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अफसरों की चाल सांसत में सरकार

raghvendra
Published on: 5 Oct 2018 9:40 AM GMT
अफसरों की चाल सांसत में सरकार
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रतिभान त्रिपाठी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार इन दिनों तकरीबन हर रोज किसी न किसी समस्या से रूबरू है। ज्यादातर समस्याएं हालात से पैदा हुई हैं, लेकिन कुछ समस्याएं अफसर जान-बूझकर पैदा कर रहे हैं। जैसे कि एसिड हमले से पीडि़त महिलाओं द्वारा संचालित किए जा रहे रेस्टोरेंट को खाली कराने का मामला। महिला कल्याण निगम के अफसरों ने बैठे बैठाए इस मामले में सरकार को सांसत में डाल दिया। यह मामला अब सरकार के गले की हड्डी बन गया है। न उगलते बन रहा और न निगलते। इस मसले से सरकार के विरोधियों को अपने आप विरोध करने का मुद्दा मिल गया।

माजरा क्या है: अपराधी मानसिकता के कुछ लोगों ने प्रदेश भर में पिछले कुछ सालों में मासूम लड़कियों और महिलाओं पर तेजाब से हमला किया। इससे उनका चेहरा झुलस गया। तेजाब के हमले से पीडि़त करीब ढाई सौ लड़कियां और महिलाएं हैं जिन्हें परिवार और समाज, हर जगह उपेक्षा का शिकार होना पड़ा, लेकिन करीब ढाई साल पहले तत्कालीन अखिलेश सरकार ने इन महिलाओं के प्रति ने दरियादिली दिखाई। छांव फाउंडेशन के मार्फत इन महिलाओं की मदद की जाने लगी। महिला कल्याण निगम के जरिए अंबेडकर पार्क के सामने एक स्थल पर इनको रेस्टोरेंट खुलवाया गया। नाम है शीरोज हैंगआउट।

छांव फाउंडेशन के मार्फत इसका संचालन एसिड अटैक पीडि़ताओं की ओर से ही किया जा रहा है। कुछ समय तक सब ठीक चलता रहा। एसिड हमले से पीडि़त कुछ महिलाओं की रोजी रोटी चलने लगी। वे आत्मनिर्भर बनने लगीं। इनमें से कुछ की शादी भी हो गई,लेकिन जैसी जानकारी है कि उपकार करने की आड़ में छांव फाउंडेशन के संचालक निजी मुनाफे के लिए काम करने लगे। सरकारी विभाग से हुए समझौते की शर्तों का उल्लंघन होने लगा। कहते हैं इसी पर महिला कल्याण निगम ने छांव को कुछ महीने पहले नोटिस देकर यह रेस्टोरेंट हटाने को कह दिया है। इस पर छांव फाउंडेशन ने एसिड हमले की पीडि़ताओं को ही ढाल बनाकर आंदोलन शुरू करा दिया। यह प्रचारित किया गया कि सरकार एसिड हमले की शिकार महिलाओं का रोजगार छीन रही है। यह सरकार महिला विरोधी है।

नोटिस की वजह यह बताई गई: शीरोज हैंगआउट रेस्टोरेंट ठीक से चल रहा था। इससे अच्छी खासी आदमनी हो रही थी। जैसा कि महिला कल्याण विभाग से जानकारी मिली है कि छांव फाउंडेशन को जिम्मा दिया गया कि वह रेस्टोरेंट का संचालन ठीक से करे। हर माह पूरा हिसाब दे, लेकिन संचालक मंडल ने उन शर्तों का उल्लंघन किया। एसिड पीडि़ताओं के कौशल विकास करने की बात थी, यह भी नहीं किया गया। जब नोटिस मिली तो राजनीतिक लामबंदी भी कराई गई। संस्था हाईकोर्ट भी चली गई। हालांकि कोर्ट ने उसे कोई राहत नहीं दी क्योंकि उसका पक्ष सही नहीं है।

अफसरों की बात में भी झोल: जानकारों का कहना है कि महिला कल्याण निगम के अफसरों की बात पूरी तरह सही नहीं मानी जा सकती। मार्च 2016 में जब छांव को काम दिया गया, हिसाब तब भी नहीं दिया गया, लेकिन चूंकि छांव को यह जिम्मा अखिलेश यादव ने दिलाया था इसलिए हिसाब न देने के बावजूद महिला कल्याण विभाग ने उसे कोई नोटिस नहीं दिया। डेढ़ साल तक कुछ नहीं कहा। अब जब देखा कि नई सरकार आ गई तो उन्हीं अफसरों ने चालबाजी शुरू कर दी। सही तथ्य पेश करने के बजाय सरकार को गुमराह किया। वे यह भी नहीं बता रहे कि यह सारी लिखापढ़ी पहले क्यों नहीं की।

आरोप दर आरोप: छांव फाउंडेशन कर्ताधर्ता और शीरोज हैंगआउट रेस्टोरेंट में काम करने वाली महिलाएं सरकार पर आरोप लगा रही हैं कि कुछ अफसर लोटस नाम की संस्था से मिलीभगत करके उसे काम दे चुके हैं। लोटस को इस तरह के कामों का अनुभव नहीं है। लोटस वाले हमें धमका रहे हैं। सरकार जानबूझकर ऐसी महिलाओं से रोजगार छीन रही है जिन्हें परिवार और समाज भी अकेले उनके हाल पर छोड़ देता है। संस्था का सोशल मीडिया देखने वाली सीमा और रेस्टोरेंट की रूपाली का कहना है कि हम अपने अधिकार के लिए आखिरी दम तक लड़ेंगे।

मंत्री बोलीं, किसी महिला का रोजगार नहीं जाएगा: प्रदेश की महिला कल्याण मंत्री प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी ने छांव फाउंडेशन के संचालकों के आरोप को गलत और निराधार बताया है। उनके मुताबिक ये लोग जान-बूझकर नेतागीरी करा रहे हैं। रेस्टोरेंट में काम करने वाली महिलाओं को आगे करके फायदा उठाने की फिराक में हैं। सरकार की मंशा बिल्कुल साफ है। यहां काम करने वाली महिलाओं का रोजगार नहीं छिनेगा। वे कहती हैं कि हमारी सरकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील है। छांव के संचालक मंडल ने नियम और शर्तों का उल्लंघन किया है। यह पैसों की हेराफेरी का भी मामला है। हिसाब मांगने पर कुछ पर्चियां भिजवा दी गई हैं। हम सारी चीजों को दुरुस्त करेंगे।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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