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दुधवा में गैंडों के पितामह बांके की मौत, वन्य जीव प्रेमियों में शोक की लहर

वन्य जीव प्रेमियों के लिए गुरुवार का दिन बहुत ही दुखद था। गैंडों के पितामह बांके की मौत हो गई। बांके से ही दुधवा में गैंडा पुनर्वास योजना की शुरुआत हुई थी। 49 साल के नर गैंडे की मौत से वन्य जीव प्रेमियों में शोक की लहर है।

tiwarishalini
Published on: 1 Dec 2016 6:38 PM GMT
दुधवा में गैंडों के पितामह बांके की मौत, वन्य जीव प्रेमियों में शोक की लहर
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लखीमपुर-खीरी : वन्य जीव प्रेमियों के लिए गुरुवार का दिन बहुत ही दुखद था। गैंडों के पितामह बांके की मौत हो गई। बांके से ही दुधवा में गैंडा पुनर्वास योजना की शुरुआत हुई थी। 49 साल के नर गैंडे की मौत से वन्य जीव प्रेमियों में शोक की लहर है।

गौरतलब है कि दुधवा में गैंडा पुनर्वास परियोजना संचालित है। जब इसकी शुरुआत हुई थी तो बांके यहां लाया जाने वाला पहला गैंडा था। परियोजना के सभी गैंडे उसकी ही संतान हैं। परियोजना के जनक बांके ने बुधवार को दक्षिण सोनारीपुर में अंतिम सांस ली। उसकी मौत की खबर देर रात मिलने पर पार्क अधिकारी मौके पर जा पहुंचे।

डिप्टी डायरेक्टर महावीर कौजलगी ने बताया कि परियोजना के ज्यादातर गैंडे मृत बांके की ही संतान हैं। उसके जाने का हम सभी को दु:ख है। दशकों तक उसने दुधवा में अपना प्रभुत्व कायम रखा।

कुछ रोज पहले सैलानियों को इस एरिया में लेकर पहुंचे महावतों को वह असहाय अवस्था में नजर आया था। जिसके बाद से उसकी गतिविधियों पर नजऱ रखी जा रही थी। अब तक दुधवा में 34 गैंडे थे।

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कौजलगी ने बताया कि जब दुधवा में गैंडों के संरक्षण की मुहिम शुरू की गई थी तो नेपाल से तीन मादा गैंडों को लाया गया था। जबकि असम से युवा गैंडे बांके को उनका साथ देने के लिए यहां रखा गया। बांके ने बखूबी अपने काम को अंजाम दिया, लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से वह लगातार कमजोर हो रहा था।

ऐसे में उसका प्रभुत्व भी खत्म हो गया था। कम उम्र में मजबूत गैंडों से न सिर्फ उसे लगातार चुनौती मिल रही थी बल्कि वे बांके पर हमला भी करते रहते थे। जिससे उसे खतरनाक जख्म भी हुए। अंतत: बढ़ती उम्र और ये जख्म उसके लिए मौत का कारण बन गए।

डॉ. नेहा सिंघई, डॉ. सौरभ सिंघई और डॉ. जेबी सिंह की टीम को दक्षिण सोनारीपुर रेंज में उसी समय बुला लिया गया था जब वह बदहवास होकर गिर पड़ा था। चिकित्सकों द्वारा मरने की पुष्टि करने के बाद देर शाम आनन-फानन उसका पोस्टमार्टम किया गया और मौके पर ही उसे दफना भी दिया गया।

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सैलानियों को भी सुनाए जाएंगे बांके के किस्से

दुधवा में गैंडों को पुनरस्थापित करने में अपना योगदान देने वाले वृद्ध गैंडे बांके की मौत बड़ा झटका है। इससे पहले भी दुधवा में गैंडों की मौत अलग-अलग वजहों से हो चुकी है, लेकिन इस बार जो दुख पार्क अधिकारियों को है वह पहले नहीं देखा गया।

शायद यही वजह है कि बांके को दुधवा की पहचान बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी गई है। न सिर्फ उसे याद करने के लिए एक स्थल बनाया जाएगा बल्कि उसकी बेहतरीन तस्वीरों की प्रदर्शनी भी दुधवा बेस कैंप में लगाने पर भी मंथन हो रहा है। जो दशकों तक इस बलशाली गैंडे की दास्तान और दुधवा के लिए उसके योगदान को लोगों से बांटता रहेगा।

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