नवरात्र स्‍पेशल: यहां शरीर के अंगों के खून से मां दुर्गा को चढ़ता है रक्‍त, 300 सालों से कायम है परंपरा

sudhanshu
Published on: 18 Oct 2018 11:14 AM GMT
नवरात्र स्‍पेशल: यहां शरीर के अंगों के खून से मां दुर्गा को चढ़ता है रक्‍त, 300 सालों से कायम है परंपरा
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गौरव त्रिपाठी

गोरखपुर: मां दुर्गा की आस्‍था में लीन भक्‍तों के त्‍याग और बलिदान की गाथाएं तो हम सभी ने सुनी हैं। लेकिन कहीं-कहीं पर आस्‍था पर अंधविश्‍वास इस कदर हावी है कि आज के आधुनिक समाज में भी सदियों से कई ऐसी परम्‍पराएं चली आ रहीं हैं। जिसे सुनकर आप भी आश्‍चर्य में पड जायेंगे। एक ऐसा दुर्गा मंदिर, जहां पिछले तीन सौ सालों से चली आ रही है शरीर के अंगों से मां दुर्गा को रक्‍त चढाने की परम्‍परा। जी हां, आपने ठीक पढ़ा हम मां दुर्गा को रक्‍त चढ़ाने की मान्‍यता की ही बात कर रहे हैं। जो 300 सालों से यहां कायम है।

10 दिन के मासूम से लेकर 100 साल के बुजुर्ग निभाते हैं परंपरा

इस परम्‍परा को 10 दिन के मासूम से लेकर जवान और 100 साल के बुजुर्ग भी निर्वहन करते हैं। गोरखपुर के बांसगांव में श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा नवरात्र में नवमी के दिन मां दुर्गा के चरणों में रक्‍त चढाने की अनोखी परंपरा पिछले 300 साल से चली आ रही है। देश-विदेश में रहने वाले श्रीनेत वंश के लोग नवमी के दिन यहां पर आते हैं और मां दुर्गा के चरणों में रक्‍त अर्पित करते हैं। सबसे खास बात ये हैं कि दस दिन के बच्‍चें से लेकर जवान और बुजुर्ग भी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। विवाहित युवकों के शरीर से नौ जगहों से और अविवाहितों के शरीर से एक स्‍थान से रक्‍त निकाल कर बेलपत्र में लेकर मां के चरणों में अर्पित किया जाता है। खास बात ये है कि एक ही उस्‍तरे से विवाहितों के शरीर के नौ जगहों पर और बच्‍चों को माथे पर एक जगह चीरा लगाया जाता है और बेलपत्र पर रक्‍त को लेकर मां के चरणों में अर्पित कर दिया जाता है। इसके बाद धूप व अगरबत्‍ती से निकलने वाली राख को कटी हुई जगह पर लगा लिया जाता है। पहले यहां पर जानवरों की बलि दी जाती थी पर अब मंदिर परिसर में बलि को रोक कर रक्‍तबलि दी जाती है।

लोगों का मानना है कि ये मां का आशीर्वाद ही है कि आज तक इतने सालों में न तो किसी को टिटनेस ही हुआ न ही घाव भरने के बाद कहीं कटे का निशान ही पडा। यहां के लोग मानते हैं कि मां को रक्‍त चढाने से मां खुश होती है और उनका परिवार निरोग और खुशहाल होता है। पिछले कई सौ सालों से बांसगांव में अंधविश्‍वास की इस परम्‍परा का निर्वाह आज की युवा पीढी भी उसी श्रद्धा से करती है, जैसा उनके पुरखे किया करते थे और सभी का मानना है कि क्ष‍त्रियों द्वारा लहू चढाने पर मां का आशीर्वाद उन पर बना रहता है। मंदिर में छोटे छोटे मासूम बच्‍चे चीखते चिल्‍लाते रहते हैं पर उनके पिता स्‍वयं उनको जबरन यहां पर रक्‍त बलि के लिये लाते हैंशारदीय नवरात्रि की नवमी को दिन भर यहां पर रक्‍त बलि चढती है और हजारों लोग यहां पर आकर बेलपत्र द्वारा अपने खून को चढाते हैं। यहां पर अपने उस्‍तरे लेकर लोगों के शरीर को काटने वाले नाईयों का कहना है कि कई पीढियों से यह लोग यहां पर हर साल यह लोग इस परम्‍परा काे निभा रहे हैं पर आजतक किसी को कुछ नही हुआ है। एक ही उस्‍तरे से पूरे गांव के लोगों की रक्‍त बलि चढाने वाले नाईयों का कहना है कि अब कुछ लोग अपने पास से ब्‍लेड लेकर यहां पर आते हैं और नये ब्‍लेड से काटने को कहते हैं पर आज भी उस्‍तरे की ही मदद से यह लोग कई लोग के शरीर में से रक्‍त निकालते हैं।

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