VIDEO: ऐसे फैलाया एकता का पैगाम, रमजान में मुसलमान के घर पहुंचे हनुमान

shalini
Published on: 13 Jun 2016 7:26 AM GMT
VIDEO: ऐसे फैलाया एकता का पैगाम, रमजान में मुसलमान के घर पहुंचे हनुमान
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ramjan

लखीमपुर-खीरी: कौन कहता है कि आज हमारे देश में एकता नहीं बची, प्यार नहीं बचा.. माना कि यहां सियासती चालों के चलते अक्सर लोग भूल जाते हैं कि वे हिन्दू मुस्लिम होने से पहले एक इंसान हैं बता दें कि ज्येष्ठ मास जहां हनुमान भक्तों के लिए अहम है, वहीं रमजान का महीना मुसलमानों के बहुत ही मुबारक माना जाता है।

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monkey and dog

मगर इस बार एक घर में कुछ ऐसा हुआ, जो चर्चा का विषय बन गया। रमजान के पहले ही रोजे में एक मुस्लिम युवक को अपने ही घर की छत पर नवजात बंदर मिला। उसकी हालत देख युवक को तरस आ गया। बड़ी नजाकत से युवक ने बंदर को उठाया और घर के अंदर ले गया। तब से वह लगातार उस बंदर के बच्चे की देख-भाल कर रहा है।

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monkey and dog

ऐसा माना जाता है कि ‘एक दिन के बंदर के दर्शन दुर्लभ होते हैं’। लेकिन आनंद टाकीज के निकट मोहल्ला हाथीपुर के रहने वाले मोहम्मद शाहिद आज इस कहावत के अपवाद के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं। मंगलवार को पहला रोज़ा था। शाहिद उठकर छत पर पहुुंचे। वहां उन्हें बंदर का नवजात बच्चा दिखाई दिया। आस-पास नजर दौड़ाई तो कहीं भी उसकी मां नजर नहीं आई। धीमी आवाज में मां को पुकार रहे उस बन्दर के बच्चे के लिए शाहिद का मन पिघल गया।

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उन्होंने बंदर के बच्चे को उठाया और नीचे ले आए। बंदर के बच्चे की नार भी अलग नहीं हुई थी। यह देख शाहिद ने एक दिन इंतजार किया। रोज़दार होने के बावजूद उन्होंने बंदर के बच्चे को पूरा दिन दूध पिलाया। अगले दिन नहला-धुलाकर उसे साफ किया। पांच दिन बाद बंदर का बच्चा काफी हेल्दी हो गया है। शाहिद ने उसे पालने का फैसला किया है।

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लीज़ा की मोहब्बत ने तो और भी चौंकाया

शाहिद के घर कुछ ही महीनों पहले जर्मन शेफर्ड बिच आई थी। उसका नाम लीजा रखा गया। लीज़ा आज इतनी बड़ी हो गई है कि उसे अपनों और अजनबियों में फर्क समझ में आने लगा है। ज्यों ही किसी अजनबी की घर में इंट्री होती है तो लीजा तुरंत हमलावर हो जाती है। भौंकने से लेकर काटने तक की कोशिश करती है। यही वजह है कि आने-जाने वाले लोग बहुत ही एहतियात बरतते हैं।

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मगर बंदर के बच्चे के प्रति उसके लगाव ने सभी को हैरान कर गया। शाहिद बताते हैं कि जब वह बंदर के घर को लेकर छत से नीचे उतरे तो उन्हें वह समझ नहीं पा रहे थे कि लीजा का रवैया अब क्या होगा। जंजीर में बंधी होने के बावजूद लीज़ा से उन्हें बंदर के बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंता हो रही थी। फिर भी शाहिद बंदर के प्रति उसके बर्ताव को जानने के लिए बेताब थे। उन्होंने छोटा सा जोखिम उठाते हुए बंदर के बच्चे को लीजा के सामने रखा।

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उसके बाद जो हुआ उसे देख शाहिद को भी यकीन नहीं हो रहा था। लीज़ा हमलावर होने की बजाए बेजान से बंदर के बच्चे को चाटने लगी। महज पांच दिन में ही लीजा बंदर के इतने करीब हो गई है कि वह उसके साथ दिन भर खेलती है। बंदर हमेशा पीठ, पैर और यहां तक कि उसके मुंह पर भी चढ़ जाता है मगर लीजा कभी हमलावर नहीं होती। हाल तो यह है कि जब तक कोई बंदर के बच्चे को गोद में नहीं उठाता लीज़ा रखा हुआ खाना तक नहीं खाती।

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