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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन तलाक पर मास्टरस्ट्रोक, विरोधी पड़े अलग-थलग

raghvendra
Published on: 29 Dec 2017 1:10 PM IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन तलाक पर मास्टरस्ट्रोक, विरोधी पड़े अलग-थलग
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योगेश मिश्र

कभी शाहबानो के गुजारा भत्ता के मामले में प्रचंड बहुमत की सरकार के मुखिया राजीव गांधी को घुटनों पर टिका देने वाली ताकतों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर बोलती बंद हो गई। लोक सभा से मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 जबर्दस्त समर्थन से पास हो गया। क्योंकि यह मोदी का मास्टरस्ट्रोक है। इसके मार्फत वह एक तरफ अपनी पार्टी के मूलाधार जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडे को लागू करने की दिशा में आगे बढ़े हैं तो दूसरी तरफ लंबे समय से तुष्टिकरण की सियासत करने वाली ताकतों को घुटने के बल खड़ा कर दिया है।

तीन तलाक पर केंद्र सरकार के स्टैंड से अल्पसंख्यक जमात की महिलाओं के बीच नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी की पहुंच से राजनीतिक समर में भी इच्छित फल दिलाने में कामयाबी मिल सकती है। यही वजह है कि पहली मर्तबा आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अलग थलग पड़ गया है। तीन तलाक के मुद्दे पर कठमुल्लों और शरीयत की आड़ लेने वालों को सदन के अंदर और सदन के बाहर दोनों जगहों पर विरोध झेलना पड़ा।

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मुस्लिम महिलाओं की बड़ी जमात एक साथ तीन तलाक पर प्रतिबंध के पक्ष में खड़ी थी इस के लिए बाकायदा भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के नाम से एक संगठन भी बन गया। इस संगठन की मुख्य मांग तीन तलाक, हलाला और मुसलमान मर्दों को एक से ज्यादा शादी करने पर पाबंदी है। इस संगठन द्वारा कराए गए एक सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 92.1 फीसदी महिलाएं तीन तलाक पर प्रतिबंध चाहती हैं। 97 फीसदी महिलाएं तलाक से पहले मध्यस्थता को अनिवार्य मानती हैं जबकि 91.7 फीसदी महिलाएं बहुविवाह के खिलाफ हैं। 88.5 फीसदी महिलाएं चाहती हैं कि जिस काजी ने तीन तलाक की नोटिस भेजी है उसे दंडित किया जाए। 88.3 फीसदी महिलाएं तलाके अहसन के मार्फत तलाक दिए जाने को जायज मानती हैं। इसके तहत तीन तलाक अलग-अलग समय पर बोले जाते हैं।

इस आंदोलन की सह संस्थापिका नूरजहां साफिया नियाज बताती हैं कि तीन तलाक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14-15 के तहत मिले बराबरी के अधिकार का उल्लंघन करता है। करीब पांच हजार मुस्लिम महिलाओं पर कराए गए सर्वे के नतीजों के मुताबिक 55.3 फीसदी मुस्लिम लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। 53.3 फीसदी मुस्लिम महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं। 88.9 फीसदी मुस्लिम महिलाएं चाहती हैं कि तलाक के बाद बच्चे उसी के पास रहें। इस सैंपल सर्वे के नतीजे पर जब सवाल उठाए गए तब संगठन की महिलाओं ने साफ किया कि उनकी पहुंच और आर्थिक स्थिति इससे बड़ा सैंपल लेने की नहीं थी। कमोवेश यह पूरे मुस्लिम महिला समाज का प्रतिनिधित्व करता है।

देश में 14.23 फीसदी मुस्लिम आबादी है जो पिछली जनगणना के मुताबिक 17.22 करोड़ बैठती है। इसमें मुस्लिम महिलाओं की तादाद 8.39 करोड़ के आसपास है। किसी भी सियासी लक्ष्य के लिए यह एक बड़ा आंकड़ा है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 42.7 फीसदी मुस्लिम अशिक्षित हैं। 2007 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि बीस फीसदी साक्षर मुस्लिम महिलाएं सिर्फ प्राइमरी तक का ज्ञान रखती हैं जबकि 8.7 फीसदी अपर प्राइमरी का, सात फीसदी सेकेण्ड्री व हायर सेकेण्ड्री व 1.5 फीसदी स्नातक या उससे ऊपर की तालीम पाने वालों में शुमार हैं। 85 फीसदी मुस्लिम महिलाएं पति पर निर्भर हैं सिर्फ 14.8 फीसदी मुस्लिम महिलाएं ही घरों से निरंतर बाहर निकलती हैं। तलाकशुदा 65 फीसदी मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ बोलकर तलाक दे दिया गया। भारत में तलाकशुदा मुस्लिम पुरुष के मुकाबले तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या चार है। मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई लड़ रहे इस संगठन की 15 राज्यों में शाखाएं हैं।

आधी आबादी का सशक्तिकरण

नरेंद्र मोदी के इस फैसले से जहां अल्पसंख्यक जमात की आधी आबादी को सशक्तिकरण का इल्हाम हो रहा है वहीं सत्तारूढ़ भाजपा भी मजबूत हो रही है। यह मोदी का एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक है जिसके मुखालफत की स्थिति में भी विपक्ष नहीं रहा क्योंकि गोवा में समान नागरिक संहिता लागू है, यहां कांग्रेस की सरकार भी रह चुकी है। साइप्रस, जार्डन, अल्जीरिया, सूड़ान, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, कतर, पाकिस्तान सरीखे 22 मुस्लिम देशों में तीन तलाक प्रतिबंधित है। 20 जून 1611 को जहांगीर ने भी तीन तलाक पर पाबंदी लगा दी थी। जिस तीन तलाक की मार मुस्लिम महिलाएं सह रही हैं वह न तो कुरान का हिस्सा है न उनके धर्म का हदीस में भी इस तीन तलाक की अनुमति नहीं है।

मुस्लमानों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर काम करने वाले जस्टिस राजेन्दर सच्चर ने भी तीन तलाक के भारतीय चलन पर सवाल खड़े किये हैं। ऐसे में तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार के बढ़े कदम उसे और मजबूती ही प्रदान करेंगे क्योंकि मुस्लिम महिलाओं में बराबरी के अधिकार की यह मांग भले नई हो पर शिद्दत से काफी समय से महसूस की जा रही थी तभी तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समानांतर महिला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन किया जा चुका है।

हम मोदी सरकार के शुक्रगुजार हैं। बहुत खुश हैं मुबारकबाद दे रहे हैं। हम लोग एक साथ तीन तलाक देने वालों को सजा चाहते हैं। तलाक की सजा का डर तो होना ही चाहिए। तलाक की पावर का मिसयूज हो रहा है। तलाक जैसा कुरान पाक में है वैसा ही होना चाहिए। हम यह भी चाहते हैं कि तलाक का मिसयूज करने वाले पुरुष को सजा मिले तो औरत रोटी की मोहताज न हो जाए उसकी रोटी और मेंटीनेंस की जिम्मेदारी पुरुष पर होनी चाहिए क्योंकि पुरुष तो जेल में रोटी खाएगा। हमें दुख है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कभी हम महिलाओं के बारे में नहीं सोचा।

शाईस्ता अम्बर, अध्यक्ष, आल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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