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नोटबंदी ने बढ़ाई 'नसबंदी' की रफ्तार, जानिए इसके पीछे क्या है कारण

aman
By aman
Published on: 26 Nov 2016 8:24 PM IST
नोटबंदी ने बढ़ाई नसबंदी की रफ्तार, जानिए इसके पीछे क्या है कारण
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गोरखपुर: नोटबंदी का असर कई शहरों में दिहाड़ी मजदूरों पर भी दिख रहा है। गोरखपुर में तो खाली बैठे मजदूरों ने इस दौरान नसबंदी कराने की सोची है। इसका मतलब ये कि जो काम आज तक स्वास्थ्य विभाग नहीं कर पाया वो नोटबंदी ने एक झटके में कर दिया।

..तो इसलिए चाहते हैं नसबंदी करवाना

नसबंदी कराने की सोच रखने वाले मजदूरों का कहना है कि 'नोटबंदी के बाद से काम मिलने में दिक्कत आ रही है। काम मिलता भी है तो मजदूरी के नाम पर 1,000 और 500 सौ के नोट दिए जाते हैं। और वह नोट कोई लेता नहीं। बाद में कमीशन देकर उस नोट का छुट्टा करवाते हैं। इससे अपना और परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा है। हारकर नसबंदी ही उपाय बचा है।' मजदूरों का कहना है कि नसबंदी कराने पर सरकार की ओर से 1,000 रुपए मिलेंगे। इससे कुछ दिन तो बच्चों को खाना मिलेगा।

इस संबंध में डॉक्टर एसके शर्मा ने बताया कि नसबंदी करवाने वालों की संख्या में बहुत अधिक नहीं लेकिन इजाफा तो हुआ है।

आगे की स्लाइड में पढ़ें नसबंदी के पीछे मजदूरों का है अपना ही तर्क...

नसबंदी के लिए अब जल्द तैयार हो रहे मजदूर

पीसीआई के टीम लीडर संदीप कुमार पांडे ने बताया, हमलोग पापुलेशन सर्विस सेंटर नेशनल, पीसीआई से जुड़े हैं। हमारा काम परिवार नियोजन को लेकर जागरूक करना है। हम लोग चौराहे, मंडी आदि में जाकर रिक्शा वालों को इकट्ठा करते हैं। यहां 10-20 लोग मिल जाते हैं। नोटबंदी से पहले मजदूरों को राजी करने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही थी। कमजोरी होने और आराम का समय न होने की बात कहकर मजदूर टाल देते थे। लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि यह सही वक्त है नसबंदी का। कि नसबंदी भी हो जाएगा और पैसे भी मिल जाएंगे। इससे 5-7 दिन तक तो परिवार का खर्च चल ही जाएगा।

सरकार नसबंदी वालों के लिए लाए बेहतर योजना

इस बारे में पूछने पर मजदूर कौशल ने कहा, कि 'क्या किया जाए अब काम भी नहीं मिलता। मिलता है तो सब 1,000, 500 के नोट चलने की फ़िराक में रहते हैं। इन्हें चलाने में भी 100-50 रुपए कमीशन देना पड़ता है।' कौशल की मांग है कि सरकार नसबंदी वालों के लिए कोई अच्छी योजना लाए।

कोई भूख से बचने के लिए अपना रहा नसबंदी का रास्ता ...

1,000 रुपए से बच्चों को खाना तो मिल जाएगा

इसी संबंध में मजदूर रमेश ने कहा, 'मेरे तीन बच्चे हैं। मजदूरी कर घर चलाता हूं। अब काम नहीं मिल रहा। शाम को वापस चले जाते हैं। पैसा मिलता नहीं तो खाएंगे क्या? लोगों ने बताया तो सोचा कि नसबंदी से 1,000 रुपए तो मिल ही जाएंगे। बच्चों के लिए कुछ दिन का गुजारा हो जाएगा।'

भूख से बचने के लिए ये रास्ता ज्यादा आसान है

एक अन्य मजदूर राजकुमार का कहना है कि 'वो 15 सालों से मजदूरी कर रहा है। नोटबंदी के बाद से कई दिक्कतें पेश आईं। इनमें नसबंदी का रास्ता ज्यादा आसान और सरल लगा। कई और मजदूर यही रास्ता अपना रहे हैं तो मैंने भी सोचा घर चलाने के लिए नसबंदी करवा लूं।'



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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