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ओडीएफ घोषित होने की खुली पोल: नम्बर बढ़ाने के चक्कर में अफसरों ने किया गुमराह
सुशील कुमार
मेरठ: उत्तर प्रदेश में सरकार की नजर में अपने नम्बर बढ़ाने के चक्कर में सरकारी अफसर सरकार को किस तरह गुमराह करते हैं इसका जीता-जागता उदाहरण मेरठ जिले को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित करना है। करीब डेढ़ साल पहले स्थानीय अफसरों ने मेरठ को सरकारी कागजों में ओडीएफ घोषित कर दिया जिसके बाद अक्टूबर 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने जिले के अफसरों की इस बाबत खूब सराहना की थी। तत्कालीन डीएम समीर वर्मा और मुख्य विकास अधिकारी आर्यका अखौरी लखनऊ बुलाकर उन्हें सम्मानित किया गया था।
मेरठ के तत्कालीन अफसरों की पोल हाल ही में तब खुली जब केंद्र सरकार सरकार द्वारा पिछले दिनों कराए गए सर्वे में करीब 20 हजार घर बिना शौचालय वाले सामने आए। सर्वे रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकारी महकमे में हडक़ंप मचा है। कोई भी सरकारी अफसर इस बाबत कुछ भी कहने से बचता दिख रहा है। नगर आयुक्त मनोज चौहान काफी कुरेदने पर इतना ही कहते हैं कि अभी उन्होंने सर्वे की फाइल नहीं देखी है। फाइल का अवलोकन करने के बाद ही कुछ कह सकूंगा।
सरकारी मशीनरी पर उठे सवाल
दरअसल, इस मामले में सरकारी मशीनरी पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जिले को खुले में शौच मुक्त घोषित करने से पहले तीन चरण में सर्वे कराया गया था। पहले चरण में विभागीय टीम, दूसरे में जिला प्रशासन और तीसरे में शासन की टीम द्वारा गांव-गांव घूमकर सर्वे किये जाने का दावा किया गया था। यही नहीं शौचालय निर्माण के बाद शौचालय प्रयोग करने के लिए आम जनता को जागरुक करने के मकसद से विभिन्न माध्यमों के द्वारा सरकारी खर्च पर कई दिनों तक जागरूकता अभियान भी चलाया गया था। ऐसे में केन्द्र सरकार के सर्वे में कई हजार घरों का बिना शौचालय के मिलना वाकई में सरकारी मशीनरी पर सवाल उठाता है।
बजट मिलने पर होगा निर्माण
कार्यवाहक डीपीआरओ संदीप अग्रवाल इस बारे में पूछने पर सिर्फ इतना ही कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों के सर्वे में नौ हजार से अधिक घर बिना शौचालय वाले सामने आए हैं। उनके मुताबिक बजट जारी होते ही वंचित घरों में शौचालय का निर्माण करा दिया जाएगा। हालांकि कार्यवाहक डीपीआरओ इस सवाल को टाल गए कि जब मेरठ पहले ही सरकारी कागजों में ओडीएफ घोषित किया जा चुका है तो फिर जिला प्रशासन शौचालय निर्माण के लिए किस मद से खर्चा करेगा। सरकारी सूत्रों की मानें तो मेरठ को पूरी तरह से ओडीएफ कराने के लिए करीब बीस हजार शौचालयों का निर्माण कराना होगा। जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में शौचालय निर्माण के लिए अच्छे-खासे बजट की आवश्यकता होगी।
यहां बता दें कि मेरठ में एक लाख दस हजार शौचालयों का निर्माण सरकीरी कागजों में अब तक किया जा चुका है,जिस पर करीब 70 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है। केन्द्र सरकार के ताजा सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 9 हजार 311 शौचालय विहीन घर हैं। जबकि नगर निकायों में 10,751 घर शौचालय विहीन हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 24 करोड़ रुपये शौचालय निर्माण के लिए 24 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।
नगर निगम ने नहीं कराया सत्यापन
जहां तक नगर निगम की बात है तो यहां ओडीएफ घोषित करने की जल्दबाजी में निगम ने न कोई प्रक्रिया पूरी करायी और न ही कोई सत्यापन कराया। नतीजा ये हुआ कि तकरीबन 11 हजार लोग शौचालय निर्माण की पहली किस्त ले गये। इनमें से केवल कुछ स्थानों पर ही गड्ढे खुद पाए हैं। पांच हजार परिवार तो पैसे लेकर लापता हो गए। आश्चर्य वाली बात ये भी है कि प्रशासन ने इन्हीं 11 हजार परिवार के बलबूते 90 फीसदी सफलता का दावा भी कर डाला। अब इन लोगों को ढूंढने में नगर निगम के पसीने छूट रहे हैं। पैसे लेकर लापता हो गये परिवारों को ढूंढने के लिए नगर निगम ने नगर स्वास्थ्य विभाग ही नहीं बल्कि निर्माण विभाग के अधिकारियों की फौज लगायी, लेकिन कोई सफलता नहीं मिल रही है। अब सरकारी रुपया वापस कैसे मिले। इसका रास्ता तलाशा जा रहा है।