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नकारा अफसर करा रहे प्रदेश सरकार की फजीहत

raghvendra
Published on: 3 Aug 2018 9:55 AM GMT
नकारा अफसर करा रहे प्रदेश सरकार की फजीहत
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: जिले में अफसरों की कारगुजारी के चलते बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कांड से लेकर फर्जी लोकार्पणों के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को परेशानी झेलनी पड़ रही है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज ऑक्सीजन कांड में सरकार की बदनामी तत्कालीन डीएम राजीव रौतेला के कारण हुई थी। बीते गुरु पूर्णिमा के दिन डिप्टी एसपी प्रवीण सिंह ने खाकी वर्दी में मुख्यमंत्री के पांव छूकर विवाद खड़ा कर दिया। विपक्ष अफसरशाही में फंसी सरकार के विवादित प्रकरणों को संसदीय चुनाव में उछालने को लेकर होमवर्क में जुट गया है।

वर्ष 2014 बैच के पीपीएस प्रवीण सिंह जौनपुर के रहने वाले हैं। सीओ ने फेसबुक पर मुख्यमंत्री के साथ खुद की फोटो लगा रखी है। गुरु पूर्णिमा के दिन सीओ भी बावर्दी कतार में खड़े होकर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद लेने पहुंच गए। वर्दी में घुटने के बल बैठकर सीओ ने योगी को तिलक लगाया तो गोरक्षपीठाधीश्वर ने भी उन्हें निराश नहीं किया। प्रवीण सिंह ने तत्काल अपने फेसबुक वाल पर फोटो को अपलोड कर लिखा कि योगी जी मेरे गुरु हैं। प्रवीण सिंह ने फेसबुक पर कबीर के दोहे के साथ गोरक्षपीठाधीश्वर का गुणगान किया। सीओ ने लिखा कि सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय।

सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय। नेशनल मीडिया में जब प्रवीण सिंह को लेकर बखेड़ा खड़ा हुआ तो प्रवीण सिंह ने पोस्ट तो हटा दिया। विवादों में फंसने के बाद प्रवीण सिंह की दलील है कि मेरी भी एक आस्था है और मैं भी एक इंसान हूं। मैंने पांव छूने से पहले बेल्ट, टोपी, बैच आदि उतार दिया था। मीडिया मामले को बेवहज तूल दे रहा है।

अफसर काट रहे कन्नी

अजीब विडम्बना है कि एक ओर कुछ अफसर ऐसे हैं जो सीएम को खुश करने में लगे हुए हैं तो कुछ अफसर कुछ कारणों से यहां नहीं आना चाहते। पूर्व डीएम राजीव रौतेला के तबादले के बाद के विजयेन्द्र यहां आने से कतरा रहे थे। वैभव श्रीवास्तव ने भी लंबे इंतजार के बाद जीडीए उपाध्यक्ष का कार्यभार संभाला था। उनकी पत्नी और आईएएस नेहा प्रकाश को भी जिले में तैनाती दी गई, लेकिन वह शहर में नहीं टिके।

जीडीए के वर्तमान उपाध्यक्ष अमित सिंह बंसल के कार्यभार ग्रहण किये दो महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है, लेकिन उनका दिल अभी तक नहीं रमा है। जीडीए सचिव राम सिंह गौतम ने भी ना-नुकुर के बाद कार्यभार ग्रहण किया था। आईएएस जिला विकास अधिकारी अनुज सिंह की पत्नी हर्षिता माथुर को गीडा के सीईओ के पद पर तैनाती मिली थी। लेकिन वह भी चंद महीने ही टिक सकीं। आरटीओ भीम सेन सिंह ने भी ट्रांसफर आदेश के 15 दिन बाद कार्यभार ग्रहण किया था।

अधूरी योजनाओं का अफसर करा रहे लोकार्पण

कमिश्नर और जिलाधिकारी की अगुवाई में जिले में अफसर मुख्यमंत्री को गफलत में रखकर अधूरी योजनाओं का लोकार्पण करने से नहीं चूक रहे हैं। पिछले 20 मई को अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के हाथों रामगढ़ झील परियोजना के तहत बने नौकायन केन्द्र का लोकार्पण करा दिया। लोकार्पण के दिन नौका भी उतारी गई थी। मुख्यमंत्री ने खुद इसे चलाया भी था। लेकिन तीन महीने से अधिक समय बीतने के बाद भी नौकायन की सुविधा नहीं शुरू हो सकी है। अफसरों के संरक्षण में नावों का अवैध संचलन हो रहा है। दरअसल, पर्यटन विभाग अभी तक टेंडर की प्रक्रिया पूरी नहीं कर सका है। इतना ही नहीं, बीआरडी कॉलेज प्रशासन ने पिछले साल 9 अगस्त को मुख्यमंत्री के हाथों ट्रामा सेंटर में 10 बेड के आईसीयू का लोकार्पण करा दिया था।

एक साल का समय गुजरने को है, लेकिन अभी तक आईसीयू के बाहर ताला लटका हुआ है। नगर निगम के अफसरों ने कई सडक़ों और नाला निर्माण का लोकार्पण मुख्यमंत्री के हाथों करा दिया जिसका निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है। नगर आयुक्त प्रेम प्रकाश सिंह तो मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए नियम कायदे को भी ताक पर रखने से नहीं चूक रहे हैं। नगर निगम की नियमावली में स्पष्ट है कि निगम किसी सरकारी परिसर में निर्माण कार्य नहीं कराएगा, लेकिन नगर आयुक्त ने 15 करोड़ रुपये का कार्य बीआरडी मेडिकल कॉलेज में करा दिया तो वहीं 50 लाख से अधिक की रकम को पुलिस लाइन में खर्च करने जा रहे हैं।

ऑक्सीजन कांड में अफसरों ने कराई फजीहत

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन से मरने वाले बच्चों को लेकर प्रदेश सरकार की हुई फजीहत के पीछे भी अफसरों की ही फौज थी। मेडिकल कॉलेज में 10 अगस्त की रात 7.30 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट में आक्सीजन खत्म हुई थी जिसके बाद दो दर्जन से अधिक मासूमों को जान गंवानी पड़ी थी। हकीकत यह है कि घटना में ऑक्सीजन सप्लायर से लेकर प्राचार्य तक को जेल की हवा खानी पड़ी। लेकिन पूरे प्रकरण में प्रशासनिक अफसरों का गुनाह कम नहीं था।

भुगतान के लिए गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक अफसरों, मंत्रियों को पत्र लिखे जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया गया। पुष्पा सेल्स के मनीष भंडारी ने तत्कालीन डीएम राजीव रौतेला पर भुगतान में अनदेखी का आरोप लगाया था। जेल से जमानत पर छूटने के बाद डॉ कफील भी यही आरोप लगा रहे हैं। डॉ कफील का कहना है कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। निष्पक्ष जांच हुई तो गोरखपुर से लखनऊ तक के अफसरों की कलई खुल जाएगी। ऑक्सीजन कांड की विवेचना करने वाले सर्किल अफसर अभिषेक सिंह ने भी सरकार की खूब फजीहत कराई। चार्जशीट और हाईकोर्ट में प्रस्तुत किए गए हलफनामे के अंतर के चलते ही अभियुक्त बनाये गए सभी अधिकारी एक-एक कर जमानत पर रिहा हो रहे हैं।

इस मामले में पूर्व प्राचार्य डा. राजीव मिश्र, एनस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डा. सतीश कुमार, बाल रोग विभाग के प्रवक्ता एवं एनएचएम के प्रभारी डा. कफील खान, डा. राजीव मिश्र की पत्नी डा. पूर्णिमा शुक्ल, बीआरडी मेडिकल कालेज के चीफ फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल, कनिष्ठ लिपिक संजीव त्रिपाठी, सहायक लिपिक सुधीर कुमार पांडेय व कनिष्ठ सहायक लेखा अनुभाग के उदय प्रताप शुक्ल के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। विवेचक और सीओ कैंट अभिषेक सिंह ने चार्जशीट में सभी को गम्भीर धाराओं में दोषी बताया। लेकिन हाईकोर्ट में दाखिल की गयी विवेचना में तथ्य से पूरी तरह पलट गये। हाईकोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में सीओ ने स्पष्ट लिखा कि मेडिकल कालेज में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई से जुड़े पहलुओं पर कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला। इस मामले की विवेचना साक्ष्य के अभाव में 30 मार्च, 2018 को समाप्त कर दी गयी है।

सवालों के घेरे में कमिश्नर की कार्यशैली

मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद से गोरखपुर के कमिश्नर अनिल कुमार अंगद की पांव की तरह जमे हुए हैं जबकि उनकी कार्यशैली से लोग खुश नहीं हैं। भाजपा के पदाधिकारी भी उनसे नाराज हैं। जिन मानबेला किसानों के हक के लिए बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ ने संघर्ष किया था, वह प्रकरण कमिश्नर के गैर जिम्मेदार रवैये के चलते कानूनी पेंच के साथ सियासत में फंस गया। डेढ़ दशक पहले गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पास करीब 500 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की पहल के बाद किसान संशोधित मुआवजा लेने के तैयार हो गए। लेकिन कमिश्नर ने मुआवजे में ब्याज का पेंच फंसा दिया। लिहाजा किसानों का एक खेमा प्रकरण में कांग्रेस के नेतृत्व में प्रदर्शन कर रहा है।

किसानों ने मुआवजे को लेकर हाईकोर्ट में मुकदमा भी कर दिया है। जीडीए को पीएसी लगाकर मानबेला में अपनी योजनाओं को संचालित करना पड़ रहा है। पीएम आवास योजना से लेकर राप्ती नगर विस्तार की योजना किसानों के विरोध के चलते अमली जामा नहीं पहन सकी हैं। कमिश्नर की बैठकों को लेकर भी अफसरों का एक खेमा नाराज चल रहा है। पूर्व डीएम राजीव रौतेला और कमिश्नर में तनातनी साफ दिख रही थी। लेकिन वर्तमान डीएम के विजयेन्द्र फिलहाल मैनेजमेंट के तहत काम कर रहे हैं। पूर्व एसएसपी अनिरुद्ध सत्र्याथ पंकज ने बांसगांव से भाजपा सांसद कमलेश पासवान पर मुकदमा दर्ज कर मुख्यमंत्री को मुश्किल में डाल दिया था। जबरन रजिस्ट्री कराने के आरोप में सांसद कमलेश पासवान पर पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। सांसद की गिरफ्तारी को लेकर छापेमारी भी की गई। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक मामला पहुंचने के बाद मैनेजमेंट का खेल शुरू हुआ। बाद में एसएसपी का तबादला कर दिया गया।

हाईकोर्ट के दखल के बाद भी नहीं हटाए गए रौतेला

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड काडर के आईएएस राजीव रौतेला को गोरखपुर का जिलाधिकारी बनाया था। रामपुर में अवैध खनन प्रकरण में हाईकोर्ट ने राजीव रौतेला के साथ एक अन्य आईएएस अफसर को निलंबित करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने 13 दिसंबर, 2017 को दोनों अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया था। लेकिन सरकार के इस चहेते अफसर के खिलाफ कार्रवाई की यूपी के मुख्य सचिव हिम्मत नहीं दिखा सके। गोरखपुर से राजीव रौतेला हटाये तो गए, लेकिन उन्हें प्रोन्नित देकर कमिश्नर बना दिया गया। ऑक्सीजन कांड का असल गुनहगार भी राजीव रौतेला को ही माना गया। गोरखपुर में हुए उपचुनाव में सपा की जीत के पीछे भी असल वजह डीएम राजीव रौतेला की कार्यशैली को ही माना गया। चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार उपेन्द्र दत्त शुक्ल थे। लेकिन विरोधी यहीं बता रहे थे कि असली मुकाबला डीएम राजीव रौतेला से है। मतगणना के दिन जब भाजपा वोटों की गिनती में पीछे हुई तो सोशल मीडिया पर कमेंट किये गए कि राजीव रौतेला अभी पिच पर हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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