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बिना आधार कहीं नहीं चैना, कैसे बीतेगी गरीबों की रैना
कड़ाके की ठण्ड और शीतलहर जैसे हालात राजधानी में गरीबों के लिए काल बन गई है। मौसम की मार झेल रहे लोगों के पास आधार कार्ड न होना मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर रहा है। बिना आधार कार्ड के बेघरों को रैन बसेरे में घुसने भी नहीं दिया जाता। मत
लखनऊ: कड़ाके की ठण्ड और शीतलहर जैसे हालात राजधानी में गरीबों के लिए काल बन गई है। मौसम की मार झेल रहे लोगों के पास आधार कार्ड न होना मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर रहा है। बिना आधार कार्ड के बेघरों को रैन बसेरे में घुसने भी नहीं दिया जाता। मतलब इंसान के बनाये कानून के आगे मानवता की दुहाई भी फेल है। newstrack.com की टीम ने जब इन बेघर लोगों से सवाल किया तो उनकी आंखों से निकलते आंसुओं और ठंड से मुरझाये बच्चों की ख़ामोशी ने जवाब दे दिया। वो जवाब, जो शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
ये है मामला:
- पॉलिटेक्निक चौराहे पर रात के 10 बजे खुले आसमान के नीचे एक परिवार आग जलाकर ठण्ड दूर करने की कोशिश करता दिखा।
- न्यूज ट्रैक ने पास में ही बने रैन बसेरे का मुआयना किया तो वह लगभग खाली ही था।
- एक्का दुक्का लोग उसमे सोने की कोशिश कर रहे थे। हमने जब परिवार से पूछा की आप रैन बसेरे में क्यों नहीं जाते तो उन्होंने मायूस होकर जवाब दिया- साहब आधार कार्ड नहीं है इसलिए हमें वहां घुसने नहीं दिया जाता।
- फिर न्यूज ट्रैक ने जब रैन बसेरा संचालक से जानना चाहा तो उसने बताया की हमें आर्डर है कि आधार कार्ड देखकर एंट्री दी जाए. उस गरीब परिवार में 4 महिलाएं और कुछ बच्चे भी थे।
- वो सब ठण्ड से ठिठुर रहे थे लेकिन आधार कार्ड न होने की मज़बूरी ने उनके पैरों में बेबसी की वह बेड़ियाँ डाल दी थी जिससे मुक्त हो पाना शायद उनकी नियति में नहीं है।
- लखनऊ में सिर्फ पॉलिटेक्निक चौराहे पर ही नहीं बल्कि अन्य जगहों पर बने रैन बसेरों में भी आधार कार्ड की अनिवार्यता न जाने कितने गरीबों के लिए जी का जंजाल बन गयी है।
अलाव भी हुआ वीआईपी, डिमांड नहीं तो अलाव नहीं
- नगर निगम की ओर से ठण्ड से बचाव के लिए अलाव जलाने की व्यवस्था की गयी है लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए अलाव कहां और किसके लिए जलाये जा रहे हैं।
- निगम अधिकारीयों ने बातचीत में बताया की ज्यादातर अलाव वीआईपी कॉलोनियों, बड़े बाजारों, माल्स के आसपास जहां ज्यादा लोग आते जाते हैं वहां जलाये जा रहे हैं।
- इसके आलावा अस्पताल, चौराहे, सरकारी कार्यालयों के पास अलाव की व्यवस्था है।
- जब उनसे यह पूछा गया कि गरीब बस्तियों और बेघर लोगों के लिए अलाव नहीं जलते तो उन्होंने कहा की हमारे पास जहां से डिमांड की जाती है हम वही अलाव जलाते हैं और डिमांड करने वालों में सरकारी अधिकारी, नेता और बड़े व्यापारी ही ज्यादा है।
- इसका मतलब यह की गरीबों और जरूरतमंद लोगों का अलाव भी वीआईपी इलाकों तक ही सिमटकर रह गया है।
अलाव का आधा फंड भी नहीं होता खर्च
सूत्रों ने बताया की प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़ रूपए इस मद में खर्च करने के लिए जारी किया जाता है और नगर निगम, वन विभाग से लकड़ी खरीदता है। लेकिन अभी तक एक चौथाई से कुछ ज्यादा बजट ही खर्च हो पाया है और ठण्ड ख़त्म होते-होते आधा बजट भी खर्च होना मुश्किल है। निगम के अनुसार शहर भर में 350 जगहों पर अलाव जल रहे हैं और मांग बढ़ी तो 500 जगहों पर अलाव जलाये जायेंगे।