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Noida News: फार्म हाउस आवंटन से 2 हजार 833 करोड़ का राजस्व नुकसान, सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा

Noida News: फार्म हाउस आवंटन घोटाले (farm house allotment scam) में प्राधिकरण को 2 हजार 833.16 करोड़ का नुकसान हुआ। ये आवंटन 2008 से 2014 तक किए गए। 5 कंपनियों को 32 हजार 403 रुपए प्रतिवर्गमीटर घाटे से हुआ आवंटन।

Deepankar Jain
Published on: 18 Dec 2021 11:02 PM IST
Noida News: Revenue loss of 2 thousand 833 crores due to farm house allocation, disclosed in CAG report
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नोएडा: फार्म हाउस आवंटन से 2 हजार 833 करोड़ का राजस्व नुकसान

Noida News: फार्म हाउस आवंटन घोटाले (farm house allotment scam) में प्राधिकरण को 2 हजार 833.16 करोड़ का नुकसान हुआ। ये आवंटन 2008 से 2014 तक किए गए। 2014-15 में भी आवंटित हुए फार्म हाउस में बड़ी अनिमितयता बरती गई। 2014-15 में पांच कंपनियों को फार्म हाउस आवंटित किए गए। यह आवंटन 5525 रुपए प्रतिवर्गमीटर की दर किए गए । जबकि उस समय मूल दर 37928 रुपए प्रतिवर्गमीटर था। दोनों के बीच 32403 रुपए प्रतिवर्गमीटर का अंतर था। इससे प्राधिकरण को 162.26 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ। सीएजी की ओर से जारी कि गई रिपोर्ट में यह देखा जा सकता है।

ऐसे पहुंचाया राजस्व को नुकसान (loss of revenue)

प्राधिकरण (Noida Authority) ने दो 2008 और 2010 में ओपेन एंड स्कीम के तहत दो बार में फार्महाउस योजना निकाली। दोनों बार में 305 आवेदन स्वीकार किए गए। इसमे से 157 आवंटियों को 18 लाख 37 हजार 340 वर्गमीटर भूखंड आवंटन किया गया। सीएजी ने दिखाया कि 2008- 9 में 22 आवंटियों को 3100 रुपए प्रतिवर्गमीटर की दर से भूखंड आवंटित किए। जबकि उस समय प्रचलित दर 15 हजार 914 रुपए थी। इसी दर से 2008.10 में भी 43 भूखंडों का आवंटन किया गया। उस दौरान प्रचलित दर 16 हजार 996 रुपए थी।

2010-11 में 83 भूखंडों का आंवटन 3500 रुपए के हिसाब से किया गया। जबकि दर 17 हजार 556 रुपए थी। सबसे बड़ी अनिमियतता 2014-15 में की गई (Biggest Irregularity 2014-15)। इस दौरान पांच कंपनियों को महज 5525 रुपए की दर से भूआवंटन किया गया। जबकि दर 37 हजार 998 रुपए प्रतिवर्ग मीटर थी। सीएजी ने माना कि संबंधित वर्षो के दौरान लागू भूमि दरों की मूल लागत पर विचार किए बिना ही दरें तय की गई। फार्म हाउस भूखंडों का आवंटन संस्थागत श्रेणी में किया गया। जबकि संस्थागत श्रेणी की दरें भी मूल दर क0. 29 से लेकर 1.5 गुना तक की सीमा में थी। और आवासीय श्रेणी की दरें मूल दर से 1.0 से 2.75 गुना सीमा में थी।

सीएजी ने लगाई 147 आपत्तियां जवाब सिर्फ दो

सीएजी ने 51 आवंटन की रैंडम जांच की। इसमे 47 प्रकरण जिनका आंवटन 2008 से 2010 में किया गया में एक जैसी अनिमियतता मिली। कई में बहुत कम नेटवर्थ वाली संस्थाओं को भूखंड आवंटित किया गया। सीएजी ने प्राधिकरण के इस आवंटन में 147 आपत्तियां लगाई। जिसमे से सिर्फ दो का ही संतोष जनक जवाब प्राधिकरण दे सका। जबकि 40 आपत्तियों को प्राधिकरण ने स्वीकार कर लिया। यही नहीं , सीएजी ने यह भी देखा कि अनुचित लाभ देने के लिए एक कंपनी या कंसोर्डिम को कई-कई भूखंडों का आंवटन किया गया। जिसमे परख नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ भी नहीं कर सके।

11 प्रकरणों में यूपीको ने लगाई थी आपत्ति

11 प्रकरणों में यूपीको ने भी आपत्ति लगाई थी। जिसको नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन सीईओ ने आवंटन को मंजूरी दे दी।

ऐसे तय की गई लागत

सीएजी ने देखा की नोएडा द्बारा2008-09 के लिए अधिसूचित मूल दर भूमि अर्जन, ब्याज लागत, आंतरिक विकास लागत, बाह्य विकास लागत, रखरखाव लागत और अन्य लागत को सम्मिलित करते हुए आवंटन दर 14 हजार 400 रुपए होनी चाहिए थी। जबकि प्राधिकरण ने स्वयं के आकलन में भूमि अर्जन लागत 1100 रुपए, आंतरिक विकास लागत 1500 अन्य व्यय 500 को ध्यान में रखकर फार्महाउस की आवंटन दर 3100 प्रतिवर्गमीटर रखी गई।


औद्योगिक-संस्थागत की जमीन सस्ती दर पर कारपोरेट के लिए आवंटित कर दी

-कैग की रिपोर्ट में 200 से ज्यादा संपत्तियों का उल्लेख किया गया, जिसमें 80 फीसद भूखंड वर्ष 2005 से 2018 तक तीन बिल्डरों को ही आवंटित किया गया

नोएडा। बिल्डरों को भूखंड आवंटन करने में प्राधिकरण अधिकारियों ने नियमों की धज्जियां उड़ा दी है। वर्ष 2005 स2018 तक बिल्डरों को जितने भी व्यवसायिक भूखंड का आवंटन किया गया है। वह सभी औद्योगिक संस्थागत गतिविधियों वाले भूखंडों का आवंटन कारपोरेट सेक्टर की गतिविधियों के लिए कर दिया गया।

कैग रिपोर्ट ने लाजिक्स के दो भूखंड का हवाला देकर 200 से अधिक व्यवसायिक भूखंड की संपत्तियों को स्पष्ट किया है कि ये सभी संपत्तियां औद्योगिक गतिविधियों के लिए थी। लेकिन व्यवसायिक भूखंड में इसका आवंटन किया गया। रिपोर्ट में प्राधिकरण अधिकारियों की कार्य प्रणाली को कटघरे में खड़ा करते हुए स्पष्ट किया है कि वर्ष 2005 से 2018 तक जितनी भी व्यवसायिक भूखंड का आवंटन किया गया है। यह आवंटन नियम विपरीत किए गए, जिसमें तीन बिल्डर कंपनी वेव, थ्री सी, लाजिक्स को लाभ पहुंचाया गया। 80 फीसद से अधिक भूखंड का आवंटन इन्हीं कंपनियों को किया गया है।

बिल्डर को लाभ देने में कम कर दी जमीन आवंटन दर

नोएडा प्राधिकरण में वर्ष 2006-07 में बिल्डर को जमीन आवंटन के लिए 40 फीसद लैंड प्रीमियम के रूप में अपफ्रंट मनी देने का प्राविधान था। लेकिन बिल्डरों को किस प्रकार से लाभ दिया जाए, सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाया जाए। उसके लिए नियमों में बदलाव कर दिया गया, जमीन आवंटन के लिए 10 फीसद का नियम लागू कर दिया गया। लेकिन कैग की रिपोर्ट में व्यवसायिक भूखंड के लिए संस्थागत की जमीन कारपोरेट के लिए आवंटन पर सस्ती दर पर किया गया। इसमें 10 फीसद से कम राशि प्राधिकरण में जमा हुई। इससे सरकार को 3032 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ।

अधिकारियों ने कौड़ियों के भाव बिल्डरों को जमीन का आवंटन किया

-जो कंपनी जमीन आवंटन नियमों को पूरा तक नहीं कर रही थी, उनकी नेट वर्थ से 2.9 फीसद तक अधिक जमीन का आवंटन किया गया

नोएडा : बिल्डरों को जमीन का आंवटन नोएडा प्राधिकरण ने रेवड़ी की तरह किया। वर्ष 2005 से लेकर 2015 तक कुल 188 लाख वर्ग मीटर जमीन का आंवटन किया गया, जिसे बिल्डर कंपनी को सौंपने में भारी अनियमितता बरती गई।

कैग रिपोर्ट (CAG report) में स्पष्ट किया गया है कि जिन बिल्डर कंपनियों को जमीन का आंवटन किया गया, वह कंपनी आवंटन नियम व शर्त को पूरा ही नहीं करती थी, जिनकी नेट वर्थ जमीन आवंटन के लायक नहीं थी, उन्हें तक नेट वर्थ से 2.9 फीसद तक अधिक जमीन का आवंटन किया गया। हैरानी बात यह है कि बिल्डर कंपनियों को लाभ और भूखंड आवंटन घोटाले को अंजाम देने के लिए प्राधिकरण अधिकारियों ने वर्ष 2006 में जमीन आवंटन को बिल्डरों के लिए को बैंक गारंटी का नियम तक समाप्त कर दिया गया। इस तरह के दस मामले कैग रिपोर्ट में प्रस्तुत किया है।

इसमें आम्रपाली, प्रतीक बिल्टेक, सुपरटेक, गौर संस समेत अन्य बिल्डर कंपनियां के नाम शामिल है। यही नहीं रिपोर्ट में सबसे अधिक चौकाने वाले तथ्य यह है कि हायर एरिया रेसियो और ग्राउंड कवरेज को लेकर नोएडा प्राधिकरण ही नहीं, बल्कि शासन की ओर से कोई दिशा निर्देश ही जारी नहीं किया। इस दौरान 22000 निवेशकों के भरोसे तक को तार-तार कर दिया गया। यही कारण है कि 66 फीसद फ्लैट खरीदारों को आज तक आशियाने का मालिकाना हक नहीं मिल सका।

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