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आजमगढ़: अब कौन संभालेगा मुलायम की विरासत, सीट पर शिवपाल खेमे की भी नजर
संदीप अस्थाना
आजमगढ़। काफी जद्दोजहद के बाद समाजवादी पार्टी की कमान उनके पुत्र अखिलेश यादव ने संभाल ली है। यह अलग बात है कि इस उत्तराधिकार के झगड़े में जहां मुलायम का परिवार टूटा वहीं सपा भी दो फाड़ हो गयी। मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के नाम पर नये दल का गठन कर दिया। समाजवादियों का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में शिवपाल के इस नये दल के कारण भले ही सपा को बहुत ज्यादा नुकसान न हो मगर यहां के एक बड़े स्थानीय नेता रामदर्शन यादव के शिवपाल के साथ चले जाने के कारण दस विधानसभा सीटों वाले इस जिले में एक सीट मुबारकपुर विधानसभा सीट पर सपा का आगामी लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत काफी कम हो जायेगा। ऐसी परिस्थितियों के बीच एक बड़ा मामला यह है कि जो आजमगढ़ कभी चौधरी चरण सिंह का माना जाता था, बाद में चलकर वह आजमगढ़ उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी मुलायम सिंह यादव के नाम पर जाना जाने लगा। अब मुलायम के कुनबे की परिस्थितियां चाहे जितनी भी क्यों न बिगड़ी हों, लेकिन जब उनके पुत्र अखिलेश ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाल ली है तो यहां के लोग अखिलेश के साथ खड़े हैं। बस दुश्वारियां इस बात की है कि आजमगढ़ में मुलायम की संसदीय विरासत आखिर कौन संभालेगा। दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त है मगर उस लायक चेहरा कम ही नजर आ रहा है।
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मुलायम की संसदीय सीट के कई दावेदार
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी, उस समय मुलायम सिंह यादव ने पूर्वांचल को बचाने के लिए अपने मजबूत दुर्ग आजमगढ़ से चुनाव लडऩे का एलान कर दिया। यहां से वह चुनाव जीते भी और मौजूदा समय में वह आजमगढ़ के ही सांसद हैं। अब जबकि खुद मुलायम सिंह यादव ने यह घोषणा कर दी है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव मैनपुरी से लड़ेंगे तो आजमगढ़ में उनकी विरासत संभालने के लिए राजनीतिक जंग तेज हो गयी है। जहां कुछ नाम कयासों के झरोखों से सामने आ रहे हैं, वहीं कुछ लोग अपनी मजबूत दावेदारी का दावा करते दिख रहे हैं। फिलहाल जो नाम आगे हैं, उनका जिक्र किया जाना जरूरी है।
मुलायम सिंह की आजमगढ़ की संसदीय विरासत संभालने वालों में जो नाम सबसे पहला है, वह नाम बलराम यादव का है। वह सपा के पूर्वांंचल के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री के साथ मौजूदा समय में एमएलसी व सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। यह माना जा रहा है कि अखिलेश यादव उन्हीं पर दाव आजमा सकते हैं। बसपा के साथ गठबंधन होने की स्थिति में उनको यहां से हरा पाना काफी मुश्किल होगा। गठबंधन न होने की स्थिति में भी वह मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव के पारिवारिक सदस्य तेजप्रताप यादव का नाम भी तेजी से उछल रहा है। वह मौजूदा समय में मैनपुरी से सांसद हैं। मुलायम के मैनपुरी से चुनाव लडऩे की स्थिति में सपा तेजप्रताप को आजमगढ़ भेज सकती है। बसपा से गठबंधन रहे या न रहे, मुलायम के पारिवारिक सदस्य को समाजवादियों से इस गढ़ से संसद पहुंचने के रास्ते में शायद ही कोई दुश्वारी खड़ा कर पाए। इसके अलावा सपा के संस्थापक सदस्य रहे स्वर्गीय ईशदत्त यादव के पुत्र नन्दकिशोर यादव का नाम भी इस दौड़ में शामिल है। पिता के निधन के बाद एक बार उन्हें राज्यसभा में भेजा गया था। इसके बाद वह लम्बे समय से राजनीतिक रूप से बेरोजगार चल रहे हैं। बावजूद इसके ईमानदारी के साथ सपा से जुड़े हुए हैं। सपा उन पर भी दांव लगा सकती है। दावेदारी की दौड़ में सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव भी शामिल हैं। शुरूआती दौर में मुलायम सिंह यादव ने उन्हीं को अपना संसदीय प्रतिनिधि बनाया था। यह अलग बात है कि बाद में शिवपाल सिंह यादव ने रामदर्शन यादव को यह जिम्मेदारी दिलवा दी। ऐसी स्थिति में हवलदार भी अपना मजबूत दावा पेश कर रहे हैं।
सीट पर शिवपाल खेमे की भी नजर
मुलायम सिंह यादव के इस बार आजमगढ़ से चुनाव न लडऩे के एलान के बाद जहां सपाई खेमे में उनकी यहां की विरासत संभालने को लेकर होड़ मची हुई है, वहीं इस सीट पर शिवपाल खेमे की भी नजर गड़ी हुई है। इसकी खास वजह यह है कि आजमगढ़ हमेशा से समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है और आज भी है। ऐसे में आजमगढ़ पर कब्जा जमाकर शिवपाल खेमा खुद को असली समाजवादी और मुलायम का राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित करने का हर संभव प्रयास करेगा।
शिवपाल के खेमे से उनके पुत्र आदित्य यादव मैदान में आ सकते हैं। यह भी हो सकता है कि आदित्य की पत्नी जोर आजमाइश करें। वजह यह कि आदित्य की पत्नी का मायका आजमगढ़ जिले के लालगंज विधानसभा क्षेत्र के सलेमपुर गांव में है। उनके दादा सत्यनरायन सिंह एमएलसी रह चुके हैं और पिता संजय सिंह भी राजनीति में ही हैं। ऐसे में उनकी संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव अपने चाचा शिवपाल के साथ हैं। रिश्तों का वास्ता देकर वह भी अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर सकती हैं। शिवपाल खेमे में आजमगढ़ का जाना-पहचाना चेहरा रामदर्शन यादव का भी है। वह सपा के संस्थापक जिलाध्यक्ष रहे और जिले के अंदर उनकी पहचान एक लड़ाकू नेता की है। इसके साथ ही सपा-बसपा गठबंधन के दौर में वह मुबारकपुर से विधायक भी रह चुके हैं। जिले के मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र में उनकी खास पकड़ है। शिवपाल के नवगठित दल के वह आजमगढ़ मंडल के संयोजक होने के साथ ही मुलायम के अभी तक सांसद प्रतिनिधि हैं। ऐसी स्थिति में वह भी इस जिले के लोगों के बीच खुद को मुलायम का राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
राह में रोड़े भी कम नहीं
मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारियों के राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। इसे इसी से समझा जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में जब खुद मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ संसदीय सीट से दावेदार थे तो यहां से भाजपा प्रत्याशी रहे बाहुबली पूर्व सांसद रमाकान्त यादव ने उन्हें कड़ी चुनौती दी थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी तरह से मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते। ऐसे में अगर भाजपा ने इस बार भी रमाकान्त यादव पर दांव लगाया तो निश्चित रूप से मुलायम के आजमगढ़ के उत्तराधिकारी के आगे कड़ी चुनौती होगी। कांगे्रस प्रत्याशी के रूप में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य प्रवीण सिंह मैदान में आ सकते हैं। डीएवी पीजी कालेज के छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के साथ समाज में उनकी साफ-सुथरी छवि है। ऐसे में वह भी कठिनाई पेश करेंगे। बसपा से सपा का गठबंधन न हो पाने की स्थिति में मुबारकपुर के बसपा विधायक शाहआलम उर्फ गुड्डू जमाली मैदान में आ सकते हैं। वह ईमानदार छवि के हैं और विधायक निधि का ईमानदारी से इस्तेमाल करने के साथ ही अपने वेतन व भत्ते का एक भी पैसा खुद पर नहीं खर्च करते। वह अपना वेतन व भत्ता अपने क्षेत्र के जरूरतमंदों को चेक के जरिये बांट देते हैं। वह दूसरी बार विधायक चुने गए हैं और अपने वेतन-भत्ते का एक-एक पैसे का हिसाब रखे हैं। उनका कहना है कि उनके क्षेत्र की जनता कभी भी उनसे एक-एक पैसे का हिसाब ले सकती है। बसपा का ऐसा ईमानदार प्रत्याशी भी मुलायम के उत्तराधिकारी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकता है।