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Mother's Day: सुधरेगा बेटा तभी लड़कियां होंगी सुरक्षित, हर महिला का करें सम्मान
Mother's Day: साल 1982 घनघोर बारिश से लखनऊ भीग रहा था। सभी को घर जाने की जल्दी है। और प्रेम कुमारी भी सड़क पर हैं। लेकिन उन्हें घर नहीं जाना।
Mother's Day 2022: साल 1982, सावन इसबार कुछ ज्यादा ही मेहरबान था। घनघोर बारिश से लखनऊ भीग रहा था। सभी को घर जाने की जल्दी है। और प्रेम कुमारी भी सड़क पर हैं। लेकिन उन्हें घर नहीं जाना। रात के लगभग 10 बज रहे हैं, घुप्प अंधेरा है। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा है। प्रेम की मंजिल है कुडिया घाट। प्रेम वहां पहुंचती हैं और मां गोमा से मनौती मांगती हैं कि यदि मेरा बेटा स्वस्थ हो जाएगा तो वो आजीवन गरीब बच्चियों का विवाह ठीक वैसे ही करेंगी जैसे अपनी बेटी का करेंगी।
भोर हो चुकी है। सूर्योदय के साथ ही 3 महीने का मनीष किलकारी मार रहा है। कोई कह नहीं सकता जिस बच्चे के कुछ समय पहले तक प्राण संकट में थे वो ऐसे किलकारी मार रहा है। और प्रेम उसकी आँखों से गंगा जमुना बह रही है। वो अपने बेटे को छाती से भीचें मां गोमा को धन्यवाद दे रही है।
मदर्स डे पर आज हम आपको बताएँगे एक मां के बारे में नाम है प्रेम कुमारी
आम लड़कियों से हट प्रेम का बालपन गुड्डे गुडिया के साथ नहीं बीत रहा था। बल्कि उसके पिता ने उसे सुनारी के गुर सिखाना शुरू का दिया था। घर पर सभी को लगता कि अभी से घरदारी सीखेगी तो शादी के बाद काम आएगा। लेकिन न उसके पिता और न ही उसे ये सब पसंद था। समय बीता और परिवार के विरोध के बाद भी प्रेम ने पिता की मानते हुए व्यवसाय के गुर अच्छे से सिख लिए थे। अब शादी होनी थी तो पिता ने बनारस से दूर लखनऊ में लड़का देखा।
नाम था धनीराम, सुनारी का ऐसा कारीगर जिसने कम उम्र में ही वो नाम हासिल हो चुका था जिसे कमाने में औरों को सालों लग जाते हैं। पिता को प्रेम के लिए ये लड़का पसंद था। लेकिन धनीराम के परिवार और प्रेम के परिवार में काफी अंतर था। लेकिन पारखी पिता को समझ आ गया था कि ये लड़का उसकी बेटी के लिए सबसे अच्छा पति साबित होगा।
परिजनों के विरोध के बाद 10 मार्च 1980 में प्रेम कुमारी का धनीराम से विवाह हो गया। विदा होकर जब प्रेम लखनऊ के हिरन पार्क के ससुराल आई तो जो कमरा मिला वो सिर्फ इतना बड़ा साथ जिसमें सिर्फ एक तख़्त डाला जा सकता था।
जीवन शुरू हो चुका था। धनीराम देर रात तक काम करता और सुबह जल्दी चला जाता। 1 अप्रैल 1982 में वो बच्चा पैदा हुआ जिसका जिक्र हमने ऊपर किया है।
अब दो से तीन हो चुके थे। प्रेम कुमारी और धनीराम का कमरा उतना ही बड़ा था। तो ऐसे में दिनभर थके घर आए धनीराम को प्रेम बच्चे के साथ सुला देती और स्वयं जमीन पर अपने लिए बिछौना लगा लेती।
सन 82 में ही धनीराम की बहन की शादी होती है। पिता ने कहा बेटा तुमको मदद करनी है। बेटे ने अपनी जमा पूंजी और प्रेम के गहने बेच बहन की शादी की। अब दोनों के पास कुछ नहीं बचा था। बच्चे के भविष्य के लिए भी कुछ करना था।
ऐसे में प्रेम ने धनीराम से कहा क्यों न हम सर्फ़ (डिटर्जेंट पाउडर) बना के बेचे। धनीराम सोने के कारीगर थे। उन्हें इसका कुछ बता नहीं था कि कैसे बनेगा कैसे बिकेगा? प्रेमा ने उसका भी हल निकाल लिया। पति-पत्नी रात में सर्फ़ बनाते। सुबह धनीराम इसे लेकर मलीहाबाद काकोरी और आसपास के गांव में बेचते और दोपहर में सुनारी का काम करते।
एक दिन प्रेम ने धनीराम से कहा हमें मनीष की अच्छी परवरिश करने के लिए और पैसा चाहिए होगा। हम दिन रात मेहनत तो कर रहे लेकिन इससे बच्चे का भविष्य वैसा नहीं होगा जैसा हमने सोचा है। मेरा मंगलसूत्र बेच के कुछ पैसा मिल जाएगा। धनीराम के लिए ये बड़ी बात थी कि उसकी पत्नी अपना मंगलसूत्र बेचने को कह रही।
क्योंकि हिंदू मान्यता के मुताबिक मंगलसूत्र सुहागिन का मान होता है। उसने मना कर दिया। लेकिन प्रेम की जिद के सामने झुकना पड़ा मंगलसूत्र बेच के जो पैसा आया उससे सर्फ़ बनाने का और अधिक सामान और स्टील के चम्मच ख़रीदे। ये चम्मच उस सर्फ़ के पैकेट में रख के बेचे जाने लगे। लोगों के लिए ये बिलकुल नया था। उन्होंने सर्फ़ को हाथो हाथ लिया। मनीष बड़ा हो रहा था उसका एडमिशन काल्विन तालुक्केदार्स स्कूल में कराया गया।
बेटे के लिए सिर्फ 3 से 4 घंटे की नींद
मनीष बताते हैं कि उस समय परिवार के पास इतने पैसे भी नहीं होते थे कि महीने भर का राशन एकसाथ ले सकें। ऐसे में मां ने रात में अपने सोने के घंटे कम कर दिए। जब पापा और हम सो जाते तो मां उठ कर सर्फ़ बनाती थी। मां ने भी ये सर्फ़ आसपास बेचना शुरू कर दिया। ताकि हम अच्छे से पढ़ लिख सकें स्कूल जा सकें।
कई साल तक मां ने अपने लिए साड़ी नहीं ली कहीं घुमने फिरने भी नहीं गई। लेकिन मेरे लिए हमेशा दो स्कूल ड्रेस और कई जोड़ अच्छे कपडे लेती थी। मां ने कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि वो कितनी तकलीफ में हैं। मेरा नहिहाल खुशहाल था। मामा ने कई बार कहा भांजे को भेज दो मेरे पास या मुझसे पैसे ले लिया करो। लेकिन मां ने कभी मदद नहीं ली। बारिश के मौसम में छत से पानी गिरता तो वो छाता लेकर रात भर जागती।
बदल गया जीवन
प्रेमा बताती हैं कि हम पति पत्नी काफी मेहनत कर रहे थे। सब ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन सब खत्म हो गया। हमें समझ ही नहीं आया कि अब क्या होगा। मैं एकबार फिर गर्भवती थी। लेकिन इतने भी पैसे नहीं थे कि डॉक्टर के पास जा सकूँ।
उसी दिन मेरे पति के एक जानने वाले ने एक बड़े आदमी को हमारे घर भेजा। जिसके पास काफी सोना था और उसको बेच कर उसे ईराक में होटल खोलना था। उसने इन्हें कहा कि आप हमारे सोने को बेचो और हमसे पैसे लेते रहो हमें पता है आप इमानदार हो। आपका जो हिस्सा बनेगा वो हम देते रहेंगे। इसके बाद से हमारा परिवार तरक्की के रास्ते पर चल पड़ा।
101 दमाद की हैं सास
प्रेम ने बताया, उन्होंने अभीतक 101 कन्याओं का कन्यादान किया है। इस दौरान वो ठीक वैसे ही विदाई तक व्रत रहती हैं जैसे बेटी की मां रहती हैं। हर एक विवाह में 50 हजार से 60 हजार का गृहस्ती का सामान दिया जाता है। ये तबतक चलता रहेगा जबतक प्राण हैं। क्योंकि गोमा मैया से वादा किया है तो पूरा तो करना ही है। मैंने हमेशा इन्हें दामाद का मान सम्मान दिया। मेरे दामाद भी मुझसे मिलने आते हैं।
हमसे ज्यादा है मां को बिजनेस की समझ
मनीष और छोटा बेटा सौरभ बताते हैं कि मां को हमसे अधिक समझ है बिजनेस की, हर शाम हम डिनर के बाद मां के साथ बैठते हैं और वो हमसे बिजनेस के बारे में सवाल जवाब करती हैं। राय देती हैं जिससे हमें काफी फायदा होता है।
मां के पास पूरे दिन भीड़ होती है। हर कोई उनसे सलाह और मदद लेने आता है। मां की तबियत अब सही नहीं रहती लेकिन उसके बाद भी वो सबकी बात सुनती हैं और उन्हें सलाह देती है। इस दौरान कभी शिकन नहीं देखी हमने।
संयुक्त परिवार की प्रेरणा
प्रेम कुमारी की बहु नीतू बताती हैं कि जब मैं विदा होकर आई तो मां ने कहा मेरे बेटी नहीं थी। तुमने कमी पूरी कर दी। मेरी एक बात मानोगी? मैंने कहा आप जो कहेगी वो मानना है उन्होंने कहा बिटिया हमेशा संयुक्त रहोगी तो ताकत मिलेगी तुमको भी और तुम्हारे पति को भी।
सफलता का श्रेय मां को
लखनऊ और आसपास मनीष का काफी बड़ा बिजनेस है। जिसका श्रेय वो अपनी मां को देते हैं। उन्होंने बताया मां हमेशा नजर रखती हैं कि हम क्या कर रह हैं। किस समय कहां निवेश करना है और कहां से पैसा निकालना है ये भी मां बताती हैं।
मदर्स डे का मैसेज
प्रेम कहती हैं एक मां को अपने बच्चों को हमेशा खास कर बेटों को ये सिखाना चाहिए कि हर महिला में मां, बेटी और बहन की तरह देखे, उनका सम्मान करे। क्योंकि जब हमारा बेटा सुधर जाएगा तो किसी बेटी को कभी असुरक्षा नहीं महसूस नहीं होगी।
आप जितना भी परेशान हो जबतक बच्चा समझदार न हो जाए उससे ये मत पता होने दीजिये कि आप परेशान हैं। क्योंकि इससे उसके बालमन में असुरक्षा की भावना पनपेगी जो अच्छा नहीं होगा।