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पीएम का स्वच्छता अभियान फेल, घाट से उतरा गंगा का पानी
लखनऊ: करीब साढ़े तीन साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने काशी से गंगा निर्मलीकरण का मुद्दा छेड़ा तो लोगों के मन में गंगा की स्वच्छता की उम्मीद जगी। उन्होंने गंगा को चुनावी मुद्दा भी बनाया, लेकिन आज हालात पहले से ज्यादा बदतर हो गए हैं। आलम यह है कि अब तो सर्दियों में भी गंगा घाटों को छोडऩे लगी हैं। आमतौर पर यह नजारा गर्मियों में देखने को मिलता है। उसमें धारा भी बहती नजर नहीं आती। लोगों को ऐसे हालात में गर्मी में गंगा के सूखने का खतरा नजर आ रहा है। ऐसा नहीं है कि यह हालात सिर्फ वाराणसी के हैं बल्कि ऐसा ही नजारा इलाहाबाद और कानपुर का भी है।
काशी में सीढिय़ों से काफी दूर बह रहीं गंगा : बनारस के सभी घाटों का अगर जायजा लें तो गंगा के घाट की सीढिय़ों से दूर जाने की भयावह स्थिति अस्सी घाट से दिखनी शुरू हो जाती है। यहां गंगा सीढिय़ों से तकरीबन 45 फिट दूर बह रही हैं। गंगा प्रेमी यह यकीन ही नहीं कर पा रहे कि कुछ दिन पहले गंगा की लहर नजर आती थी मगर आज उस जगह सिल्ट नजर आ रही है। गंगा का अस्सी से लेकर आदिकेशव घाट तक किनारों से दूर होना खतरे की ओर इशारा कर रहा है। मौजूदा हालात यह हैं कि गंगा कहीं 30 तो कहीं 60 फुट तक घाटों से गंगा दूर हो गई हैं। गंगा की धारा भी ठहर सी गयी है। वाराणसी में गंगा के जलस्तर में एक साल में ढाई फीट से अधिक की कमी आ चुकी है।
नमामि गंगे योजना का नहीं दिख रहा असर : नमामि गंगे योजना का बनारस में कहीं असर नहीं दिख रहा है। प्रदूषण का लेवल बढऩे के साथ ही काशी में गंगा सिकुड़ती जा रही है। बनारस में गंगा की चौड़ाई कभी 800 मीटर हुआ करती थी जिसे तैरकर पार करना मुश्किल था। आज गंगा की चौड़ाई सिर्फ 400 मीटर रह गई है। इसके अलावा बनारस में लोग गंगा का पानी ही पीते थे लेकिन आज प्रदूषण इतना ज्यादा है कि आचमन तक नहीं करते। बनारस में हर रोज भारी मात्रा में सीवेज गंगा में डाला जाता है और यह हाल तब है जब नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा साफ करने के बड़े वादे किये गए थे।
गंगा का हाल देख गुस्से में श्रद्धालु : बनारस में गंगा के इस हाल को देख श्रद्धालु गुस्से में हैं। घाट किनारे रहने वाले लोग भी गंगा के इस रूप को देखकर हैरान हैं। अस्सी घाट पर प्रतिदिन गंगा में स्नान करने वाले सुरेन्द्र प्रसाद कहते हैं कि सॢदयों में गंगा का यह रूप डराने वाला है। घाटों को छोडऩा कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह सिर्फ गॢमयों में देखने को मिलता था। जानकार बताते हैं कि गंगा में प्रदूषण को न रोका गया तो आने वाले कुछ सालों में अस्सी की तरह अन्य घाटों पर भी ऐसा ही नजारा देखने को मिल सकता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि गंगा में कछुआ सेंचुरी के नाम पर कई तरह की रोक लगा दी गई है। घाट किनारे बालू का जमाव बढ़ता जा रहा है। बालू का टीला कही न कहीं उसके बहाव को भी कम कर रहा है।
कानपुर में जलस्तर काफी नीचे : कानपुर में मई और जून की गर्मी में गंगा में पानी कम होता है। दिसंबर महीने में गंगा का जलस्तर अचानक नीचे चले जाने से लोग आश्चर्यचकित हैं। गंगा का जलस्तर लगभग चार से पांच फिट नीचे चला गया है। वैसे अभी भी गंगा शहर के प्रमुख घाटों से दूर नहीं हुई है। जनवरी माह में माघ मेला है। लोग इसे उससे भी जोडक़र देख रहे हैं। वैसे अचानक गंगा का जलस्तर कम होने से शहर में किसी तरह का पेयजल संकट नही है।
सरसैया घाट में रहने वाले पंडित विशेष बाजपेयी का कहना है कि जलस्तर घटा है,लेकिन इसमें कोई परेशानी वाली बात नहीं है। दरसल गंगा बैराज से होकर पानी जाता है और गंगा बैराज का सिर्फ एक गेट खुला हुआ है और सिर्फ उसी से पानी आ रहा है। यदि गंगा बैराज के बिठूर वाले हिस्से की बात की जाए तो वहां पर पर्याप्त पानी है। पूरे शहर में भैरवघाट पम्पिंग स्टेशन से पानी की सप्लाई सुचारू रूप से दी जा रही है। इसके साथ ही गंगा बैराज पम्पिंग स्टेशन से भी वाटर लाइन की टेस्टिंग की जा रही है। अभी भी गंगा में पर्याप्त पानी है। शहर में किसी प्रकार की कोई समस्या नही है।
भैरव घाट पम्पिंग स्टेशन के कर्मचारी नरेश के मुताबिक गंगा में बहुत पानी है। यदि पानी घटा है तो इसका कारण यह है कि नरौना बांध से कम मात्रा में पानी छोड़ा जा रहा है। दिसंबर व जनवरी माह बेहद ठंडे रहते हैं और इन महीनों में पानी की खपत भी बहुत कम होती है। अगले माह माघ मेला है। उस समय पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ा जाएगा ताकि माघ मेले में किसी प्रकार की समस्या न हो।
वाराणसी से आशुतोष सिंह व कानपुर से सुमित शर्मा