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Mulayam Singh Yadav: मुलायम का पहला चुनावी खर्च था 20 हजार रुपए, कांग्रेसी बोलते थे 'कल का छोकरा', मगर...
Mulayam Singh Yadav: UP के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव साल 1967 में जसवंतनगर सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़े थे। चुनावी जीत के साथ वह विधायक बने। मुलायम सिंह यादव अपने खानदान के पहले शख्स थे, जो राजनीति में आए।
Mulayam Singh Yadav: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) वर्ष 1967 में जसवंतनगर सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunaav) लड़े थे। चुनावी जीत के साथ वह विधायक बने। मुलायम सिंह यादव अपने खानदान के पहले शख्स थे, जो राजनीति (Mulayam Singh Yadav Family In Politics) में आए। दरअसल, जसवंतनगर सीट से तब विधायक हुआ करते नत्थू सिंह (Nathu Singh)। नत्थू सिंह ने जब पहली बार मुलायम को कुश्ती के अखाड़े में देखा, तो काफी प्रभावित हुए। कुश्ती में मुलायम सिंह के दांव-पेंच से नत्थू सिंह इतने प्रभावित हुए कि अपनी सीट उनके लिए छोड़ दी।
इतना ही नहीं, नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह यादव के लिए सिर्फ सीट ही नहीं छोड़ी, बल्कि उन्हें सोशलिस्ट पार्टी (Congress Socialist Party) से टिकट भी दिलवाया। इसके लिए उन्होंने राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) से सिफारिश भी की। मुलायम सिंह से छोटे भाई अभय राम यादव (Abhay Ram Yadav) ने एक खबरिया वेबसाइट से बातचीत में बताया था, कि 'तब नेताजी' के पास सिर्फ एक गाड़ी हुआ करती थी। बाकि लोग पैदल या साइकिल से चला करते थे।'
पूरे चुनाव का खर्च 20 हजार रुपए
अभय यादव आगे कहते हैं, 'मुलायम सिंह यादव पेशे से शिक्षक (Mulayam Singh Yadav Teacher) थे। लेकिन नत्थू सिंह ने उन्हें चुनाव लड़वा दिया।' अभय बताते हैं, 'नत्थू, मुलायम सिंह के भाषण से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने 'नेताजी' को अपना चेला बनाकर चुनाव लड़ाया था। इनके पास एकमात्र गाड़ी थी। गांव के लोग साइकिल और पैदल से ही प्रचार के लिए निकल पड़ते थे। तब पैसों की इतनी जरूरत पड़ती भी नहीं थी। उस वक्त 20 हजार रुपए में पूरा चुनाव हो गया था। इसमें नई गाड़ी भी ली थी। अब तो पूछो मत। लाखों रुपए तो कोई पूछता भी नहीं है। कहीं ज्यादा लगता है एक प्रत्याशी को चुनाव लड़ने में।'
'शिवपाल भी खेती ही किया करता था'
अभय यादव बातचीत के दौरान चुनावी खर्चों पर जोर देते रहे। बोले, 'अब चुनाव में बहुत ज्यादा खर्चा होने लगा है। लेकिन पहले ऐसा बिल्कुल भी नहीं था।' लेकिन जब उनसे ये पूछा गया, कि 'आप राजनीति में क्यों नहीं आए?' तब उन्होंने कहा, "पहले हमारा परिवार खेती किया करता था। हम राजनीति के लिए नहीं बने हैं। तो खेती छोड़कर राजनीति में क्यों जाते?' पहले तो शिवपाल (शिवपाल यादव) भी हमारे साथ ही खेती करता था। वो तो बहुत बाद में जाकर उसने भी खेती छोड़ दी और राजनीति में आ गया।" तब से दोनों भाई राजनीति कर रहे हैं। फिर परिवार के अन्य लोग भी राजनीति में आए।
कांग्रेसी मुलायम का मजाक उड़ाते थे
डॉ. सुनील जोगी ने अपनी किताब 'एक और लोहिया: मुलायम सिंह यादव' में मुलायम सिंह यादव से जुड़ी ऐसी कई कहानियों का जिक्र किया है। ऐसे ही उद्धरण में डॉ. जोगी बताते हैं, "साल 1967 (जब मुलायम सिंह पहली बार चुनाव लड़े थे) में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी। केंद्र और उत्तर प्रदेश में दोनों जगह उसी की सरकार थी। ऐसे में जब मुलायम सिंह यादव पहली बार चुनावी मैदान में उतरे, तो कांग्रेस के नेता उन पर तंज कसते थे। उनका मजाक उड़ाते थे।"
मुलायम को कहते थे 'कल का छोकरा'
जोगी लिखते हैं, 'मुलायम के नाम की घोषणा होते ही सब हैरान रह गए थे। लेकिन कांग्रेस के नेताओं की बांछें खिल गई थीं। वो इतने खुश थे कि जैसे बिन मांगे मुराद पूरी हो गई थी। कांग्रेस के स्थानीय नेता तब मुलायम सिंह को 'कल का छोकरा' कहकर बुलाने लगे। लेकिन चुनाव के नतीजों ने सबको हैरान कर दिया था।' जोगी लिखते हैं, चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस को पता चला कि वही कल का छोकरा उन्हें पानी पिला गया।
मुलायम सिंह यादव से जुड़ी कहानियां बताती हैं कि एक साधारण किसान परिवार से आए एक शख्स को हर कदम पर साबित करने में कितनी मेहनत करनी पड़ी। लोगों के तंज, धमकी और हताश करने वाले शब्द सब सुनने पड़े थे तब। लेकिन इन सबसे आगे जाकर मुलायम सिंह यादव ने खुद को साबित किया।
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