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चहेते ठेकेदारों को कम रेट पर दे दिए गए नगरपालिका टेंडर
टेंडर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार कितने भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु नगर पालिका टांडा सारे जतन को फेल कर धन की बंदर बांट करने में अव्वल है।
अम्बेडकर नगर: टेंडर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार कितने भी प्रयास क्यों न कर ले किंतु नगर पालिका टांडा सारे जतन को फेल कर धन की बंदर बांट करने में अव्वल है। ऐसा करोड़ों की टेंडर प्रक्रिया में देखने को मिला।
72 कार्यों के सापेक्ष आनलाइन निविदाएं नगर पंचायत द्वारा आमंत्रित की गईं थीं। जिसके सापेक्ष अधिकारियों ने अपने चहेते ठेकेदारों को ही मामूली कम दरों कार्य दे दिए। अन्य को बिना कारण बताए नॉन रिस्पांसिव कर दिया गया। जिसके एवज में अच्छी वसूली भी किये जाने के संकेत मिले हैं।
विभागीय दर से कम पर हुई निविदा
नगर पालिका परिषद टांडा द्वारा 72 कार्यों के लिए निविदाएं आमंत्रित की गईं थीं। इतने दिनों में ज्यादातर काम पहले हो चुके थे। जिसकी खबर प्रकाशन के बाद आनन-फानन में 25 कार्यों की निविदाओं को तुरंत निरस्त करते हुए अन्य कार्यों को कराने के लिए निविदा आमंत्रित की गयी थी।
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जिस पर शासनादेश के अनुसार नगरपालिका के अलावा अन्य विभागों के भी समस्त ठेकेदार निविदा में भाग ले सकते थे। लेकिन यह महज एक दिखावा था। इसकी आड़ में नगर पालिका में टेंडर मैनेज का खेल खेला गया और मोटी रकम अधिकारियों को देकर विभागीय दर से एक से 2% कम दर पर निविदा आसानी से प्राप्त कर ली गयी।
इससे जहां एक ओर कार्यों पर अधिक सरकारी धन का व्यय हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ यहां के अधिकारियों के भी पास अच्छा खासा चढ़ावा पहुँच गया।
चहेते ठेकेदारों दिए जा रहे टेंडर
निविदा मैनेज न होने की दशा में निविदा 20 फीसदी से कम दर पर कार्यदायी संस्थाओं द्वारा डाली जाती। जो को इस निविदा के पूर्व हुई निविदा में देखा जा सकता है। मैनेजमेंट के खेल में सरकारी धन कर दुरुपयोग हो रहा है।
ऐसे में जब सूबे के मुख्यमंत्री निविदा किसी भी दशा में निरस्त ना करते हुए कम दर की निविदाओं पर कार्य कराने को प्राथमिकता देते हैं तो उसके विपरीत नगर पालिका अपने निजी हितों को पूरा करने के लिए चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से कार्य करती दिख रही है। 70 कार्यों के सापेक्ष अकबरपुर के एक ठेकेदार ने पांच कार्यों पर निविदाएं दीं थीं जो निर्धारण लागत लगभग एक करोड़ 80 लाख रुपये की थी।
उस ठेकेदार को पहले कार्यालय में बुलाकर कार्यों के सापेक्ष तीन प्रतिशत की मांग की गई। जिसको पूरा करने की असमर्थता जताते हुए जब ठेकेदार ने कहा कि 10 फीसदी कॉन्ट्रेक्ट्स लाभ निविदा में जुड़ा होता है।
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और 7 से 8 फीसदी कम दर पर उसने टेण्डर ही डाला है। तो यह डिमांड कहा से पूरा की जा सकती है। तो बिना कारण बताए उसकी समस्त निविदाएं ही नॉन रिस्पांसिव कर दीं गयीं। जबकि उन्हीं प्रपत्र पर अन्य विभागों में उसकी निविदाएं रिस्पॉसिव होतीं थीं।
दस करोड़ से अधिक के कार्य में हुआ बंदर बांट
संबंधित ठेकेदार ने यहां तक बताया कि टेण्डर डालने के बाद जब मूल कॉपी कार्यालय में जमा कराने गया, तो वहां पर उसे रोका गया। जिसके 2 दिन बाद पुनः कार्यालय में मूल अभिलेख और निविदा शुल्क के अलावा जमानत धनराशि जमा करके इसकी सूचना अधिशाषी अधिकारी नगर पालिका को भी दी थी।
जिसपर उन्होंने पुनः 3 फीसदी की मांग पूर्ण करने पर ही विचार करने को कहा। दस करोड़ से अधिक के कार्य में किस तरह बन्दर बांट करते हुए निविदा आनन फानन में खोली गई है। उसका उदाहरण नगर पालिका द्वारा ऑनलाइन अपलोड ठेकेदारों की रिस्पांसिव और नॉन रिस्पांसिव सूची को भी देख कर लगाया जा सकता है।
जिसमें न तो कोई पत्रांक है न ही कोई दिनांक है। यहां तक कि अधिशाषी अधिकारी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं । सिर्फ एक अपर अभियंता के हस्ताक्षर पर सब कुछ फाइनल कर दिया गया है। शासनादेश के अनुसार निविदा खोले जाने के बाद ही हार्ड कॉपी जमा कराया जाता है।
लेकिन नगर पालिका प्रशासन ने रोकने की हर जुगत अपनाते हुए निविदा खोले जाने के पूर्व ही ठेकेदार से हार्ड कॉपी जमा करवा लिया था। इस सम्बन्ध में जब ईओ टाण्डा से बात करने का प्रयास किया गया तो काफी प्रयास के बाद भी उनसे सम्पर्क नही किया जा सका।