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निषाद राजनीति पर बिछने लगी बिसात

raghvendra
Published on: 16 Nov 2018 2:40 PM IST
निषाद राजनीति पर बिछने लगी बिसात
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: लोकसभा चुनाव को लेकर भले ही टिकटों की घोषणा या फिर जनसभाएं नहीं हो रही हों लेकिन सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां जीत के समीकरण को लेकर अपने कील कांटे दुरुस्त करने में जुट गई हैं। राजनीतिक पार्टियां गोरखपुर मंडल की छह लोकसभा सीटों को लेकर जो अंदरूनी सर्वें करा रही हैं, उनमें निषाद वोट पर विशेष नजर है। वहीं निषाद बिरादरी के दिग्गज नेता सुरक्षित ठिकाने की तलाश में पाला बदलने में जुट गए हैं।

पूर्वांचल में विकास और हिन्दुत्व पर राजनीति का दावा भले ही हो लेकिन जाति फैक्टर कड़वी हकीकत है। गोरखपुर-बस्ती मंडल में निषाद राजनीति सियासत के केन्द्र बिंदु में है। गोरखपुर उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ के सघन प्रचार के बाद भी सपा के प्रवीण निषाद ने भाजपा के प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ला को हराकार निषाद जाति की ताकत का अहसास विरोधियों को करा दिया था। गोरखपुर से सपा के टिकट पर एक बार फिर प्रवीण निषाद तैयारी में जुटे हैं। सपा भी उन्हें अंतिम उम्मीदवार मानकर रणनीति बनाने में जुटी है। वहीं निषाद राजनीति के प्रमुख क्षत्रप रहे जमुना निषाद का परिवार भी रणक्षेत्र छोडऩे को तैयार नहीं है। सपा की राजनीति कर रहीं जमुना निषाद की पत्नी राजमति जहां पिपराइच से विधायक रह चुकी हैं तो पुत्र अमरेन्द्र निषाद भी 25 की उम्र पार करने के बाद नई पारी शुरू करने की जुगत में हैं। अमरेन्द्र बीते विधानसभा चुनाव में भी पिपराइच विधानसभा में सपा के टिकट पर मैदान मेंं थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। सपा में पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद कद्दावर नेता हैं। उनकी भी महत्वाकांक्षा कुलाचे मार रही हैं। तो वहीं चौरीचौरा से बसपा के टिकट पर विधायक रहे जयप्रकाश निषाद बदले परिदृश्य में भाजपा का दामन थाम चुके हैं। कांग्रेस में भी निषाद नेताओं की कमी नहीं है। वर्ष 1985 में गोरखपुर जिले के पहले निषाद बिरादरी के विधायक बने लालचंद निषाद मंडल में कांग्रेस पार्टी के चेहरे हैं।

कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र में गौरी देवी विधायक थीं और अपने पति रवींद्र सिंह के यश और अपनी उपस्थिति के बल पर वह अपराजेय मानी जाती थीं, तब वर्ष 1985 में उन्हें कांग्रेस से निषाद बिरादरी के लालचंद निषाद ने ही पराजित किया और गोरखपुर के पहले निषाद विधायक बने। वहीं फिल्म अभिनेत्री काजल निषाद भी अपने ग्लैमर के बल पर चुनावी मौसम में गोरखपुर का रुख करने से नहीं चूकती हैं। काजल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं। देवरिया में भी निषादोंं की एकजुटता ने विरोधियों को चैंकाया है। रुद्रपुर से दो बार के विधायक जयप्रकाश निषाद व एमएलसी रामसुंदर दास निषाद बिरादरी के प्रमुख चेहरे हैं।

निषादों से मिली है गोरक्षपीठ को चुनौती

पूर्वीं उत्तर प्रदेश में निषाद राजनीति का उभार जमुना निषाद के दखल के बाद माना जाता है। नब्बे के दशक में जमुना निषाद तब सुर्खियों में आए जब उनकी गिनती ब्रह्मलीन महंत अवैद्य नाथ के करीबी के रूप में होने लगी। लेकिन बदले राजनीतिक परिदृश्य में जमुना निषाद गोरक्षपीठ के विरोध में खड़े हो गए। निषाद बिरादरी में आए राजनीतिक चेतना के बल पर सपा के टिकट पर जमुना निषाद ने लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी। सबसे कम अंतर (7,339 वोट) से योगी को जीत वर्ष 1999 की लोकसभा चुनाव में मिली। निषाद राजनीति में दखल के खेल में ही जमुना निषाद को बसपा सरकार में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। बलात्कार पीडि़ता की पैरवी में महराजगंज कोतवाली में जमुना निषाद के काफिले से चली गोली में कृष्णानंद राय नाम के सिपाही की मौत के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी थी। पिछले चुनाव में सपा के टिकट पर उपचुनाव में खड़े प्रवीण निषाद की जीत ने साबित कर दिया कि निषाद एकजुट हुए तो योगी के समर्थन के बाद भी हार मिल सकती है।

निषाद राजनीति के लिए उर्वरा है पूर्वांचल

पूर्वांचल की सियासी जमीन निषाद राजनीति के लिए काफी उर्वरा है। गोरखपुर मंडल की सभी 28 विधानसभा व 6 संसदीय क्षेत्रों में निषाद बिरादरी की मजबूत दखल है। गोरखपुर और आसपास निषादों की संख्या के चलते ही यहां आरक्षण की मांग भी उठ चुकी हैं। आरक्षण की मांग को लेकर राजनीति करने वाले डॉ संजय निषाद ने खुद की अपनी पार्टी बना ली थी। उनके संगठन की अगुवाई में कसरवल में रेल पटरी पर आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से एक निषाद युवक की मौत हो गई थी। खुद का प्रभाव बढ़ता देख डॉ. संजय ने निषाद पार्टी का गठन किया बल्कि पीस पार्टी के डॉ. अयूब के गठजोड़ के साथ दो दर्जन से अधिक सीटों पर मजबूत दावेदारी भी की। उनकी महत्वाकांक्षा बेटे प्रवीण निषाद के संसद तक सफर के बाद काफी हद तक पूरी भी हो चुकी है। पूर्वांचल निषाद बिरादरी के प्रभुत्व को लेकर ही पूर्व सांसद फूलन देवी के पति उन्मेद सिंह ने भी पिपराइच विधानसभा से अपना राजनीतिक भविष्य तलाशा था।

आंकड़ों में निषाद

राजनीतिक दलों के आंकड़ों के मुताबिक मंडल में सर्वाधिक निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में हैं। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या 3 से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। इसी क्रम में देवरिया में एक से सवा लाख, बांसगांव में डेढ़ से दो लाख, महराजगंज में सवा दो से ढाई लाख तथा पडरौना में भी ढाई से तीन लाख निषाद बिरादरी के मतदाता हैं। मंडल के 28 विधानसभा में भी 30 से 50 हजार के बीच निषाद मतदाता हैं। बहरहाल, राजनीतिक पार्टियां निषाद चेहरों को कितना तवज्जो देती हैं इसे साफ होने में समय है, लेकिन बिरादरी के क्षत्रप अपने को मजबूत साबित करते हुए खुद की दावेदारी ठोकने में पीछे नहीं नजर आ रहे हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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