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मोहर्रम स्पेशल: 300 साल पुरानी सोने-चांदी की ताजिया, हिंदू धर्म के लोगों के लिए बना श्रद्धा का केंद्र
गोरखपुर: शहर में मोहर्रम पर आपसी भाई चारे के साथ ही आस्था की अनोखी मिसाल देखने को मिल रही है। यहां के मियांबाजर में इमामबाडे में रखी सोने चांदी की ताजिया मुश्लिम ही नहीं हिन्दू धर्म के लोगो के लिए भी श्रद्धा का केंद्र है।
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गोरखपुर का धार्मिक महत्त्व के मामले में अलग इतिहास रहा है इसका जीता जागता उदाहरण आपको मियाँ साहेब के इमामबाड़े में देखने को मिल जाएगा। मोहर्रम के महीने में इस इमामबाड़े में बाबा रोशन अली शाह की मजार पर जितनी भीड़ मुश्लिम धर्म के लोगो की नहीं होती उससे कही ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग बाबा के मजार पर आ रहे है और सबसे ख़ास है।
यहां 300 साल से रखी सोने चांदी की ताजिया जो लोगो के लिए श्रद्धा का केंद्र है। ऐसी मान्यता है की यहाँ आने वाले लोगो की मुराद कभी अधूरी नही रहती। रश्मि, श्रद्धालु बताती है कि हमारे घर के लोग यहां पर कई वर्षों से बाबा के मजार पर आकर दुआ मांगती हैं और वह दुआएं पूरी भी हुई है। जिसकी वजह से हम भी यहां पर हर साल आते हैं और बाबा से दुआ मांगते हैं।
दीपक,श्रद्धालु ने बताया कि हम बचपन से मोहर्रम के समय इमामबाड़ा में सोने चांदी ताजिया को देखने तो आते ही हैं साथ में बाबा से दुआ भी मांगते हैं और वह दुआ पूरी भी होती है हमारे पिता और माता भी बाबा की मजार पर आते थे। यही नहीं यहां पर मुहर्रम के समय में दूर-दूर से लोग सोने और चांदी के ताजियों का दीदार करते हैं।
ये एक ऐसा इमामबाड़ा है जहां सोने चांदी की ताजिया है हर साल मोहर्रम में केवल 10 दिनों के लिए इसे बाहर निकाला जाता है और इसीलिए इसका महत्त्व ज्यादा है। अदनान फर्रुख अली शाह,उर्फ़ मियां साहेब, बताते है की बाबा रोशन अली शाह की कारामत को सुन नबाब आसुफुदौला की बेगम ने बाबा को सोने चांदी की ताजिया उपहार के रूप में दिया था।
उनका कहना है की यहाँ जलने वाली धुइ का भी विशेष महत्त्व है। इमामबाड़ा स्टेट मुग़ल काल के वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है इसके कुल चार बुलंद दरवाजे है इसका पूरब का फाटक तो हमेशा खुला रहता है लेकिनं अन्य फाटक मुहर्रम में ही खोला जाता है।