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Ram mandir: रामलला और गुरु दत्त सिंह व के के नायर, जब पीएम और सीएम के खिलाफ एक जिलाधिकारी
Ram mandir: मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर हिंदुओं को राम लला के मंदिर से बाहर निकालने का आदेश दिया। लेकिन जिला कलेक्टर नायर ने यह आदेश लागू करने से मना कर दिया।
Ram Mandir: आज जब हम रामजन्मभूमि पर राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का पर्व मनाने की शुरुआत करने दे रहे हैं, तब ऐसे में यहाँ तक पहुँचने के रास्ते में इस आंदोलन व अभियान के लिए काम आये लोगों को याद करने का भी अवसर है। यहाँ तक की यात्रा में तमाम लोगों ने अविस्मरणीय योगदान दिया। तमाम लोगों ने बलिदान दिया। इन्हीं में से एक थे- के .के. नायर जी। कहीं कहीं इनके नाम को के. के. नैय्यर भी लिखा आप पा सकते हैं। इनका पूरा नाम कंडागलम करुणाकरण नायर था।
इन्होंने रामलला की मूर्ति के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से सीधा पंगा लेने में कोई गुरेज़ नहीं किया था। केरल के अलाप्पुझा के गुटनकाडु गाँव में सात सितंबर 1907 को नायर जी का जन्म हुआ था। केवल इक्कीस साल की उम्र में नायर जी बैरिस्टर बन गये थे। उन्होंने शिक्षा इंग्लैंड में पाई थी।कई भाषाओं के जानकार नायर रामलला के प्राकट्य के पर्याय बन गये थे। उन्हें सरकार ने 1949 में तत्कालीन फ़ैज़ाबाद का ज़िलाधिकारी बना कर भेजा। 1934 में रामजन्मभूमि बनाम बाबरी का विवाद बड़ा गंभीर शक्ल अख़्तियार कर चुका था। दोनों पक्षों में क़ब्ज़े को लेकर रक्तरंज्त संघर्ष हुआ। राम चंद्र दास परमहंस समेत कई लोगों को आरोपी भी बनाया गया था।
22/23 दिसंबर 1949 की रात रामचंद्र दास परमहंस, तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर व हिंदू महासभा के महंत दिग्विजय नाथ तथा हनुमान गढ़ी के महंत अभिराम दास ने वहाँ राम लला के प्राकट्य की हालत पैदा कर दी। राम लला की मूर्ति रख दी गयी। 1 जून 1949 को नायर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात कर दिये गये थे।
रामलला की प्रतिमा को अचानक अयोध्या मंदिर में रखे जाने की शिकायत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। राज्य के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने ज़िला मजिस्ट्रेट के.के.नायर से पूछताछ की। नायर ने ग्राउंड रिपोर्ट अपने सहयोगी गुरुदत्त सिंह से मांगी। 10 अक
अक्टूबर 1949 को गुरुदत्त सिंह ने नायर को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा-“आपके आदेशानुसार मैंने मौक़े पर जाकर निरीक्षण किया। विस्तार से जानकारी ली।मस्जिद व मंदिर दोनों अग़ल बग़ल स्थित हैं। हिंदू व मुसलमान दोनों अपने संस्कार व धार्मिक समारोह करते हैं। वर्तमान में मौजूद छोटे मंदिर के स्थान पर एक भव्य व विशाल मंदिर के निर्माण की दृष्टि से हिंदू जनता ने यह आवेदन डाला है। रास्ते में कुछ भी नहीं है। अनुमति दी जा सकती है। क्योंकि हिंदू आबादी उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने को उत्सुक हैं। जहां भगवान राम चंद्र जी का जन्म हुआ था। जिस ज़मीन पर मंदिर बनाया जाना है,वह नूजूल( सरकारी भूमि ) की है।
के के नायर ने मुख्यमंत्री को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि हिंदू अयोध्या को भगवान राम (राम लला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं। लेकिन मुसलमान वहां मस्जिद होने का दावा करके समस्याएँ पैदा कर रहे थे। उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए ज़मीन आवंटित करनी चाहिए। ज़िला मजिस्ट्रेट नायर में मुसलमानों को मंदिर के 500 मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया।
यह सुनकर नेहरू क्रोधित हो गये। वह चाहते थे कि राज्य सरकार इलाके से हिंदुओं को तत्काल बाहर निकालने और रामलला को हटाने का आदेश दे। मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने ज़िला प्रशासन को तुरंत हिंदुओं को बाहर निकालने और रामलला की मूर्ति को हटाने का आदेश दिया। लेकिन नायर ने आदेश लागू करने से इनकार कर दिया। दूसरी ओर, उन्होंने एक और आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि प्रतिदिन रामलला की पूजा की जानी चाहिए। आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन वहन करना चाहिए।
नेहरू को बताया गया कि इन हालातों पर नियंत्रण के लिए उन्हें फ़ैज़ाबाद जाना चाहिए। प्रदेश सरकार के जरिये जब नायर को पता चला कि पीएम नेहरू अयोध्या आना चाहते हैं तो उन्होंने साफ मना कर दिया। नायर ने कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू के अयोध्या आने से हालात और तनावपूर्ण हो सकते हैं और काबू करना मुश्किल हो जाएगा। डीएम केके नायर (KK Nayar) पर यह भी आरोप लगा कि वह हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) की तरफ झुकाव रखते है।
जब पंडित नेहरू को अयोध्या आने से मना कर दिया गया तो उन्होंने 26 दिसंबर 1949 को तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को टेलीग्राम भेजा और नाराजगी जाहिर की। पंडित नेहरू ने लिखा, ”अयोध्या में एक बुरा उदाहरण स्थापित किया जा रहा है और आगे चलकर इसके भयानक परिणाम हो सकते है।” नेहरू ने 5 फरवरी 1950 को एक और चिट्ठी लिखी । दोबारा अयोध्या आने के बारे में पूछा।
इस बार भी राज्य सरकार और गृह विभाग ने फैजाबाद के डीएम नायर से उनकी आख्या मांगी। इस बार भी जिलाधिकारी ने प्रधानमंत्री को सुरक्षा और कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए अयोध्या आने से मना कर दिया। 22 दिसंबर 1949 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर हिंदुओं को राम लला के मंदिर से बाहर निकालने का आदेश दिया। लेकिन फैजाबाद के जिला कलेक्टर नायर ने यह कहते हुए आदेश लागू करने से मना कर दिया। कहा कि वास्तविक हित धारक वहाँ पूजा कर रहे थे। इस कदम से दंगे और रक्तचाप हो सकता हैं।
मुख्यमंत्री पंत ने नायर को निलंबित कर दिया। निलंबित किये जाने के बाद नायर इलाहाबाद अदालत गये। स्वयं बहस की।कोर्ट ने आदेश दिया कि नायर को बहाल किया जाए। उसी स्थान पर काम करने दिया जाए। यह आदेश सुनकर अयोध्यावासियों ने नायर से चुनाव लड़ने का आग्रह किया। लेकिन नायर ने बताया कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते वह चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। अयोध्यावासी चाहते थे कि नायर की पत्नी चुनाव लड़े। जनता के अनुरोध को स्वीकार करते हुए श्रीमती शकुन्तला नायर उत्तर प्रदेश के प्रथम विधान सभा चुनाव के दौरान अयोध्या में प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं। उस समय पूरे देश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत हुई थी। अकेले अयोध्या में, नायर की पत्नी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस उम्मीदवार कई हजार के अंतर से हार गए। श्रीमती शकुंतला नायर 1952 में जनसंघ में शामिल हुईं और संगठन का विकास करना शुरू किया।
नायर जी ने परेशान होकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में काम करना शुरू कर दिया।वर्ष 1962 में जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई । तो लोग नायर और उनकी पत्नी को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में सफल रहे। वे चाहते थे कि वे नेहरू के सामने अयोध्या के बारे में बोलें। जनता ने नायर दंपत्ति को बहराइच और कैसरगंज दोनों सीटों पर उतार कर जीतदर्ज करा दी। उनका ड्राइवर भी फैसलाबाद से विधायक चुना गया। आपातकाल लागू में दंपति को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। लेकिन अयोध्या में भारी हंगामा हुआ। सरकार ने उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा।
नायर का 7 सितंबर 1977 के दिन केरल में निधन हो गया। उनकी मृत्यु की खबर सुनने के बाद अयोध्या का एक समूह उनकी अस्थियां लेने के लिए केरल गया।उसे एक सुसज्जित रथ में ले जाया गया और अयोध्या के पास सरयू नदी में विसर्जित कर दिया गया।विश्व हिंदू परिषद ने उनके पैतृक गांव में जमीन खरीदी और उनके लिए एक स्मारक बनाया है। गौरतलब है कि के.के. नायर के नाम से शुरू किया गया ट्रस्ट सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण प्रदान करता है।