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29 साल से यह मुस्लिम परिवार मना रहा है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
कानपुर: मुग़ल शासक अकबर के ज़माने से हिन्दू-मुस्लिम एकता और गंगा जमुनी तहजीब की कई मिसालें हिन्दुस्तान अपने आगोश में समेटे हुए है। जहां एक तरफ अकबर की तीसरी पत्नी जोधाबाई हर साल कृष्ण जन्मआष्ट्मी धूमधाम से मनाती थी l वहीं अकबर के नौ रत्नों में शामिल तानसेन भी इस उत्सव में शरीक होते थे। आज भी कुछ लोग धर्म और कट्टरवाद से ज्यादा ख़ुशी को अहमियत देते हैं और हिन्दू-मुस्लिम की एकता की मिसाल रखते हैं। ऐसा ही एक नाम है डॉ. एस. अहमद, जो पिछले कई सालों से जन्माष्टमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाते आ रहे हैं।
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कानपुर के बर्रा विश्वबैंक निवासी डा. एस. अहमद मियाँ के घर में गूंजती घंटियों की आवाज और उसके साथ "ॐ जय जगदीश हरे .." आरती की आती आवाज़े सुनकर उन लोगो की आँखों में भी पानी आ जायेगा, जो पानी में शक्कर की तरह घुल चुकी इस संस्क्रति को तोड़ने का सपना संजो लेते हैं।
बाराबंकी की एक मज़ार जहाँ हिन्दू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते हैं वहीं से प्रेरणा लेकर डा.एस. अहमद बड़े धूम से और श्रद्धा से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। डा. अहमद का मानना है कि जब देश के महापुरुषों का जन्म दिन हिन्दू और मुस्लिम एक साथ मना सकते हैं, तो श्री कृष्ण का जन्म दिन मनाने में क्या परहेज़।
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हालाँकि बहुत से कट्टरपंथियों ने डा. एस. अहमद का विरोध भी किया पर उन्हें इस बात से कोई भी परहेज़ नहीं है और पिछले 29 सालों से वे लगातार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने घर में, अपने परिवार के साथ मनाते आ रहे हैं और बड़े फक्र से यह भी कहते हैं कि मेरे द्वारा सजाई गई झांकी में श्री कृष्ण के इतने रूप होते हैं जो शायद और किसी के घर में देखने को ना मिलें।
डा. एस. अहमद के सभी पडोसी उनकी इस श्रद्धा और ज़ज्बे का एहतराम करते हैं और उनके साथ पूरी श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। डा. अहमद भी बड़े मनोयोग से श्री कृष्ण की मूर्तियों को किसी बच्चे की तरह सहेज कर रखते हैं, जिस देश में दो संस्कृतियों में इतने प्यारे और गहरे सम्बन्ध स्थापित हो चुके हों, वहां भला अलगाववादी ताकतों को हारना ही पड़ेगा। इसे खुदा का आशीर्वाद कहें या फिर भगवान् की रहमत, लेकिन इस एकता को कायम रखने का प्रयास सभी को करना चाहिए।