Kalyan Singh की भाजपा में कैसे हुई वापसी, वापस आने पर क्या मिली थी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने 89 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। कल्याण सिंह का नाम साल 1992 में बाबरी विध्वंस में भी लिया जाता है।

Shreedhar Agnihotri
Published on: 21 Aug 2021 6:23 PM GMT
Former UP Chief Minister Kalyan Singh
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यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह। (Social media)

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने 89 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। आज देर रात लखनऊ के एसजीपीजीआई अस्पताल में कल्याण सिंह का निधन हो गया। पिछले डेढ़ महीने से बीमार चल रहे कल्याण सिंह की स्थिति लगातार गंभीर बनी हुई थी। कल्याण सिंह का नाम साल 1992 में बाबरी विध्वंस में भी लिया जाता है। साल 1980 में जब बीजेपी का गठन हुआ, तब से ही वे बीजेपी से जुड़ गए थे, लेकिन बीच में सियासी उठापटक में उन्होंने कई बार बीजेपी का साथ छोड़ा और थामा भी, साथ ही पार्टी ने उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां भी सौंपी।

1980 में बीजेपी के गठन के साथ ही कल्याण सिंह को मिली थी बड़ी जिम्मेदारी

सियासत के सफर में कल्‍याण सिंह की रफ्तार ना बहुत तेज और न बहुत धीमी रही है। वह 35 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने थे। मौका मिला तो अपने क्षेत्र के अलावा प्रदेश की राजनीति में भी सक्रिय नज़र आने लगे। अतरौली में कल्‍याण ने ऐसा झंडा गाड़ा कि 1967 में पहला चुनाव जीतने के बाद 1980 तक उन्‍हें कोई चुनौती ही नहीं दे सका। लेकिन 1980 के चुनाव में जनता पार्टी टूट गई तो कल्याण सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। कल्‍याण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में थे। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें रामनरेश यादव की सरकार में उन्‍हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 1980 में कल्‍याण पहली बार चुनाव हारे लेकिन उसी साल 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया। उन्‍हें प्रदेश पार्टी की कमान भी सौंप दी गई।

59 साल में बीजेपी से यूपी के बने थे सीएम

इसी बीच अयोध्या आंदोलन की शुरुआत हो गई, जिसमें उन्होंने गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओ में नया जोश भरने का काम किया। इस आंदोलन के दौरान ही उनकी इमेज रामभक्त की बन गई। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ और जून 1991 में भाजपा 221 सीटों के साथ उत्तर प्रदेश में पहली बार सत्तारूढ़ हुई। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इस तरह विधायक बनने के ठीक 24 वें साल 59 साल की उम्र में कल्याण सिंह यूपी के सीएम बन गए। हालांकि उनकी सरकार के दौरान ही बाबरी ढांचा विध्वंस हो गया तो इसका सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

जब अंतर्कलह के चलते बीजेपी से निकाल दिए गए थे

बाबरी ढांचा विध्‍वंस के बाद कल्याण सिंह बड़े हिंदुत्‍ववादी नेता बन गए। मुख्‍यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलाने से इनकार करने वाले कल्‍याण सिंह को इस मामले में अदालत ने एक दिन की प्रतीकात्‍मक सजा भी दी थी। कल्‍याण सिंह की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली और एटा की कासगंज सीट से विधायक निर्वाचित हुये। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने। 1998 में भाजपा को अटल लहर के दौरान उसे रिकार्ड 36.49 वोट मिले। इसके बाद 1999 में कल्याण सिंह के मुख्य मंत्रित्वकाल में पार्टी में हुई अंतर्कलह के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत घटकर 27.44 प्रतिशत हो गया और उन्हे मात्र 29 सीटें ही मिल सकी। इसके बाद कल्याण सिंह भाजपा से निकाल दिये गए।

साल 2007 में घर वापसी तो साल 2009 में फिर हो गए थे नाराज

2002 के विधानसभा चुनाव पहली बार कल्याण सिंह की अनुपस्थिति में चुनाव लड़े गए। इन चुनाव कल्याण सिंह ने अपनी जनक्रान्ति (राष्ट्रीय) पार्टी बनाकर भाजपा प्रत्याशियों का जमकर विरोध किया। खुद तो सफलता हासिल नहीं कर सके पर भाजपा को बेहद कमजोर कर दिया। जनक्रान्ति (राष्ट्रीय) के 335 प्रत्याशी इन चुनावों में उतरे. जिसके कारण भाजपा का मत प्रतिशत 25.31 हो गया और उसे 88 सीटें मिली इसके बाद हुए 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कल्याण सिंह फिर भाजपा में लौटे। हांलाकि भाजपा को लोकसभा की मात्र 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा जबकि मतों का प्रतिशत घटकर 22 -17 हो गया।

इसके बाद 2007 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भी भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा। लेकिन भाजपा को इसमें कोई बडी सफलता नहीं मिल सकी। उप्र के इन चुनावों में भाजपा को 51 सीटे मिली। जबकि मतों का प्रतिशत 19.62 प्रतिशत रहा। 2009 में कल्याण सिंह भाजपा से फिर नाराज हो गए तो उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। मुलायम सिंह की पार्टी के समर्थन से उस चुनाव में वह एटा से निर्दलीय सांसद चुने गये। लेकिन उस चुनाव में मुलायम सिंह यादव की पार्टी को बडा नुकसान हुआ। उनका एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका। पार्टी में कलह हुई तो मुलायम सिंह ने कल्याण से नाता तोड़ लिया।

बीजेपी में कई अहम पदों पर रहे कल्याण सिंह

इसके बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी का गठन किया। यह पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर सकी। एक बार फिर 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हुई तो 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्‍होंने भाजपा का खूब प्रचार किया। भाजपा ने अकेले अपने दम पर यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो कल्याण सिंह को सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया।

अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने फिर से भाजपा की सदस्यता ले ली थी। वैसे तो कल्याण सिंह का पूरे प्रदेश में राजनीतिक प्रभाव रहा पर फर्रूखाबाद, हमीरपुर, फिरोजाबाद, बदांयु, फतेहपुर एटा, अलीगढ, बुलन्दशहर, सहारनपुर, इटावा, मछलीशहर आदि जिलों में उनका व्यापक असर रखते थें। राजनीतिक के शिखर पुरूष रहे कल्याण सिंह ने आज के न जाने कितने नेताओें को राजनीति का ककहरा सिखाया। अपने पुत्र राजवीर सिंह को स्थापित में स्थापित करने के साथ ही अपने पोते को भी विधायक बनवाने के साथ ही प्रदेश सरकार में मंत्री भी बनवाया।

Deepak Kumar

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