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‘बेगुनाह दहशतगर्द’ का विमोचन कर फफक पड़ी मां, बोली- खौफनाक थे वो 22 दिन
दिन रात टॉर्चर झेलने के बाद किसी तरह आफताब के घर वालों को उसके लखनऊ में होने की जानकारी हुई। इस पर राजधानी आकर जेल के बाहर चाय की दुकानों पर वक्त काटा। इस संघर्ष में बेटी की शादी भी टूट गई, लेकिन आखिर मां अपने बेटे को छुड़ाने में कामयाब हो गई।
लखनऊ: 27 दिसंबर 2007 को कोलकाता सीआईडी ने मेरे बेटे को उठाया। उसे यूपी एसटीएफ को सौंपा गया। जहां उसे दिन-रात पीटा गया। मैंने 22 दिन तक खौफ के साए में गुजारे और अपने बेटे के इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ी। अंत में मेरे बेकसूर बेटे को उन्हें छोड़ना पड़ा।
यह कहना है कोलकाता से राजधानी पहुंची आयशा बेगम का जिनके जवान बेटे को आज से करीब 9 साल पहले आतंकवाद के आरोप में हिरासत में लिया गया था। उन्होंने 22 दिन तक राजधानी में अपने बेटे आफताब के लिए लड़ाई लड़ी और उसे छुड़ाने में कामयाब हुईं।
राजधानी में आयशा बेगम ने इसी तरह के खौफनाक मंजरों को बयां करती पुस्तक ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ का सोमवार को विमोचन किया।
जवान बेटे की घर वापसी के लिए चाय की दुकान पर काटे दिन
-आयशा बेगम ने बताया कि दस साल पहले उनके बेटे आफताब आलम अंसारी को कोलकाता पुलिस ने उठा लिया।
-बेटे से कहा गया था कि तुम्हें एक आदमी की शिनाख्त करने के लिए साथ ले जा रहे हैं।
-इसके बाद उसे यूपी की एसटीएफ को सौंप दिया गया।
-दिन रात टॉर्चर झेलने के बाद किसी तरह आफताब के घर वालों को उसके लखनऊ में होने की जानकारी हुई।
-इस पर राजधानी आकर जेल के बाहर चाय की दुकानों पर वक्त काटा।
-इस संघर्ष में बेटी की शादी भी टूट गई, लेकिन आखिर मां अपने बेटे को छुड़ाने में कामयाब हो गई।
-आयशा बेगम ने कहा-इस घटना को दस साल बीत गए लेकिन परिवार अभी तक इस दर्द से उबर नहीं पाया है।
-इसलिए सिस्टम का दोहरा चेहरा बेनकाब करने के लिए दस साल बाद यहां आकर किताब का विमोचन कर रही हूं।
-इस किताब के जरिए संदेश देना चाहती हूं कि एक जनांदोलन ऐसे सिस्टम के खिलाफ शुरू हो और सिस्टम में बैठे लोग अपनी मानसिकता में सुधार लाएं।
मसीहुद्दीन अंसारी ने लिखी है किताब, जानिए क्या है इनकी योजना
-‘बेगुनाह दहशतगर्द’ के लेखक मसीहुद्दीन अंसारी ने बताया कि यूपी में आतंकवाद के आरोपों से बरी आफताब जैसे नौजवानों के दस्तावेजी आधार पर बहुत कुछ लिखना है।
-मैं चाहता हूं कि आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम युवाओं का सिस्टम द्वारा उत्पीड़न बंद हो।
-मैंने इस पुस्तक का नाम ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ इसलिए रखा क्योंकि सिस्टम ने इन पर जो दहशतगर्दी का ठप्पा लगाया, वो इनके रिहा होने के बाद भी नहीं धुला।
-इस लड़ाई के मार्गदर्शक वकील मुहम्मद शुऐब सहित कई सजग कार्यकर्ताओं के खिलाफ जो जहर उगला जा रहा है, उसके खिलाफ आवाज बुलंद होनी चाहिए।
-आगे भी ऐसे ही दस्तावेज जनता के बीच लेकर आने की कोशिश रहेगी।
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