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Nupur Sharma Controversy: उपचुनाव में नूपुर शर्मा विवाद का असर, अबू आज़मी और आज़म ने संभाला मोर्चा

Nupur Sharma controversy: उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में नूपुर शर्मा विवाद का असर भी दिखना शुरू हो गया है।

Shreedhar Agnihotri
Published on: 13 Jun 2022 10:58 AM IST
Nupur Sharma controversy
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नुपुर शर्मा (फोटो-सोशल मीडिया)

Nupur Sharma Controversy: उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में नूपुर शर्मा विवाद (Nupur Sharma controversy) का असर भी दिखना शुरू हो गया है। स्थानीय नेताओं ने इस विवाद को टूल देना शुरू कर दिया है जिससे अब तक आगे चल रहा विकास का मुद्दा अब पीछे खिसकना शुरू हो गया है।

पिछले दिनों नूपुर शर्मा के बयान के विरोध में आजमगढ़ शहर व सरायमीर तक मुस्लिम इलाकों में दुकानें बंद रही। जबकि रामपुर में भी यही हाल रहा। इन क्षेत्रों में भारी पुलिस फोर्स तैनात है। यहाँ कई मुस्लिम संगठन नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी को लेकर धरना प्रदर्शन भी कर चुके हैं। यहाँ सपा नेता अबू आज़मी (SP leader Abu Azmi) ने भी पहुँच कर कहा कि आजमगढ़ की जनता को ठुमका लगाने वाले की जरूरत नहीं है।

अपने बयानों को लेकर हमेशा विवादों में रहने वाले अबू आज़मी ने बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली (BSP candidate Guddu Jamali) को थूक कर चाटने वाला कहा। जबकि रामपुर में आज़म खान ने कहा कि बदनसीब हैं पैगम्बर के खिलाफ बोलने वाले। उनके उन्हें नसीब पर छोड़ दें तानाशाही किसी की नहीं रही।

हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ नहीं बोले

आज़म ने कहा कि हमने बाबरी मस्जिद के लिए तहरीक चलाई पर हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ नहीं बोले। आज़म और अबू आज़मी के इन बयानों के बाद मतों का ध्रुवीकरण शुरू हो गया है।

उल्लेखनीय है कि सपा और भाजपा दोनों के उम्मीदवार जहां यादव है वहीं बसपा के उम्मीदवार मुस्लिम है जो दूसरी बार इस निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए उम्मीदवार है। सपा ने यहां ने अपने कुनबे के पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है तो भाजपा ने 2019 में उम्मीदवार रहे भोजपुरी कलाकार दिनेश यादव निरहुआ को एक बार फिर मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पर दांव लगाया है।

बसपा के जमाली के आने से सपा का गणित कुछ गड़बड़ा सकता है क्योकि धर्मेन्द्र यादव का राजनीतिक कद मुलायम और अखिलेश जैसा नहीं है और यादवों के साथ मुस्लिम बाहुल्य होने के साथ यहां जमाली की अपनी साख भी है। वे यहां की मुबारकपुर सीट से 2012 और 2017 में बसपा के टिकट पर निर्वाचित हुए थे और 2014 में मुलायम के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़कर तीसरे स्थान पर थे।

राजनीतिक जानकारों की माने तो विधानसभा चुनावों की तरह आजमगढ़ में मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर बसपा ने अपरोक्ष रूप से भाजपा को वाकओवर दिया है। यह दूसरा मौका है जब बसपा सपा से अपना हिसाब चुकता करने के लिए भाजपा के साथ खड़ी नज़र आ रही है। इस बार आजमगढ़ के उपचुनाव को लेकर सपा में बड़ी दुविधा में रही।

मायावती का पैतरा आया काम

धर्मेन्द्र 2019 के लोकसभा चुनाव में बदायूं से भाजपा उम्मीदवार संघमित्रा मौर्य से पराजित हुए थे। धर्मेन्द्र यादव से पहले यहां सपा ने पूर्व सांसद बलिहारी बाबू के पुत्र गुलशन आनंद को उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की थी लेकिन वहां के सपाईयों ने इसका विरोध किया तो मजबूरी में धर्मेन्द्र यादव को ही मैदान में उतारा गया। मुस्लिमों में जमाली का प्रभाव होने के नाते यहां सपा की राह में मुश्किले खड़ी हो सकती है।

राजनीतिक प्रेक्षकों को यह मानने में इंकार नहीं कि कांग्रेस के बाद मुस्लिमों के वोटबैंक पर सपा का खासा प्रभाव है लेकिन बसपा ने वहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर समीकरण बिगाडऩे का काम किया है। यहां इस बसपा हारती है और भाजपा काबिज होती है तो माना जाएगा कि मायावती का पैतरा काम आया और वे सपा के गढ़ से उसे बेदखल करने में कामयाब रही।

यदि दो यादवों की लड़ाई में जमाली बाजी मार लेते है तो भी कोई चौकाने वाली बात नहीं होगी क्योकि वे यहां के मुबारकपुर सीट से दो बार एमएलए रह चुके है। नाराजगी के चलते 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वे बसपा छोड़ गए थे और सपा में शामिल होना चाहते थे लेकिन सफलता नहीं मिली तो औवेसी की पार्टी से चुनाव लड़े उसमें भी उन्हे सफलता नहीं मिली तो वे वापस बसपा में आ गए।

हालांकि बसपा छोडऩे से पहले मायावती ने बसपा विधानमंडल दल का नेता बनाया था। बसपा में दुबारा वापसी करने पर उन्हे मायावती ने तुरंत आजमगढ़ से उपचुनाव लडऩे का फरमान सुना दिया। इस बार जमाली को अपनी राह 2014 से ज्यादा आसान लग रही है। क्योंकि उनके सामने सपा के जो उम्मीदवार है उनपर बाहरी होने का भी आरोप है। उनका कद भी मुलायम और अखिलेश जैसा नहीं है इसलिए वहां के सपाईयों को भी खासा पसीना बहाना पड़ रहा है।



Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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