अधिकांश घाटों की बुनियादी समस्याएं अब भी जस की तस बनी हुई हैं। दरअसल 3.5 किमी में फैले इन घाटों में दो दर्जन ऐसे घाट हैं जिनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। घाट की सीढिय़ां दरकने लगी हैं। इन घाटों पर बनी भव्य इमारतें भी अब अंतिम सांसें ले रही हैं। इन घाटों पर सफाई की मुकम्मल व्यवस्था भी नहीं है।

खुद स्थानीय लोग और स्वयंसेवी संस्थाएं घाटों की सफाई की व्यवस्था करते हैं। गंगा की हालत भी किसी से छिपी नहीं है। आलम ये है कि अब भी 50 अधिक छोटे-बड़े नालों के जरिए गंगा दूषित हो रही हैं। बरसात के दिनों में गंगा दूषित नजर आ रही हैं, लेकिन मोदी सरकार सिर्फ अस्सी और दशाश्वमेघ घाट की बदौलत शोहरत बटोरने में जुटी हुई है। 11 करोड़ की योजना के जरिए घाटों को नया कलेवर देने की बात कही जा रही है, लेकिन गंगा प्रेमी इसे सरकार का छलावा बता रहे हैं।

बदहाल बुनकरों की सुध नहीं

बनारस की मुकम्मल तस्वीर तब तक पूरी नहीं हो सकती है जब तक यहां की प्रसिद्ध बनारसी साड़ी और उसे बनाने वाले बुनकरों का जिक्र ना हो,लेकिन हैरानी इस बात की है कि बदलते बनारस की तस्वीर में इन बुनकरों को जगह नहीं दी जा रही है। ना तो मोदी ने अपने भाषण में बुनकरों का जिक्र किया और ना ही जिला प्रशासन इनकी बदहाली दूर करने का कोई उपाय कर रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद बनारसी साड़ी के कारोबार में लगभग 50 फीसदी की गिरावट हुई है, जिसका असर यहां के बुनकरों पर साफ देखा जा सकता है। अब बुनकरों को बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी पर भी सख्ती कर दी गई है।

रसोई गैस की तरह अब डीबीटी के माध्यम से सब्सिडी का पैसा बुनकरों के खाते में जाएगा। बिजली विभाग के मुताबिक बुनकर सब्सिडी में पारदर्शिता लाने के लिए इस तरह की व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए सब्सिडी लेने वाले पावरलूम बुनकरों के पास बैंक अकाउंट, आधार कार्ड और बुनकर कार्ड होना जरूरी है। इनमें से एक भी आईडी अगर बुनकर के पास नहीं होगी तो उसे सब्सिडी नहीं मिलेगी।

कैंट स्टेशन का अधिकांश हिस्सा बदहाल

कैंट स्टेशन की गिनती पूर्वांचल के सबसे प्रमुख और व्यस्ततम स्टेशनों में होती है। इन दिनों कैंट स्टेशन को भव्य रूप दिया जा रहा है। शाम होते ही स्टेशन का मुख्य भवन खूबसूरत रोशनी से जगमग हो उठता है। अंदर जाने पर प्लेटफॉर्म नंबर एक आपको किसी वल्र्ड क्लास स्टेशन का एहसास करायागा। प्लेटफॉर्म की दीवारें काशी की संस्कृति को समेटे हुए दिखेंगी। फॉल सीलिंग से छत को एक नया रूप दिया गया है, लेकिन प्लेटफॉर्म नंबर एक से जैसे ही लोग आगे का रुख करते हैं, उनका सामना फिर बदइंतजामी और बदहाली से होता है। कई जगह कूड़े का ढेर दिखता है। कहीं-कहीं प्लेटफॉर्म को जोडऩे वाली सीढिय़ां टूटी हुई हैं।

प्लेटफॉर्म नंबर चार पर आधा अधूरा छाजन पड़ा हुआ है जिसकी कीमत बरसात के दिनों में मुसाफिरों को भींगकर चुकानी पड़ रही है। जगह-जगह घूमते आवारा कुत्ते और दूसरे जानवर स्टेशन की शोभा बढ़ाते नजर आते हैं। हद तो तब हो गई प्लेटफॉर्म पर महिलाओं के लिए बने शौचालय के दरवाजे टूटे नजर आए। मुसाफिरों के आवाजाही को आसान बनाने के लिए करोड़ों की लागत से तीन स्वचालित सीढिय़ां बनाई गई हैं, लेकिन ये तीनों अधिकांश समय बंद ही रहती हैं। यही कारण है कि वाराणसी का कैंट रेलवे स्टेशन देश के चार सबसे गंदे स्टेशनों की सूची में शुमार होता है। बावजूद इसके रेलवे प्रशासन दुश्वारियों को दूर करने के बजाय सिर्फ चकाचौंध में लगा हुआ है।

बुनियादी समस्याओं को दूर करने के बजाय सिर्फ शोबाजी पर शाही खर्च किया जा रहा है। वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन की गिनती देश के सर्वाधिक व्यस्त स्टेशनों में होती है। धार्मिक नगरी होने के कारण यहां देश के हर कोने से लोग आते है। यहां से प्रतिदिन लगभग 200 गाडिय़ां गुजरती हैं। इनमें तकरीबन 150 यात्री ट्रेनें हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, आगरा, जयपुर, खजुराहो आदि स्थानों से विदेशी पर्यटक भी आते हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन लगभग पचास हजार की संख्या में मुसाफिर कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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