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खुले में रखी MRI मशीन: मरीज़ और टेक्नीशियन दोनों हो सकते हैं बीमार

लखनऊ में कई जगह मेडिकल टेस्ट करते हुए तय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।नियमों की अनदेखी कभी भी मरीज़ और टेक्नीशियन के लिए घातक साबित हो सकती है। ऐसा ही एक मामला सामने आया पीजीआई में जहां की पीएमएसवाय बिल्डिंग में रखी एमआरआई मशीन खुले में रखी है। नियमों के मुताबिक किसी भी एमआरआई मशीन को प्लास्टिक या फाइबर के केस में होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मशीन से मेग्नेटिक रेडिएशन होता है जिससे कैंसर होने का खतरा रहता है।

Anoop Ojha
Published on: 1 Dec 2018 2:21 PM GMT
खुले में रखी MRI मशीन: मरीज़ और टेक्नीशियन दोनों हो सकते हैं बीमार
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लखनऊ: लखनऊ में कई जगह मेडिकल टेस्ट करते हुए तय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।नियमों की अनदेखी कभी भी मरीज़ और टेक्नीशियन के लिए घातक साबित हो सकती है। ऐसा ही एक मामला सामने आया पीजीआई में जहां की पीएमएसवाय बिल्डिंग में रखी एमआरआई मशीन खुले में रखी है। नियमों के मुताबिक किसी भी एमआरआई मशीन को प्लास्टिक या फाइबर के केस में होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इस मशीन से मेग्नेटिक रेडिएशन होता है जिससे कैंसर होने का खतरा रहता है।

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2 एमएम मोटा होना चाहिए केस, टीएलडी बैच और लेड एप्रन भी ज़रूरी

भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर के मुताबिक किसी भी सिटी स्कैन या एमआरआई मशीन को 2 एम एम मोटे कांच या फाइबर प्लास्टिक के केस में रखना चाहिए साथ ही सभी टेक्नीशियनों को टीएलडी बैच पहनना भी बहुत ज़रूरी है। टीएलडी बैच उन्हें खतरनाक रेडिएशन से बचाता है।नियमों के बावजूद अस्पतालों में इसका पालन नहीं हो रहा है। आलम यह है की मरीज़ और टेक्नीशियन दोनों की सेहत ताक पर है।पीजीआई में तो एमआरआई मशीन की4 साल से सीएमसी भी नहीं हुई जबकि नियम यह है की हर साल इस मशीन की सीएमसी की जानी चाहिए।मशीन जिस कमरे में रखी है उस कमरे में तैनात टेक्नीशियन को 12 घंटे तक इस मशीन के पास बैठना पड़ता है जिससे उन्हें मैग्नेटिक रेडिएशन से होने वाला खतरा झेलना पड़ता है।

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कई अस्पताल कर रहे मानकों की अनदेखी

केवल पीजीआई नहीं, दूसरे अस्पतालों का भी यही हाल है। सिविल अस्पताल में भी एक्स रे टेक्नीशियन के पास टीएलडी बैच नहीं है। बलरामपुर अस्पताल में कुछ दिन पहले बैच काउंटिंग के दौरान दोगुना रेडिएशन पाया गया था जिसके चलते एक रेडियोग्राफर को कुछ दिन पहले काम करने से रोक दिया गया था। . लेकिन 15 दिन बाद वह फिर बिना लेड एप्रन के काम करने लगा. लिंब सेंटर का भी कुछ यही हाल है यहां 2 एक्स रे रूम हैं जहाँ एक शिफ्ट में 2 लोग काम करते हैं।यहां भी टेक्नीशियन के पास न तो लेड एप्रन है न ही टीएलडी बैच।

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राज्यपाल की चेतावनी भी हुई बेअसर

राजयपाल राम नाइक ने कहा था कि संस्थानों के ऊपर उनके कर्मचारियों की सुरक्षा का ज़िम्मा है। उन्होंने डॉक्टरों को ऐसे अस्पतालों पर नज़र रखने कि सलाह दी थी जो तय मानकों का पालन नहीं करते और कर्मचारियों की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हैं।उन्होंने सोसाइटी ऑफ़ रेडियोग्राफर्स एंड टेक्नोलॉजिस्ट से टेक्नीशियनों की समस्याओं को लेकर ज्ञापन सौंपने को भी कहा था।इन सबके बावजूद नियमों को ताक पर रखकर तकनीशियनों की जान से खिलवाड़ हो रहा है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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