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भाजपा में मचा घमासान, सत्ता और संगठन के बीच की नहीं पट रही दरार

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Published on: 21 July 2017 2:02 PM IST
भाजपा में मचा घमासान, सत्ता और संगठन के बीच की नहीं पट रही दरार
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विजय शंकर पंकज

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार और भाजपा संगठन के बीच संतुलन नहीं बैठ रहा। राज्य मुख्यालय से लेकर सचिवालय के सत्ता के गलियारे, मंत्रियों/ सांसदों, विधायकों के आवास से लेकर क्षेत्र और जिला भाजपा कार्यालयों से लेकर क्षेत्रीय, मंडल और बूथ कमेटियों तक कपड़ा फाड़ राजनीति से लेकर आरोप-प्रत्यारोपों तक का दौर जारी है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के पास शिकायतों का अंबार लगता जा रहा है परन्तु सत्ता और संगठन के बीच दरार नहीं पट रही है। कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने के लिए भाजपा नेतृत्व ने सितंबर तक का विस्तृत कार्यक्रम निचले स्तर तक निर्धारित तो कर दिया, लेकिन कार्यकर्ता कार्यक्रमों में नहीं जा रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का आक्रोश इस बात पर है कि मंत्री व पदाधिकारी उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। इसके अलावा मंत्रियों और कुछ प्रभावशाली नेताओं पर भ्रष्टाचारों के बढ़ते आरोपों ने शीर्ष नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है।

शाह दूर करेंगे कार्यकताओं की शिकायत

अगले लोकसभा चुनाव में 18 से 20 माह का समय बचा है। ऐसे में प्रदेश के भाजपा कार्यकर्ताओं की शिकायतों से प्रधानमंत्री कार्यालय सक्रिय हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं के इस आक्रोश एवं शिकायतों के अंबार पर गहरी नाराजगी जताते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से तत्काल प्रभावी कार्रवाई करने को कहा है। बताया जाता है कि प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र 28 जुलाई को खत्म होते ही इस दिशा में कदम उठाए जाएंगे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लखनऊ के तीन दिवसीय दौरे पर आ रहे हैं।

वह भाजपा के यूपी से लोकसभा एवं राज्यसभा सदस्यों, विधानसभा एवं विधानपरिषद के सदस्यों, प्रदेश पदाधिकारियों, क्षेत्रीय पदाधिकारियों के साथ ही जिला एवं मंडल स्तर के पदाधिकारियों को विभिन्न सत्रों में बैठाकर कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर चर्चा करेंगे। सूत्रों का कहना है कि शाह के दौरे में ही नए प्रदेश अध्यक्ष एवं नयी राज्य इकाई के गठन का स्वरूप तैयार होगा। अभी तक केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री होने के बाद भी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का दोहरा कार्य देख रहे हैं, लेकिन वे संगठन को पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं। सरकार बनने के बाद फिलहाल प्रदेश भाजपा की कमान संगठन महामंत्री सुनील बंसल के हवाले है।

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सरकारी वकीलों की नियुक्ति से उठा तूफान

भाजपा में तूफान सरकारी वकीलों की नियुक्ति के बाद आया है। पिछले तीन माह से चल रही इस कवायद में मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विधि मंत्री, महाधिवक्ता एवं प्रमुख सचिव न्याय तक ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे और साफ तौर पर यह कह दिया गया कि संगठन से जो सूची आएगी, उस पर ही मुहर लगा दी जाएगी। आरोप है कि शासकीय अधिवक्ताओं की सूची में सही मानकों का पालन नहीं किया गया और विवादास्पद, दागी, अपराधी प्रकृति तथा विपक्षी दलों से संंबंध रखने वाले लोगों को तरजीह दी गयी। राज्य में सरकार बनने के बाद 181 शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति हु़ई, जिसमें 42 पुरानी समाजवादी सरकार के अधिवक्ता बताए जाते हैं।

भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि संगठन के स्तर से कुछ प्रभावी लोगों ने ऐसे लोगों की नियुक्ति कराई जिनकी योग्यता पद के अनुकूल नहीं थी। यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय की उस तल्ख टिप्पणी के बाद मीडिया की सुर्खियां बना। जिसमें कहा गया था कि ऐेसे शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गई, जो सरकार का पक्ष भी नहीं रख पाते हैं। भाजपा के अधिवक्ता वर्ग ने पार्टी पदाधिकारियों पर इन नियुक्तियों में पैसे के लेन-देन का आरोप लगाया है। इन अधिवक्ताओं में सपा के एक पूर्व मंत्री तथा सपा पदाधिकारियों के भी नजदीकी रिश्तेदार शामिल हैं।

सरकार व संगठन में बढ़ रही तकरार

भाजपा के लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय में पदाधिकारियों व राज्य भर से आने वाले कार्यकर्ताओं का आक्रोश दिन भर देखने को मिल जाता है। आम कार्यकताओं का यही रोना रहता है कि उनकी सुनी नहीं जाती है। वैसे तो आम जनता की सुनवाई के लिए प्रत्येक दिन एक मंत्री और एक पदाधिकारी के बैठने के लिए तारीख व समय निर्धारित किया गया है, लेकिन इसमें दूरदराज से आने वालों लोगों की आम शिकायतों की कागजी खानापूर्ति ही की जाती है। इन शिकायतों पर शासन-प्रशासन की तरफ से कार्रवाई होने की कोई रिपोर्ट नहीं आती। विधायकों एवं कार्यकर्ताओं का कहना है कि मंत्री उनसे यही कहते हैं कि पहले संगठन से लिखवाकर संस्तुति पत्र लाइए, तभी शासन स्तर पर संज्ञान लिया जाएगा। प्रदेश भाजपा कार्यालय का कोई पदाधिकारी ऐसी कोई संस्तुति करने को तैयार नहीं होता। इसके विपरीत कुछ महत्वपूर्ण कामों की संस्तुति पत्र संगठन से लेकर कुछ विशिष्ट मंत्रियों के पास जरूर पहुंच जाते हैं।

संगठन की कुछ ऐसी संस्तुतियों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐतराज जता चुके हैं। कुछ मामलों को लेकर सरकार एवं संगठन में तकरार लगातार बढ़ती जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रियों को साफ कर दिया है कि संगठन की ऐसी संस्तुतियों की उच्चस्तरीय जांच कर ही उचित कार्रवाई करें अन्यथा ऐसे कामों का आरोप मंत्री विशेष पर ही जाएगा। यह मामला भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पास पहुंचा है। बहरहाल, अमित शाह तीन दिवसीय प्रवास में सरकार एवं संगठन में समन्वय बनाकर काम करने की रणनीति बनाएंगे। मंत्रियों को काम करने के साथ ही संगठन की संस्तुतियों के लिए मानक तैयार किए जाएंगे और उसके लिए जिम्मेदारी तय की जाएगी।

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टारलेंस की नीति पर चलने की अपनी नीति से शीर्ष नेतृत्व को अवगत करा चुके हैं। योगी ने कार्यालय के कुछ अधिकारियों की एक गोपनीय टीम गठित की है जो भ्रष्टाचार संबंधी मामलों पर नजर रखेगी। इसमें मंत्रियों से लेकर भाजपा के पदाधिकारियों की संस्तुतियों को लेकर तथ्य जुटाए जाएंगे ताकि समय से उन्हें ऐसे तत्वों से बचने के संकेत दिये जा सकें।

समन्वय बैठक भी नहीं दूर कर सकी नाराजगी

संघ की मध्य क्षेत्र की पिछले दिनों हुई बैठक में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्रात्रेय होसबोले ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और भाजपा में बढ़ती अनुशासनहीनता का मामला उठाया था। उन्होंने सरकार एवं संगठन के वरिष्ठों की बैठक बुलाकर कार्यकताओं की नाराजगी दूर करने की पहल करने को कहा था। इसके बाद सरकार तथा संगठन की तरफ से प्रतिदिन एक मंत्री तथा पदाधिकारी की बैठक निर्धारित की गयी।

इस बैठक में राज्य भर से फरियादी तो आने लगे, परन्तु कार्यकर्ताओं की नाराजगी नहीं कम हु़ई। इस बीच मुख्यमंत्री से लेकर कुछ मंत्रियों के बीच आपसी खटास की खबरों ने नेतृत्व की परेशानी बढ़ा दी। सरकार के मुखिया एवं संगठन के एक प्रभावी नेता में ही अधिकारियों के तबादले से लेकर शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति तक को लेकर तल्खी बढ़ती गयी। यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक पहुंचा, परन्तु सरकार और संगठन में अभी तक तालमेल नहीं बन सका है।

कई विधायक भी मंत्रियों से नाराज

इस समय विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। सदन की लॉबी तथा सेन्ट्रल हाल में कई विधायक लामबंद होकर मंत्रियों एवं पार्टी नेताओं पर खुलेआम आरोप लगाते नजर आते हैं। पिछड़े वर्ग के कई वरिष्ठ विधायकों ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय में केवल एक जाति विशेष के अधिकारियों तथा विधायकों की ही बात सुनी जा रही है।

इन विधायकों का कहना था कि पिछड़ों का समर्थन मिलने से ही प्रदेश में भाजपा भारी बहुमत पाने में कामयाब हो सकी परन्तु उन्हें नेतृत्व न देकर ऊपरी व्यक्ति को थोप दिया गया। इन पिछड़े विधायकों में कानपुर क्षेत्र, वाराणसी, पश्चिमी तथा बुन्देलखंड के विधायक थे। पिछड़े विधायकों ने उपमुख्यमंत्री के अधिकार सीज करने तथा उन्हें अपने विभाग में भी खुलकर काम न करने देने का भी आरोप लगाया।

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पूर्व अध्यक्षों ने कहा-पार्टी में सत्ता मद हावी

तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों (पूर्वी उत्तर प्रदेश के दो तथा पश्चिम के एक) का कहना है कि इस समय भाजपा में सत्ता का मद हावी हो गया है। संगठन एक व्यक्ति विशेष की चेरी बनकर रह गया है। संगठन निष्क्रिय होने तथा किसी राजनीतिक व्यक्ति का प्रभाव न होने से पार्टी में अनुशासनहीनता बढ़ी है।

इन पूर्व अध्यक्षों का कहना था कि हमेशा से ही संगठन एवं विधानमंडल दल में समन्वय कायम रखने का प्रयास किया जाता रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद संगठन की कमान महामंत्री सुनील बंसल के हाथों में है जो अराजनीतिक व्यक्ति हैं। इस प्रकार संगठन में पार्टी हित छोड़ व्यक्ति विशेष का निजी लाभ प्रभावी हो गया है।

योगी के मंत्री ही आमने-सामने

रायबरेली जिले में पिछले दिनों पांच लोगों की हत्या के मुद्दे को लेकर दो वरिष्ठ मंत्री आमने-सामने आ गए। श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया कि मारे गये लोग अपराधी थे जो आपसी रंजिश के शिकार हुए। मौर्य के इस बयान से एक वर्ग के लोगों में नाराजगी फैल गयी। यह मामला उस समय और गरमा गया, जब न्याय मंत्री बृजेश पाठक ने कहा कि मारे गये निरीह गरीब घर के थे जो अपराधियों के शिकार हो गए। इन दो मंत्रियों के परस्पर विरोधी बयानों ने सरकार को सांसत में डाल दिया। दूसरी ओर पूर्वाचल के पिछड़े वर्ग के दो मंत्री दारा सिंह चौहान तथा ओम प्रकाश राजभर आपस में ही उलझे हुए हैं और एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

दारा सिंह चौहान के खिलाफ वन एवं पर्यावरण विभाग में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिल रही है। ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि दारा की चौहान बिरादरी में कोई पहचान नहीं है जबकि राजभर उनके झंडे तले हैं। राजभर के पास पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग है। राजभर का आरोप है कि नेतृत्व दारा को ज्यादा महत्व दे रहा है। यह दोनों ही नेता अगल-बगल की विधानसभा सीट से चुनाव लड़े हैं और पहली बार विधानसभा के सदस्य बने हैं राजभर ने एक लेखपाल के काम को लेकर डीएम गाजीपुर को हटाने के लिए धरना देने की घोषणा की थी परन्तु मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर मामला रोक दिया गया। मामला टल जरूर गया है मगर चिंगारी अभी भी सुलग रही है।

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