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ये कैसी आजादी, बूढे मां- बाप को ही आश्रम में लाकर कर दिया कैद...
शाहजहांपुर: देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 15 अगस्त को देश आजाद हुआ तो हर जगह देश की आजादी से जुड़ी खबरों को दिखाया जा रहा है। लेकिन आज हम कुछ हटकर बताने और दिखाने जा रहे हैं। हम उन मां बाप की दर्द भरी दास्तां आपको बताएंगे। जिन मां बाप ने बच्चों को बङा करके अपनी आजादी के सपने देखे थे। लेकिन बच्चों को पालने-पोसने और उंगली पकङकर चलना सिखाने के बाद जब बच्चे बङे हो गए तो उन्हीं बच्चों ने मां बाप को एक आश्रम में ले जाकर कैद कर दिया।
जिन बच्चो को आज बूढ़े मां बाप का सहारा बनना था। उन्ही बच्चों पर ये मां बाप बोझ बन गए। आश्रम में बूढ़े मां बाप को ये तो पता है कि 15 अगस्त को देश आजाद हुआ था। लेकिन वह ये भी कहते है कि जब हमारे आजाद होने का वक्त आया तो मेरे बच्चों ने खुशियां देने के बजाए हमें इस आश्रम में लाकर डाल दिया। बूढ़े मां बाप अब इस आश्रम में खुद को खुश बताकर मायूस होकर रहते है।
बुढ़ापे में मिली कैद
पूरा देश इस वक्त देश इस वक्त स्वतंत्रता दिवस की खुशियों में सराबोर है। इन बुजुर्गों से स्वतंत्रता दिवस की खुशियों मे उनका दर्द जाना तो उनका कहना था कि बुढ़ापे में आकर आजाद होने के बजाय कैद हो गए हैं। हम बात कर रहे हैं रौजा थाना क्षेत्र में स्थित वृद्धाश्रम की। यहां जब हम पहुंचे तो बुजुर्ग मां बाप लेटे थे तो कुछ सो रहे थे। हमने उनसे 15 अगस्त के बारे में पूछा कि आप देश आजाद होने की खुशियां कैसे मनाएंगे। तो उनका कहना था कि देश तो आजाद हो गया। लेकिन हम कैद हो गए। ये सुनकर हमने उनकी दर्द भरी दास्तां के बारे में पूछा तो धीरे धीरे बूढ़े मां बाप ने अपना दर्द सुनाना शुरू कर दिया।
आश्रम में 27 महिलाएं और 45 बुजुर्ग
आश्रम में 27 महिलाएं और 45 बुजुर्ग हैं। सबकी दास्तां एक जैसी ही थी। ज्यादातर बूढ़े मां बाप को उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया तो कुछ ऐसे भी थे जो अपनी मर्जी से यहां रह रहे थे। जो अपनी मर्जी रह रहे थे उनका कहना था कि बच्चों की इतनी आमदनी नहीं है। उनका परिवार नहीं चल पाता है तो हमें कैसे खिला पाते। इसलिए हम अपनी मर्जी से यहां रहने लगे।
लेकिन आश्रम में ज्यादातर रहने वाले बुजुर्ग मां बाप अपने बच्चों के सताए हुए हैं। ऐसे बूढ़े मां बाप ने बताया कि जब हमारे बच्चे छोटे थे। हम उनको उंगली पकड़कर चलना सिखाते थे। खुद आधा पेट भरकर बच्चों का पूरा पेट भरते थे। छोटी से लेकर बङी ख्वाहिश पूरी करते थे। आमदनी नहीं होती थी, उसके बाद भी बच्चों को अहसास तक नहीं होने देते थे कि हम उनकी जिद को कैसे पूरा कर रहे हैं। जब बच्चे छोटे थे तो हमने अपने बुढ़ापे में आकर अच्छी जिंदगी के सपने देख लिए थे। जिन बच्चों के बलबूते हमने सपने देखे थे। आज उन्होंने ही हमें ऐसे दुख दे दिए कि हमारी आजादी ही छिन गई।
अपने खून ने ही दुत्कार दिया
बुजुर्गों का मानना है कि 15 अगस्त को हमारे बच्चों से लेकर पूरा देश खुशियां मनाएगा। लेकिन हम इस आश्रम मे कैद रहेंगे। हम भी खुशियां मनाना चाहते हैं। देश की आजादी के साथ-साथ अपनी भी आजादी की खुशियों का जश्न मनाना चाहते हैं। लेकिन जब हमारे खून ने ही हमें दुत्कार दिया तो हम किससे शिकायत करें।
जिन बेटों ने अपने मां बाप को आश्रम लाकर छोङ दिया। जिनसे बच्चे बेहद परेशान रहते थे। बूढ़े मां बाप को पीटते थे। लेकिन आज भी वही मां बाप अपने बच्चों को खुश रहने की दुआ करते हैं। लेकिन इतना जरूर कहा की ऐसे बच्चे किसी मां बाप को न दे जो बच्चे बङे होकर बूढ़े मां बाप को आश्रम में कैद कर दें।
वहीं आश्रम के केयर टेकर भ्रमदेव ने बताया कि यहां पर सबसे ज्यादा वो बुजुर्ग मां बाप होते है जिनके बच्चे बङे होकर बूढ़े मां बाप को पसंद नही करते है। इनकी सबसे ज्यादा यही शिकायतें होती हैं कि बहू खाना नहीं देती है। बेटे बहू के कहने पर हमें पीटते हैं। घर से निकाल देते हैं। ऐसे ही बुजुर्ग यहां आते हैं। कुछ दिन बाद यहां रहने वाले सभी बुजुर्ग एक दूसरे के दोस्त बन जाते हैं। अब इनका यही परिवार है और अब ये अपने बच्चों की बात तक नहीं करते हैं।