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Profile of NCR: प्रदेश में अपनी खास पहचान रखता है एनसीआर का इलाका

Profile of NCR: राजधानी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की भागीदारी की पहचान गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद का नाम प्रमुखता से आता है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shraddha
Published on: 25 July 2021 5:53 PM IST
Profile of NCR
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नोएडा गेट (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Profile of NCR: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की भागीदारी की पहचान करें तो गौतमबुद्धनगर (gautam budh nagar) और गाजियाबाद (Ghaziabad) का नाम प्रमुखता से आता है। औद्योगिक दृष्टि से यह दोनों जिले बहुत समृद्ध हैं। गौतमबुद्ध नगर जिले की स्थापना 9 जून 1997 को बुलन्दशहर एवं गाजियाबाद जिलों के कुछ ग्रामीण व अर्द्धशहरी क्षेत्रों को काटकर की गयी थी। लेकिन आज इसमें नोएडा व ग्रेटर नोएडा जैसे व्यावसायिक उप महानगर शामिल हो चुके है। यहां तक कि दादरी विधान सभा क्षेत्र भी इसी जिले का एक हिस्सा बन चुका है।

इस जिले का महत्व इसकी सीमा में आने वाली प्रमुख औद्योगिक इकाइयों तथा दिल्ली मुम्बई इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर के कारण तो है ही, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे अत्यधिक विकासशील औद्योगिक प्राधिकरणों के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में समायोजित कर लिये जाने से और भी अधिक हो गया है। ग्रेटर नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर लम्बे यमुना एक्सप्रेसवे ने भी इसकी महत्ता में चार चाँद लगा दिये हैं।

ऐसा है ऐतिहासिक या पौराणिक महत्व (Historical Importance of NCR)

बात अगर ऐतिहासिक या पौराणिक नजरिये की करें तो जनपद के दनकौर, बिसरख, रामपुर जागीर व नलगढ़ा गाँव कई स्मृतियाँ संजोये हैं। दनकौर में द्रोणाचार्य तथा बिसरख में रावण के पिता विश्वेश्रवा ऋषि का प्राचीन मन्दिर आज भी मौजूद है। ग्रेटर नोएडा के रामपुर जागीर गाँव में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान सन् 1919 में मैनपुरी षड्यन्त्र करके फरार हुए सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' भूमिगत होकर कुछ समय रहे थे और यहाँ के स्थानीय गुर्जरों पर पुस्तकों का अनुवाद किया था। नोएडा ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे के किनारे स्थित गुर्जरों के ऐतिहासिक गांव नलगढ़ा में भगत सिंह ने भूमिगत रहते हुए कई बम-परीक्षण किये थे।



इसी तरह दादरी की जनता ने 1857 के प्रथम स्वातन्त्र्य समर में काफी योगदान दिया था। दादरी के राव उमराव सिंह भाटी समेत आसपास के 84 लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बुलंदशहर से लेकर लालकुंआ तक के बीच के हिस्से में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी शासन की नाक में दम कर दिया था। जिस पर अंग्रेजों ने राव उमराव सिंह भाटी समेत क्षेत्र के 84 क्रांतिकारियों को बुलंदशहर के काला आम पर फांसी लगाई थी। जिससे चलते आज भी बुलंदशहर का काला आम चर्चित है। वहीं अंग्रेजी हकूमत ने क्रांतिकारियों के परिवार की संपत्ति को छीन लिया गया था। उनके मकानों को तोड़ दिया गया था। शहीदों की याद में आज भी दादरी तहसील परिसर में शहीद स्तंभ मौजूद है। जिस पर 84 क्रांतिकारियों के नाम अंकित है। दादरी के मुख्य तिराहे पर राव उमराव सिंह भाटी की प्रतिमा है। इससे भी पूर्व 11 सितम्बर 1803 को ब्रिटिश आर्मी व मराठों की सेना के बीच हुए निर्णायक युद्ध की स्मृति को दर्शाता अंग्रेज वास्तुविद एफ़॰ लिस्मन द्वारा बनाया हुआ "जीतगढ़ स्तम्भ" आज भी दूर से ही दिखायी देता है।

गाजियाबाद जिला गेटवे आफ यूपी (Ghaziabad Gateway of UP )

गाजियाबाद को गेटवे आफ यूपी कहा जाता है। 14 नवंबर 1976 से पहले गाजियाबाद मेरठ की तहसील थी। जिला बनने के बाद से गाजियाबाद सामाजिक, आर्थिक, कृषि आदि हर मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है। जिले का मुख्यालय गाजियाबाद, ग्रैंड ट्रंक रोड पर है, जो हिंडन नदी के एक मील दूर स्थित है। गाजियाबाद मुख्यालय 19 कि.मी. दिल्ली के पूर्व में और 46 कि.मी. मेरठ के दक्षिण-पश्चिम में सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। अन्य सड़कें उत्तर-पश्चिम से लोनी और बागपत और पूर्व में हापुड़ और गढ़मुक्तेश्वर तक जाती हैं। यहां से दिल्ली, मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर, मुरादाबाद, लखनऊ और अन्य जिलों के लिए भी कुछ समय के अंतराल पर बसें चलती हैं। यह उत्तर रेलवे का एक महत्वपूर्ण स्टेशन है जहाँ दिल्ली से कलकत्ता, मुरादाबाद और सहारनपुर तक रेल लाइनें मिलती हैं, जो इसे भारत के कई महत्वपूर्ण शहरों से जोड़ती हैं। गाजियाबाद की सीमा दिल्ली से सटी है।



माना जाता है कि इस की स्थापना 1740 में वज़ीर गाज़ी-उद-दीन द्वारा की गई थी, जिन्होंने इसे गाजीउद्दीननगर कहा था। रेलवे लाइन खुलने के बाद जगह का नाम छोटा कर गाजियाबाद कर दिया गया। जनपद उत्तर प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक जनपदों में से एक है। मेरठ जिले के 8 विकास खण्ड रजापुर, मुरादनगर, भोजपुर, हापुड, धौलाना, लोनी, सिम्भावली और गढ़मुक्तेश्वर तथा बुलन्दशहर के दो विकास खण्ड दादरी और बिसरख सहित कुल 10 विकास खण्डों के साथ जनपद अपने अस्तित्व में आया था। गाजियाबाद, दादरी, हापुड़ और गढमुक्तेश्वर इसकी पहली चार तहसीलें थीं। बाद में 30 सितम्बर 1989 को मोदीनगर को भी तहसील का दर्जा दे दिया गया।

औद्योगिक विकास तथा कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर मई सन् 1997 में नोएडा को गौतमबुद्वनगर में समाहित कर दिया गया। जिससे गाजियाबाद में मात्र 8 विकास खण्ड शेष रह गये, जो गाजियाबाद नया जिला बनाते समय मेरठ से काटकर सम्मिलित किये गये थे। गाजियाबाद जिले की दादरी तहसील भी जनपद गौतमबुद्वनगर में सम्मिलित कर ली गई, जिससे यहां मात्र 4 तहसीलें गाजियाबाद, मोदीनगर, हापुड और गढमुक्तेश्वर रह गई थीं, किन्तु 27 सितम्बर, 2011 को नवसृजित जनपद हापुड़ का सृजन होने के कारण जनपद गाजियाबाद में दो तहसील गाजियाबाद व मोदीनगर तथा चार विकास खण्ड – रजापुर, मुरादनगर, भोजपुर, लोनी शेष रह गये। 29 जनवरी 2014 को नयी तहसील लोनी का सृजन हुआ है जिस कारण अब जनपद गाजियाबाद में तीन तहसीलें गाजियाबाद, मोदीनगर एवं लोनी तथा चार विकास खण्ड – रजापुर, मुरादनगर, भोजपुर, लोनी हैं।


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