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मुख्तार अब्बास नकवी के नाना जुर्रियत हुसैन ने कहा- आजकल के नेताओं से ज्यादा सच्चे थे पहले के डकैत

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Published on: 11 Feb 2017 9:21 AM IST
मुख्तार अब्बास नकवी के नाना जुर्रियत हुसैन ने कहा- आजकल के नेताओं से ज्यादा सच्चे थे पहले के डकैत
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बरेली: उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है सभी पार्टियां अपनी-अपनी सरकार बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्र में बड़े-बड़े लुभावने वादे कर रही हैं, तो वहीं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के नाना यानी कि जुर्रियत हुसैन काजमी ने आज के नेताओं पर तीक्ष्ण प्रहार किया है। 115 साल के सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी का कहना है कि आज के नेताओं से ज्यादा सच्चे तो पहले के डकैत थे।

जमींदार घराने से ताल्लुक रखने वाले जुर्रियत हुसैन कभी अंग्रेजों की फौज में रहे, तो आजादी के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही रह चुके हैं।

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जुर्रियत हुसैन को अपने कार्यकाल में कई डकैतों को पकड़ने का श्रेय मिला। सात बार राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके जुर्रियत हुसैन आज के नेताओं और राजनीति से खफा हैं। वह अपनी नौकरी के दौरान का एक किस्सा याद करते हुए बताते हैं कि एक बार वह एक डकैत को पकड़कर कोर्ट में पेश करने ले जा रहे थे, डकैत की बहन की शादी अगले ही दिन थी। डकैत ने बहन की शादी की दुहाई दी और शादी के बाद खुद समर्पण करने का वादा किया। पहले तो उन्होंने यकीन नहीं किया। पर बाद में उसे छोड़ दिया। अगले दिन वह आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि शादी कराने के बाद डकैत ने खुद आकर गिरफ्तारी दी थी।

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वह कहते हैं कि डकैत की ईमानदारी देखकर काफी खुश हुए। तब डकैतों पर भी भरोसा किया जा सकता था। मगर आज के नेताओं पर भरोसा करना सबसे बड़ी बेईमानी है, ये कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं।

जुर्रियत हुसैन का कहना है कि आज महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी काफी बढ़ गई है, तब दस रुपए वेतन में आधे से ज्यादा बचा लेते थे। आज महंगाई कमर तोड़ रही है, वेतन पाने वाले भी नहीं सुखी हैं और जो बेरोजगार हैं, उनका दर्द तो पूछिए ही मत।

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120 से भी ज्यादा लोग हैं कुनबे में: केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के नाना सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी के परिवार में आठ बेटे और दो बेटियां हैं। एक बेटी तहजीब फातिमा जो कि मुख्तार अब्बास की मां थी, अब उनका इंतकाल हो चुका है।

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रोजाना आठ किलोमीटर टहलते हैं: मुख्तार अब्बास नकवी के नाना के बारे में ख़ास बात तो यह है कि जिंदगी के 115 बसंत देख लेने के बाद भी वे बिना चश्मे के अखबार पढ़ लेते हैं। रोजाना करीब आठ किलोमीटर टहलना उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा है।

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सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी कभी 17 गांवों के जमींदार थे, पर अफसरशाही में लड़कर एक इंच जमीन भी नहीं पा सके।

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सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी का जन्म मुरादाबाद के कुंदरकी के जमींदार घराने में 1905 में हुआ था।

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अंग्रेजों की सेना में फौजी रह चुके हैं सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी 1970 में हुए रिटायर हुए थे।

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सैय्यद जुर्रियत हुसैन काजमी ने सन 1922 में 10 रुपए से नौकरी की शुरुआत की थी और आज वह 11,025 रुपए पेंशन पा रहे हैं।

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