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मुलायम को नमन: इरादे फौलादी पर मन से मुलायम

Mulayam Singh Yadav Death Anniversary: मुलायम सिंह भले ही किसी भी पद पर रहे हों लेकिन सबके लिए सदा सुलभ थे। लोगों से मिलना जुलना उनके जीवन का अंग था। कोई भी उनसे सहजता पूर्वक मिल सकता था। ये क्वालिटी ताउम्र उनमें रही।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 10 Oct 2023 5:38 AM GMT
Mulayam Singh Yadav Death Anniversary
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Mulayam Singh Yadav Death Anniversary

Mulayam Singh Yadav Death Anniversary: राजनीतिक हलकों में "नेताजी" के रूप में लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव की आज पहली पुण्यतिथि है। प्रखर समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, आठ बार राज्य विधानसभा और सात बार संसद के लिए चुने गए। उन्होंने केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया और एक बार तो प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए थे।

जमीनी नेता

मुलायम अग्रणी नेता होते हुए भी जनता के अपने थे, जनता के बीच थे। उनके जमीनी जुड़ाव को कभी भुलाया नहीं जा सकता। ये गुण अब तो एक विरलता बन चुका है। मुलायम सिंह भले ही किसी भी पद पर रहे हों लेकिन सबके लिए सदा सुलभ थे। लोगों से मिलना जुलना उनके जीवन का अंग था। कोई भी उनसे सहजता पूर्वक मिल सकता था। ये क्वालिटी ताउम्र उनमें रही।


इरादे फौलादी

एक पहलवान से शिक्षक और फिर पॉलिटीशियन बने मुलायम, फौलादी इरादों वाले व्यक्ति थे। इटावा जिले के सैफई गांव से ताल्लुक रखने वाले मुलायम का एक राजनेता के रूप में निजी सफर यूपी के राजनीतिक इतिहास से जुड़ा हुआ रहा, 1980 और 1990 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर से लेकर 2012 तक, जब उन्होंने अपने बेटे को बागडोर सौंप दी थी।

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यूपी की राजनीति में मुलायम का उदय 1970 के दशक के बाद तीव्र सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल की अवधि के साथ हुआ। उस दौर में ओबीसी वर्ग ने तब यूपी में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करना शुरू कर दिया था, जिससे उच्च जाति के नेताओं के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी दरकिनार कर दी गई थी। और यूपी,आक्रामक राम जन्मभूमि मंदिर अभियान के मद्देनजर तीव्र सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देख रहा था।


एक समाजवादी नेता के रूप में उभरते हुए, मुलायम ने जल्द ही खुद को एक ओबीसी दिग्गज के रूप में स्थापित कर लिया, और कांग्रेस द्वारा खाली किए गए राजनीतिक स्थान पर कब्जा कर लिया। 1989 में यूपी के 15वें सीएम के रूप में मुलायम द्वारा शपथ लेने के बाद से कांग्रेस राज्य में सत्ता में नहीं लौट सकी।

हमेशा मुखर रहे

राजनीति में मुलायम न तो अपने मन की बात कहने में झिझकते थे और न ही जिस बात में विश्वास करते थे उस पर अमल करने में झिझकते थे।

उन्होंने 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के उम्मीदवार के रूप में इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट जीतकर 28 साल की छोटी उम्र में पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल (बाद में इसका नाम भारतीय लोकदल हो गया) के उम्मीदवार के रूप में सात बार जीत हासिल की, बाद में 1989 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में और 1991 में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। 1992 में उन्होंने अपनी समाजवादी पार्टी बना ली। 1996 में मुलायम संसद के लिए चुने गए। उसके बाद से यह सीट उनके भाई शिवपाल सिंह यादव ने जीती।


रक्षा मंत्री का कार्यकाल

सांसद के रूप में अपने पहले कार्यकाल में, मुलायम ने संयुक्त मोर्चा सरकार में केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने चीन को पाकिस्तान की तुलना में भारत का "एक बड़ा दुश्मन" कहा था और आखिरी तक वे इस बयान पर कायम रहे।

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बतौर सीएम पहला कार्यकाल

मुलायम पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के नेतृत्व वाली सरकार के तहत मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल दो साल से अधिक नहीं चल सका। वजह ये थी कि पार्टी केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में विभाजित हो गई थी।

उनके पहले शासनकाल के दौरान, 30 अक्टूबर 1989 को पुलिस ने अयोध्या में एकत्रित कारसेवकों पर गोलियां चलाईं। उस घटना पर बाद में उन्होंने दुख और खेद व्यक्त किया, लेकिन यह कहते हुए इसे उचित ठहराया कि एक धार्मिक स्थान, देश की एकता और देश में मुसलमानों की आस्था की रक्षा के लिए ये आवश्यक था।


दूसरा कार्यकाल

1993 के विधानसभा चुनावों के बाद मुलायम दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, जब उन्होंने बसपा के साथ सरकार बनाई। यह सरकार कुख्यात गेस्ट हाउस कांड के चलते गिर गई।

मुलायम 2003 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने 500 रुपये प्रति माह की कई सामाजिक कल्याण योजनाओं और बहुचर्चित बेरोजगारी भत्ता की शुरुआत की। उन्होंने गरीब छात्राओं की मदद के लिए एक कन्या विद्या धन योजना भी शुरू की, जिसे बाद में बेटे अखिलेश यादव ने पुनर्जीवित किया।


हिंदी के पैरोकार

मुलायम, सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग के प्रबल समर्थक थे, और अक्सर अंग्रेजी के खिलाफ बोलते थे। 2013 में, उन्होंने संसद में अंग्रेजी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की। 2009 के लोकसभा चुनावों में, समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र ने "महंगी अंग्रेजी शिक्षा" और कंप्यूटर के खिलाफ कहा कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी।

मुलायम ने धीरे धीरे अपने आप को राजनीति से समेट लिया था और बेटे अखिलेश को लगभग पूरी बागडोर सौंप दी थी। मुलायम अब नहीं हैं लेकिन उनकी लिगेसी हमेशा कायम रहेगी।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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