×

नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया

कुंभ में हुंकार भरते, शरीर पर भभूत लगाए नाचते-गाते नागा बाबाओं को अक्सर आप ने देखा होगा, लेकिन कुंभ खत्म होते ही ये नागा बाबा न जाने किस रहस्यमयी दुनिया में चले जाते हैं, इसका किसी को नहीं पता। नागा साधु आखिर कहां से आते हैं और कुंभ के बाद कहां जाते हैं?

Dharmendra kumar
Published on: 14 Jan 2019 10:45 AM GMT
नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया
X

प्रयागराज: कुंभ में हुंकार भरते, शरीर पर भभूत लगाए नाचते-गाते नागा बाबाओं को अक्सर आप ने देखा होगा, लेकिन कुंभ खत्म होते ही ये नागा बाबा न जाने किस रहस्यमयी दुनिया में चले जाते हैं, इसका किसी को नहीं पता। नागा साधु आखिर कहां से आते हैं और कुंभ के बाद कहां जाते हैं? कैसी होती है उनकी जिंदगी और वो कैसे बनते हैं नागा साधु? आइए हम आप को ले चलते हैं उनके अनदेखे संसार में।

यह भी पढ़ें.....भाजपा संविधान विरोधी पार्टी, यूपी- बिहार से होगा सफाया: तेजस्वी

प्रयागराज की पवित्र धरती पर आयोजित होने वाले कुंभ मेले में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र नागा साधु होते हैं। संन्यास परंपरा से आने वाले नागा साधु कहां से आते हैं और कुंभ खत्म होते ही कहां चले जाते हैं, इसे लेकर अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है। आइए जानते हैं नागा साधुओं की रहस्यमय दुनिया के बारे में।

यह भी पढ़ें.....कंप्यूटर पर निगरानी का मामला: SC ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में मांगा जवाब

आने-जाने का किसी को पता नहीं चलता

कुंभ मेले बड़ी संख्या में आने वाले नागा साधु पहुंचते हैं। मगर इनके आने और जाने का शायद ही किसी को पता चलता है। जानकारों के मुताबिक नागा साधु कभी भी आम मार्ग से नहीं जाते, बल्कि देर रात घने जंगल आदि के रास्ते से यात्रा करते हैं। पत-साधना में लीन रहने वाले नागा साधुओं के बारे में माना जाता है कि एक आम आदमी के मुकाबले कहीं ज्यादा कठिन जीवन होता है।

यह भी पढ़ें.....प्रयागराज कुंभ देगा पर्यावरण संरक्षण का संदेश

सात अखाड़ों से होते हैं नागा साधु

वैसे तो संतों के 13 अखाड़े हैं मगर सात अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं। ये सात अखाड़े हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन। विशेष दीक्षा के बाद नागा साधु बनाए जाते हैं और फिर उन्हें वरीयता के आधार पर कोतवाल, बड़ा कोतवाल, महंत, सचिव आदि पद दिए जाते हैं। कोतवाल अखाड़े और नागा साधुओं के बीच सेतु का कार्य करता है।

यह भी पढ़ें.....प्रयागराज के दिगंबर अखाड़े में लगी भयंकर आग, एक दर्जन टेंट जलकर राख

करते हैं खूब शृंगार

कम लोगों को पता है कि आम आदमी की तरह नागा साधु भी शृंगार करते हैं। सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रिया और स्नान के बाद नागा साधु शृंगार करते हैं। नागा साधु भभूत, रुद्राक्ष, कुंडल आदि से शृंगार करते हैं और अपने साथ त्रिशूल, डमरू, तलवार, चिमटा, चिलम आदि जरूर रखते हैं।

एक जगह पर नहीं टिकते

नागा साधु प्राय: एकांत में रहते हैं। वे हिमालय की चोटियों, गुफाओं, अखाड़ों के मुख्यालय, और मंदिर आदि में धूनी जमाकर साधनारत रहते हैं। एक विशेष बात यह है कि वे कभी भी एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं टिकते हैं और पैदल ही भ्रमण करते हैं।

यह भी पढ़ें.....कुंभ 2019 – मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर, आस्था का पर्व

आराधना के साथ योग

वे अपने अखाड़े से जुड़े देवता की आराधना के साथ ही यौगिक क्रियाएं भी करते हैं। कुंभ मेलों के आयोजन के समय ही इन नागा साधुओं का वैभव दुनिया को दिखता है। ऐसा कहा जाता है कि नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं। वो खाना भी भिक्षा मांगकर खाते हैं। इसके लिए उन्हें सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार होता है।

कैसे बनते हैं नागा साधु

हाड़ कंपाने वाली सर्दी में भी ये नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं तो भरी गर्मी में भभूत लगाए हुए नजर आते हैं। नागा साधुओं की जिंदगी बेहद कठिन होती है। उनके तैयार होने की प्रक्रिया कई सालों तक चलती है, उसके बाद नागा साधु तैयार होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में जाता है, तो सबसे हले उसके पूरे बैकग्राउंड के बारे पता किया जाता है। जब अखाड़ा पूरी तरह से आश्वस्त हो जाता है, तब शुरू होती है, उस शख्स की असली परीक्षा।

यह भी पढ़ें.....गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देने वाला पहला राज्य बना गुजरात, आज होगा लागू

अखाड़े में एंट्री के बाद नागा साधुओं के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है, जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म की दीक्षा दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में एक साल से लेकर 12 साल तक लग सकते हैं। अगर अखाड़ा यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है, फिर उसे अगली प्रक्रिया से गुजरना होता है। दूसरी प्रक्रिया में नागा अपना मुंडन कराकर पिंडदान करते हैं, इसके बाद उनकी जिंदगी अखाड़ों और समाज के लिए समर्पित हो जाती है। वो सांसारिक जीवन से पूरी तरह अलग हो जाते हैं। उनका अपने परिवार और रिश्तेदारों से कोई मतलब नहीं रहता।

पिंडदान ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वो खुद को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मान लेता है और अपने ही हाथों से वो अपना श्राद्ध करता है। इसके बाद अखाड़े के गुरु नया नाम और नई पहचान देते हैं। नागा साधु बनने के बाद वो अपने शरीर पर भभूत की चादर चढ़ा देते हैं। ये भस्म भी बहुत लंबी प्रक्रिया के बाद बनती है। मुर्दे की राख को शुद्ध करके उसे शरीर पर मला जाता है या फिर हवन या धुनी की राख से शरीर ढका जाता है।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

Next Story