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एक बच्‍चे की जान बचाने के लिए नर्स बोली- लगवा लो टीका, मैं हूूं देवी

shalini
Published on: 12 May 2016 2:56 PM IST
एक बच्‍चे की जान बचाने के लिए नर्स बोली- लगवा लो टीका, मैं हूूं देवी
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लखनऊ: एक तरफ जहां हम आज वैज्ञानिक युग में जी रहे है। अपनी छोटी से छोटी बात के लिए डॉक्‍टर्स पर निर्भर हो गए हैं। उनकी कही हर बात को पत्‍थर की लकीर मान लेते हैं। वहीं आज भी समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनकी नजर में डॉक्‍टर्स या नर्स से ज्‍यादा अंधविश्‍वास पर भरोसा होता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें सीतापुर के एक इलाके में नर्स को बच्चे को बचाने के लिए परिवार वालों से ये झूठ बोलना पड़ा कि वह देवी का रुप है और उसे देवी मां ने टीकाकरण के लिए भेजा है। 12 मई को नर्स दिवस मनाया जाता है आइए जानते हैं ऐसी नर्सों के बारे में जिनकी जिद ने लोगों के सोंचने का नजरिया बदल दिया।

मिथ तोड़ लगवाया टीका

बाराबंकी की नर्स मेंटर साधना कनौजिया ने एक ऐसे परिवार का मिथ तोड़ा है, जिसे लगता था कि बच्चों का टीकाकरण कराने से उन्हें बीमारियां घेर लेती हैं। हुआ यूं कि दो साल पहले एक लड़की को बीसीजी का टीका लगाया गया था, जिसके बाद उस लड़की को फोड़ा निकल आया। इसके बाद लड़की के परिवार वालों ने उसे टीका ना लगवाने की ठान ली थी।

नर्स ने कहा उसे देवी मां ने भेजा है

-डेढ़ साल बाद लड़की की मां ने एक बेटे को जन्म दिया और परिवार वालों ने उसे भी टीका लगवाने से इंकार कर दिया।

-ये बात जब नर्स साधना को पता चली, तो वो उनके घर गई वहां घरवालों ने उन्हें उल्टा-सीधा कहना शुरू और बताया कि किस तरह देवी मां ने लड़की के फोड़े को ठीक किया।

-साधना लगभग 3 घंटे तक उन लोगों को समझाती रही, लेकिन परिवार वाले कुछ मानने को तैयार ही नहीं थे।

-उनके अन्धविश्वास का फायदा उठाते हुए कहा कि उसे देवी ने भेजा है।

-तब जाकर परिवार वाले बच्चों को टीका लगवाने के लिए राजी हुए।

एसफिक्शिया पीड़ित नवजातों की बचाई जान

-जिला सीतापुर के बिसवां ब्लाक के अहमदाबाद गांव में रहने वाली 26 वर्षीया समीम बानो, जिन्होंने तीसरी बार गर्भधारण किया था।

-वो एक संयुक्त परिवार में रहती हैं और आजीविका चलाने के लिए उनके पति इन्तियाज मुंबई में छोटे-मोटे काम करके गुजारा करते है।

-समीम बानो को जब प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो घरवालों ने आशा बहू सुमन देवी को बुलाया।

nurses

-आशा बहू ने देखा कि मामला गंभीर है, तो उसने एम्बुलेंस को सूचित किया उसे पता चला की एम्बुलेंस को आने में समय लगेगा।

-देरी की वजह से आशा सुमन देवी अपने पति सुरेन्द्र को साथ लेकर मोटरसाइकिल पर बैठाकर अस्पताल ले गई।

-डिलीवरी रूम में मौजूद नर्स मेंटर प्रियंका कुमारी और स्टाफ नर्स ललिता मिश्रा ने समीम की सामान्य डिलीवरी करवाई और समीम ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।

बच्चों में नहीं हो रही थी कोई हरकत

-लेकिन जुड़वां बच्चों में कोई हरकत नहीं हो रही थी वो बेजान लग रहे थे और सांस भी नहीं ले पा रहे थे।

-नर्स मेंटर और स्टाफ नर्स को ये समझते देर नहीं लगी कि दोनों बच्चें एसफिक्शिया से पीड़ित हैं।

- उनका रंग भी नीला पड़ चुका था और साथ ही साथ दोनों का वजन भी बहुत कम था, जिसमें लड़की का वजन 2500 ग्राम और लड़के का वजन 2000 ग्राम था।

-इस कठिन समय में दोनों ने मिलकर एक-एक बच्चे को संभाला।

बच्चों को दी गई कृत्रिम ऑक्सीजन

-पहले तो बच्चों को रेडियंट वार्मर पर पुनर्जीवन की प्रक्रिया के लिए रखा गया और साथ में ऑक्सीजन की सुविधा दी गई।

-डेढ़ घंटे की लगातार मेहनत के बाद दोनों बच्चों ने कृत्रिम ऑक्सीजन के बजाय खुद से सांस लेना शुरू किया और सामान्य स्थिति में नजर आए।

-नर्स मेंटर प्रियंका ने अपना अनुभव बताया कि एसफिक्शिया से पीड़ित दोनों बच्चों को संभालना काफी मुश्किल था।

-पर स्टाफ नर्स के साथ मिलकर हमने दोनों बच्चे को संभाला और दोनों ही बच्चों को बचा लिया।



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