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Moradabad: 'प्रेमाभिव्यक्ति और विरह वेदना के अनूठे गीतकार थे कैलाश चंद्र अग्रवाल'- डॉ मनोज रस्तोगी
kailash chandra agarwal: स्मृतिशेष कैलाश चंद्र अग्रवाल का है। जिनके गीतों में जहां काव्यानुरागियों को प्रेम की विशालता एवं व्यापकता की अनुभूति होती है। वहीं विरह वेदना, करुणा, पीड़ा, कसक व दर्द भरे स्वर सहजता के साथ अभिव्यक्त होते दिखाई देते हैं।
Moradabad News: यह स्मृतिशेष कैलाश चंद्र अग्रवाल का है, जिनके गीतों में जहां काव्यानुरागियों को प्रेम की विशालता एवं व्यापकता की अनुभूति होती है। वहीं विरह वेदना, करुणा, पीड़ा, कसक व दर्द भरे स्वर सहजता के साथ अभिव्यक्त होते दिखाई देते हैं। प्रख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर के अनुसार कैलाश चन्द्र अग्रवाल के काव्य में पीड़ा की पवित्र मन्दाकिनी बह रही है, जो अपने कल-कल निनाद से उनकी सम्पूर्ण रचनाओं को संगीत दे रही है।
कैलाश चन्द्र अग्रवाल के काव्य में पीड़ा के इस प्रवाह में दारुण व्यथा और रुदन भी है, आंसू और निःश्वास की लहरियाँ भी हैं, टीस, कसक एवं दर्द का उफान भी है, आक्रोश और विक्षोभ का उद्वेलन भी है तथा विवशता और असमर्थता का कलनाद भी है। पीड़ा के इस रूप ने कैलाश जी के काव्य को मधुर, सम्प्रेषणीय और कलात्मक बनाया है। उनके आंसुओं से उनका काव्य अभिसिंचित होकर रंगभीनी वेदना के फूलों से लहलहा उठा है।
अविराम सुनाई पड़ने वाला स्वर है
उनके प्रारम्भिक गीतों का प्रतिनिधि संकलन प्रथम कृति के रूप में वर्ष 1965 में 'सुधियों की रिमझिम में' स्थानीय आलोक प्रकाशन के माध्यम से पाठकों को प्राप्त हुआ। इस कृति में उनकी वर्ष 1947 से 1965 तक के चौसठ गीत हैं। इस कृति की भूमिका में साहित्यकार शिव बालक शुक्ल का कथन है, "कवि ने अधिकांश तथाकथित प्रेम गीतकारों की भाँति कल्पित वेदना की गैस से भरे हुए गीत-गुब्बारों को शून्य में नहीं छोड़ा है। वस्तुतः जैसे निर्मल, स्वच्छ आकाश की दूध-गंगा में नक्षत्र-मालिका का प्रकाश पुंज दृष्टिगोचर होता है वैसे ही इन गीतों का अंतरिक्ष प्रोज्ज्वल भावों से दीप्त है। वहीं न तो छायावादी अस्पष्टता की कुहेलिका है और न प्रगतिवादी अंध-असंतोष। उनके दर्दीले गीतों में जो टीस और कसक है उसमें अद्यतन मांग का हिस्टीरिक प्रेमोन्माद नहीं, अनागत भविष्य में अविराम सुनाई पड़ने वाला स्वर है।'
'प्यार की देहरी पर' रही चर्चित
लगभग सोलह वर्ष बाद 1981 में उनकी दूसरी गीत कृति 'प्यार की देहरी पर' प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई। इस कृति में उनके वर्ष 1965 के बाद लिखे गये 81 गीत हैं। इस कृति की भूमिका में प्रो महेंद्र प्रताप लिखते हैं-" कवि के पिछले काव्य संकलन 'सुधियों की रिमझिम में ' मचलती हुई प्रणय-कामना और उसकी अतृप्ति की व्याकुल व्यथा इस 'प्यार की देहरी' पर आकर प्रणय के शुद्ध भाव-भोग तथा प्रगति की उपासना के सोपान पा जाती है और उसके सहारे उसे भक्ति भाव की वह मंजिल मिल जाती है, जहाँ उसकी व्यक्ति निष्ठा लोकनिष्ठा में सजग और सक्रिय तल्लीनता पा जाती है।
कैलाश चन्द्र अग्रवाल एक सिद्धहस्त और समर्थ कवि
वर्ष 1982 में उनका मुक्तक संग्रह अनुभूति का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर से हुआ। इसमें उनके वर्ष 1971 से 1981 तक के 351 मुक्तक संग्रहीत हैं। इस कृति की भूमिका प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने लिखी है। इस मुक्तक संग्रह के संदर्भ में डॉ रामकुमार वर्मा का कथन है- कैलाश चन्द्र अग्रवाल एक सिद्धहस्त और समर्थ कवि हैं। उनकी रचनाओं को मैं आग्रह पूर्वक पढ़ता हूँ। सुधियों की रिमझिम में भीगने के उपरान्त प्यार की देहरी पर पहुंचा ही था कि प्रेम की अनुभूति का निमंत्रण मिला। यह अनुभूति आकाशगंगा की भांति हृदयाकाश पर छिटक जाती है। प्रत्येक मुक्तक भावना का एक संसार है, जिसे अनुभूति की रश्मियाँ आलोकित करती हैं।
चौथी कृति 'आस्था के झरोखों से'
उनकी चौथी कृति 'आस्था के झरोखों से' का प्रकाशन वर्ष 1984 में हिन्दी साहित्य निकेतन से हुआ। इस संग्रह में उनके 83 गीत हैं जिनकी रचना नवम्बर 1980 और जुलाई 1983 के बीच हुई है। इस कृति की भूमिका डॉ विश्वनाथ मिश्र ने लिखी है। वह कहते हैं- "कैलाश जी मूलतः प्यार के कवि हैं। प्यार की भावना का पहला पाठ उन्होंने सौन्दर्य चेतना को लेकर पढ़ा था, जिससे उनका मन किसी सुंदर के प्रति समर्पित हो गया था। उसी प्यार ने उन्हें भगवत आराधना के पथ पर अग्रसर किया, और फिर वे इस विराट जगत की अति आत्मीयता की भावना से ओत प्रोत लोकाराधन की भावना को वाणी देने लगे।
'तुम्हारे गीत तुम्हीं को' का प्रकाशन 1985 में
वर्ष 1985 में उनकी पांचवी कृति तुम्हारे गीत तुम्हीं को का प्रकाशन हुआ । इस गीत संग्रह के 71 गीतों की रचना नवम्बर 1983 और अप्रैल 1985 के बीच में हुई है। इस कृति की भूमिका डॉ ऋषि कुमार चतुर्वेदी ने लिखी है। आचार्य क्षेमचन्द्र सुमन इस गीत संग्रह के संदर्भ में लिखते हैं-" इसमें उनकी काव्य साधना की जो चरम परिणति देखने को मिलती है, उसमें उनकी काव्य यात्रा का एक विशिष्ट आयाम उद्घाटित हुआ है। भावना, साधना और उपासना की त्रिवेणी का प्रवाह उद्दाम गति से पाठकों को आप्यायित करता है, वह सर्वथा अनन्य एवं अनुपम है।
तुम्हारी पूजा के स्वर गीत संग्रह उनकी छठी काव्य कृति है। वर्ष 1989 में प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस संग्रह में जनवरी 1986 से फरवरी 1988 के बीच में रचे 71 गीत हैं। इस कृति की भूमिका डॉ रामशंकर त्रिपाठी ने लिखी है। इस संग्रह के संदर्भ में डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' का कथन दृष्टव्य है- इस गीत संग्रह में संग्रहीत उनके लगभग सभी गीतों का केन्द्रीय भाव प्रेम है, जिसमें ऋचाओं की पवित्रता है, मंत्रों की भव्यता है और जिसकी सीमा लौकिक प्रेम से लेकर अलौकिक प्रेम प्रस्तीर्ण है।... दर्द में ढले उनके इन गीतों में हृदयानुभूति की जो गहनता, सघनता और आंतरिक डूब मिलती है, उसे देखकर यह लगता है कि ये गीत स्वतः उपजे हैं, रचे नहीं गये। इसीलिए इन गीतों में भावों को समन्विति, कथ्य की अन्विति और काव्य रूपकी संगति का पूर्ण निर्वाह हो पाया है।
'मैं तुम्हारा ही रहूंगा'
उनकी अंतिम सातवीं कृति 'मैं तुम्हारा ही रहूँगा' का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर से वर्ष 1993 में हुआ। इसमें अप्रैल 1989 से मार्च 1992 तक के मध्य रचित 71 गीत संकलित हैं। इस कृति की भूमिका डॉ रामानन्द शर्मा ने लिखी है। इस गीत संग्रह के संदर्भ में डॉ सूर्य प्रकाश दीक्षित कहते हैं- उत्कृष्ट और गहन सर्जनात्मकता के धनी श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल के गीतों में भाव और भाषा का अहमहमिका पूर्वक संयोग नितांत स्पृहणीय है। उन्होंने एक ओर प्रेम की निष्ठा को अंगीकार किया है, वियोग को जीवन का अंग बनाया है, हृदय को वेदना की ज्वाला में तपा कर कुन्दन बनाया है तो दूसरी ओर शिल्प के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्वों को आत्मसात् किया है। यही कारण है कि जहाँ उनकी भावधारा प्रत्येक सहृदय को रसासित करने में समर्थ है, वहीं अभिव्यक्ति की नैसर्गिकता, अलंकारों की सहजता और छन्दों विधान की अनवद्यता बरबस आकर्षित कर लेती है। अनुभूति और अभिव्यक्ति का ऐसा मणिकांचन संयोग अलभ्य नहीं, दुर्लभ अवश्य है।"
18 दिसम्बर 1927 को हुआ जन्म
उनका जन्म 18 दिसम्बर 1927 को मुरादाबाद के मंडी बांस मुहल्ले में हुआ। आपके पिता साहू रामेश्वर सरन अग्रवाल सुसम्पन्न सराफा व्यवसायी थे। आपकी माता का नाम राम सुमरनी देवी था जो अमरोहा निवासी बृज रत्न अग्रवाल की एकमात्र सन्तान थीं। आपके पितामह भूकन शरण अग्रवाल तथा प्रपितामह बिहारी लाल अग्रवाल थे। आपके पूर्वज नानक चन्द्र अग्रवाल सेवानिवृत्त तहसीलदार थे जो लगभग दो शताब्दी पूर्व धामपुर (बिजनौर) से यहाँ मुरादाबाद आकर बस गये थे।
प्रारम्भिक शिक्षा मुरादाबाद में
आपकी प्रारम्भिक शिक्षा मुरादाबाद की अग्रवाल पाठशाला में हुई। वर्ष 1936 में आपने राजकीय इंटर कालेज में कक्षा तीन में प्रवेश लिया जहाँ से आपने वर्ष 1944 में हाई स्कूल तथा वर्ष 1946 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1948 में एस एम डिग्री कॉलेज चन्दौसी से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1950 में स्नातकोत्तर (हिन्दी) की उपाधि लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वर्ष 1952 में आगरा विश्वविद्यालय से एल एल बी की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात वह मुरादाबाद में वकालत करने लगे।
वकालत के दौरान पिता का स्वास्थ्य खराब रहने लगा था
आपका विवाह तीन मार्च 1952 को तहसील जानसठ (जनपद मुजफ्फरनगर) निवासी हनुमान प्रसाद की सुकन्या संतोष से हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र आलोक चन्द्र अग्रवाल का देहावसान हो चुका है। द्वितीय पुत्र अतुल चंद्र अग्रवाल पैतृक व्यवसाय (सराफा) में संलग्न हैं। वकालत के दौरान आपके पिता का स्वास्थ्य निरंतर खराब रहने लगा था। फलत: आपने अपने पिता का आदेश मानकर वर्ष 1962 में वकालत छोड़ दी और अपने पैतृक व्यापार में लग गए। अंतिम समय तक आप इसी व्यापार से जुड़े रहे।
विभिन्न संस्थाओं ने किया सम्मानित
विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर उनको सम्मानित भी किया गया। सहारनपुर की साहित्यिक संस्था 'दधीचि' ने 7 दिसम्बर 1995 को आयोजित भव्य समारोह में उनके गीत संग्रह आस्था के झरोखों से को वर्ष 1984 की सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित करते हुए उन्हें दो हजार पांच सौ रुपये की धनराशि देकर सम्मानित किया और कवि रत्न' की उपाधि से अलंकृत किया। उन्हें यह सम्मान प्रख्यात साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा प्रदान किया गया। वर्ष 1982 में मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से आयोजित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जन्मशती समारोह में आपका नागरिक अभिनन्दन किया गया ।
वर्ष 1992 में कंचन प्रभाती ने कैलाश चन्द्र अग्रवाल के काव्य में प्रणय तत्व शीर्षक से डॉ सरोज मार्कण्डेय के निर्देशन में लघु शोधकार्य किया। तत्पश्चात वर्ष 1995 में उन्होंने डॉ रामानन्द शर्मा के निर्देशन में रुहेलखण्ड के प्रमुख छायावादोत्तर गीतिकार कैलाश चंद्र अग्रवाल के गीति काव्य का अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण कर हिन्दी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2002 में गरिमा शर्मा ने डॉ मीना कौल के निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चन्द्र अग्रवाल - जीवन,सृजन और मूल्यांकन शीर्षक से लघु शोध कार्य किया। वर्ष 2008 में मीनाक्षी वर्मा ने डॉ मीना कौल के ही निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चन्द्र अग्रवाल के गीतों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण किया।
शैक्षिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़ाव रहा
आपका विभिन्न शैक्षिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़ाव रहा। वह मुरादाबाद के हिन्दू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोकुलदास गुजराती हिन्दू इंटर कॉलेज, गोकुल दास हिन्दू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय प्रताप सिंह कन्या इंटर कॉलेज तथा राजकला कन्या इंटर कॉलेज की प्रबंधकारिणी समितियों के सक्रिय सदस्य रहे। इसके अतिरिक्त मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अंतरा' के आप संस्थापक सदस्य रहे। वर्ष 1996 में 31 जनवरी को उन्होंने इस नश्वर देह को त्याग दिया।
लेखक: डॉ मनोज रस्तोगी