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अनुच्छेद 35 ए : नजरें सुप्रीम कोर्ट पर, अलगाववादी भयभीत

Aditya Mishra
Published on: 27 Aug 2018 12:07 PM IST
अनुच्छेद 35 ए : नजरें सुप्रीम कोर्ट पर, अलगाववादी भयभीत
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नई दिल्ली: देश की शीर्ष अदालत आज संविधान के अनुच्छेद 35 ए पर सुनवाई करने जा रही है। इस सुनवाई को लेकर सभी की निगाहें सुप्रीमकोर्ट की तरफ लगी हैं। इस सुनवाई मात्र से कश्मीरी अलगाववादियों की नीड हराम हो गयी है। वास्तव में यह अर्जी पिछले 4 साल से पेंडिंग है। 2014 में अनुच्छेद 35 ए को लेकर कानूनी जंग सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थी लेकिन पिछले चार साल में इस पर सिर्फ बात ही हुई। अब इस पर किसी निर्णायक गतिविधि की उम्मीद बन रही है।

इसी पर टिकी है अलगाववाद की दुकानदारी

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर तीन अलग अलग याचिकाओं में अनुच्छेद 35-ए के कारण वहां विभिन्न वर्गों के साथ हो रहे भेदभाव का आरोप लगाया गया है और इसे निरस्त करने की मांग की गई है। हालत यह है कि कश्मीर घाटी में कोई भी अनुच्छेद 35ए की संवैधानिकता पर दलीलों के आधार पर बहस के लिए तैयार नहीं है।इसे लेकर धमकियों का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। अलगावावदी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पहले ही 35-ए को लेकर खून-खराबे की धमकी दे चुका है। हुर्रियत नेताओं ने इसके विरोध में पांच और छह अगस्त को घाटी में बंद बुलाया था। कई संगठनों ने इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आंदोलन भी किया। जाहिर है कि इस अनुच्छेद पर ही अलगाववाद की पूरी दुकानदारी टिकी है।

आखिर क्या है अनुच्छेद 35 ए

अनुच्छेद 35A से जम्मू कश्मीर को ये अधिकार मिला है कि वो किसे अपना स्थाई निवासी माने और किसे नहीं।

जम्मू कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बसे थे।

ऐसे स्थाई निवासियों को जमीन खरीदने, रोजगार पाने और सरकारी योजनाओं में विशेष अधिकार मिले हैं।

देश के किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थाई निवासी के तौर पर नहीं बस सकता।

दूसरे राज्यों के निवासी ना कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है।

अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छीन लिए जाते हैं।

उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई है, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार हासिल हैं।

उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करने के बाद संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दी गई हैं।



संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत ही जोड़ा गया था अनुच्छेद 35ए

अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है। इसकी वजह से कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि अन्य राज्यों में 5 साल का होता है। इसकी वजह से जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार भारतीय संसद के पास बहुत सीमित हैं। संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते जैसे ना शिक्षा का अधिकार, ना सूचना का अधिकार। ना तो आरक्षण मिलता है, ना ही न्यूनतम वेतन का कानून लागू होता है।

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क्या है इसका कानूनी पहलू

2014 में वी द सिटिजंस नाम के एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी. इस अर्जी में संविधान के अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती दी गई. ये दलील दी गई कि संविधान बनाते वक्त कश्मीर के ऐसे विशेष दर्जे की कोई बात नहीं कही गई थी .यहां तक कि संविधान का ड्राफ्ट बनाने वाली संविधान सभा में चार सदस्य खुद कश्मीर से थे। अनुच्छेद 370 टेम्परेरी प्रावधान था, जो उस वक्त हालात सामान्य और लोकतंत्र मजबूत करने के लिए लाया गया था। संविधान निर्माताओं ये नहीं सोचा था कि अनुच्छेद 370 के नाम पर 35 ए जैसे प्रावधान जोड़े जाएंगे। अनुच्छेद 35 ए उस भावना पर चोट करता है जो एक भारत के तौर पर पूरे देश को जोड़ता है। जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों के नागरिकों के अधिकार ना होना संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है।

अनुच्छेद 35 ए का इतिहास

अनुच्छेद 35A को राष्ट्रपति के एक आदेश से संविधान में साल 1954 में जोड़ा गया था। आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था। इससे दो साल पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला का दिल्ली समझौता हुआ था जिसके तहत भारतीय नागरिकता जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषयों में लागू करने की बात थी लेकिन अनुच्छेद 35 ए को खास तौर पर कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को दिखाने के लिए लाया गया। विरोध की दलील ये है कि ये राष्ट्रपति आदेश है, जिसे खत्म होना चाहिए। क्योंकि इस पर संसद में कोई चर्चा और बहस नहीं हुई। संसद को बताए बिना 35 ए को ऐसे आदेश के जरिए संविधान में जोड़ दिया गया।

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अनुच्छेद 35 ए को हटाने के पीछे ये है दलील

अनुच्छेद 35 ए के खिलाफ अर्जी लगाने वाले गैरसरकारी संगठन का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक पीठ बनाने की अपील करेगी. अनुच्छेद 35 ए को हटाने की सबसे बड़ी दलील यही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया। बल्कि राष्ट्रपति आदेश से जबरन थोपा गया। दूसरी बड़ी दलील है कि देश के बंटवारे के वक्त बड़ी संख्या में पाकिस्तान से लोग भारत आए थे. इनमें लाखों की संख्या में लोग जम्मू कश्मीर में भी बस गए थे, लेकिन अनुच्छेद 35 ए की वजह से इन सभी को स्थायी निवासी होने का हक छीन लिया गया। ऐसे लाखों लोगों में अधिकतर हिंदू-सिख समुदाय से हैं।

Aditya Mishra

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